Wednesday 21 September 2016

कोई दुख में भी खुश है तो कोई सुख में दुःखी


कुछ व्यक्ति यात्रा पर निकले। रात के अंधेरे में वे मार्ग भटक गए और एक पहाड़ी नदी के किनारे रात गुजारने के लिए ठहर गए। लेटे-लेटे एक बोला-हमारे पास खाने को कुछ नही है, भूख से हाल बेहाल हैं और इस पथरीली भूमि में पड़े हुए हैं। न सोने का ठिकाना हैं न भोजन का। उसकी निराशा भरी बातें सुनकर उसका दूसरा साथी बोला-घर पर रहते हुए सुख-सुविधा का जीवन भी तो बिताते हैं। संसार के हर क्षेत्र में सुख और दुख साथ चलते हैं। जिसने दुख का दर्द नहीं सहा, वह सुख का सच्चा आनंद भी नहीं ले सकता।
तभी तीसरे ने कहा-सही है भाई। वे बातें कर ही रहे थे, तभी वहां एक साधु आया और बोला-तुम लोग सुबह उठकर जब चलने लगो तो एक-एक मुट्ठी इस नदी की रेत अपनी-अपनी जेबों में भर लेना। उस बालू का दोपहरी में सूरज की रोशनी में देखना, तुम्हें दुःख और सुख के दर्शन हो जाएंगे। यह कहकर साधु वहां से चला गया।
सुबह वे उठे और साधु के निर्देश के अनुसार सबने एक-एक मुट्ठी नदी की रेत अपनी-अपनी जेब में डाल ली और चल पड़े। दोपहर को जब उन्होंने रेत को देखा तो आश्चर्य के मारे उनकी आंखें चौड़ी हो गई। जिसे वे रेत समझ रहे थे वे रत्न थे। जो संतोषी थे वे प्रसन्नता से चहकते हुए बोले-हम मालामाल हो गए। किंतु जो निराश मनोवृत्ति के थे बोले-अरे तुम हंस रहे हो, तुम्हें तो रोना चाहिए। ऐसा कहकर वे मुंह लटकाकर बैठ गए। साथियों ने पूछा-क्यों, क्या हुआ? उन्होंने कहा- यह सोचो कि एक मुट्ठी रेत की जगह हम थैला भर रेत भी तो ला सकते थे। अपने निराश साथी की बात सुनकर बाकी हंसते हुए बोले-उस साधु को मालूम था कि वह थैला भरने को बोलेगा तो कोई नहीं सुनेगा। इसीलिए उसने एक मुट्ठी रेत ही रखने को कहा। लेकिन हमें जीवन में हर स्थिति का सामना करने के लिए सदैव तत्पर रहना चाहिए।
सार- सुख और दुख मनुष्य को अपनी मनोवृत्ति के अनुसार मालूम पड़ते हैं। कुछ व्यक्ति दुःख में भी खुश रहते हैं और कुछ सुख में दुःख खोजकर दुःखी होते रहते हैं।

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