Wednesday 21 September 2016

काकासुर की हार


कंस ने दूसरे दिन अपने दरबार में मंत्रियों को बुलवाया और योगमाया की सारी बातें उनसे बतायीं। कंस के मंत्री दैत्य होने के कारण स्वभाव से ही क्रूर थे। वे सब देवताओं के प्रति शत्रुता का भाव रखते थे। अपने स्वामी कंस की बात सुनकर उन सबों ने कहा- ‘यदि आपके शत्रु विष्णु ने कहीं और जन्म ले लिया है तो इस दस दिन के भीतर जन्में सभी बच्चों को आज ही मार डालेंगे। हम आज ही बड़े-बड़े नगरों, छोटे-छोटे गावों, अहीरों की बस्तियों में और अन्य स्थानों में जितने भी बच्चे पैदा हुए हैं, उन्हें खोजकर मारना शुरू कर देते हैं। शत्रु को कभी छोटा नहीं समझना चाहिए। इसलिए उसे जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए आप हम जैसे सेवकों को आदेश दीजिए’। एक तो कंस की बुद्धि वैसे ही बिगड़ी हुई थी, दूसरे उसके मंत्री उससे भी अधिक दुष्ट थे। कंस के आदेश से दुष्ट दैत्य नवजात बच्चों को जहां पाते, वहीं मार देते। गोकुल में भी उत्पात शुरू हो गए। अभी छठी के दिन भगवान का जात कर्म संस्कार ही हुआ था कि कंस के द्वारा भेजी गई पूतना श्रीकृष्ण को मारने के लिए नंद बाबा के घर पहुंची। उसने सुंदर गोपी का वेष बनाकर श्रीकृष्ण को गोद में उठा लिया और अपने विष लगे स्तनों का दूध पिलाने लगी। श्रीकृष्ण ने दूध के साथ उसके प्राणों को भी खींच लिया और उसे यमलोक भेज दिया। एक दिन की बात है, नन्हें-से कन्हाई पालने में लेटे हुए अकेले ही कुछ हूं-हां कर रहे थे और अपने हाथ, पैरों को हिला रहे थे। उसी समय कंस का भेजा हुआ एक दुष्ट राक्षस कौवे का वेष बनाकर उड़ता हुआ वहां आ पहुंचा। वह बहुत विकराल था और अपने पंखों को फड़फड़ा रहा था। वह पहले तो भयकंर रूप से बार-बार श्रीकृष्ण को डराने का प्रयास करने लगा, पर श्रीकृष्ण मुस्कुराते रहे। फिर वह क्रोधित होकर बालकृष्ण को मारने के लिए झपटा। बालरूप भगवान श्रीकृष्ण ने बायें हाथ से कसकर उसके गले को पकड़ लिया। उसके प्राण छटपटाने लगे। भगवान ने उसे घुमाकर इतनी जोर से फेंका कि वह कंस के सभा मंडप में जा गिरा। बड़ी मुश्किल से उसे होश में लाया गया। कंस ने घबड़ाकर उससे पूछा- तुम्हारी ये दशा किसने की? काकासुर ने कहा – राजन जिसने मेरी गर्दन मरोड़कर यहां फेंक दिया, वे कोई साधारण बालक नहीं हो सकता। निश्चित ही भगवान श्रीहरि ने अवतार ले लिया है।

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