एक दिन सूर्य पुत्र कर्ण शिकार खेलने गए थे। झाड़ियों के पीछे किसी हिंसक प्राणी की आशंका होने पर बिना पड़ताल किए ही कर्ण बाण चला देते हैं। दुर्भाग्य वश वह एक गाय होती है। उस गाय का रखवाला ब्राह्मण यह दृश्य देख बहुत क्रुद्ध हो जाता है।
कर्ण उस ब्राह्मण से माफी मांगने लगते है, पर वह ब्राह्मण कहता है कि मैं तुम्हे माफ तो कर दूंगा पर पहले मेरी इस गाय को जीवित कर के दो, इसका भूखा बछड़ा मेरे घर पर बंधा हुआ है, और वह भूख से बिलख रहा होगा, मुझे इस गाय को उसके बछड़े के पास जीवित ले कर जाना है!
कर्ण ऐसा करने के लिए अपनी असमर्थता बताते हैं। तभी वह ब्राह्मण कर्ण को अपनी उस गलती के लिए शाप देता है कि
➡जिस तरह तुम रथ पर सवार हो कर, अपनी शक्तियों के मध में खुद को श्रेष्ठ समझने लगे हो, और दूसरों पर बिना सोचे समझे कहर ढा रहे हो, एक दिन जब तुम अपने जीवन की सब से बड़ी लड़ाई लड़ रहे होगे तब तुम्हारे रथ के पहिये जमीन में धंस जाएंगे और भय का राक्षस तुम्हें चारों ओर से घेर लेगा⬅
भविष्य में जब कर्ण अपने जीवन की सब से बड़ी लड़ाई अर्जुन से लड़ रहे होते हैं तभी कर्ण के रथ के पहिये रण भूमि में जमीन में धस जाते हैं और तब कर्ण जमीन में धसा पहिया निकालने नीचे उतरते हैं। इस अवसर का लाभ उठा कर अर्जुन कर्ण का वध कर देते हैं। इस तरह ब्राह्मण का शाप सत्य हो जाता है।
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