इस बार मेरे काल ने जन्म लिया है यह सोचकर कंस घबराया हुआ था। उसने बंदीगृह में पहुंचते ही चिल्लाकर कहा- देवकी कहां है वह बालक? मै अभी अपनी तलवार से काटकर के टुकड़े- टुकड़े कर दूंगा, न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी।
देवकी ने बड़े दु:क और करूणा से कहा- मेरे प्यारे भाई, यह तो कन्या है और यह भी तुम्हारी पुत्री के समान है। भला ये तुम्हे क्या मारेगी। तुम्हें इसकी हत्या नहीं करनी चाहिए। तुमने एक एक करके मेरे छह पुत्रों को मार डाला। मैने तुमसे कुछ नहीं कहा। मै तुमसे इसके प्राणों की भीख मांगती हूं। मै तुम्हारी छोटी बहन हूं। मुझ पर दया करों। यह मेरी अंतिम संतान है। मै हाथ जोड़कर तुमसे विनती करती हूं। यह मेरी अंतिम निशानी है।
कन्या को गोद में छिपाकर बड़ी दीनता के साथ देवकी ने याचना की। किंतु कंस बड़ा ही दुष्ट था। उसके ऊपर देवकी की विनती का कोई प्रभाव नहीं पड़ा और कन्या को देवकी की गोद से छीनकर ले गया। प्रकृति भी उसकी क्रूरता पर चीख उठी। उसने जैसे ही कन्या को चट्टान पर पटकने की कोशिश की- वह उसके हाथ से छूटकर आकाश में उड़ गई।
वह कन्या कोई सधारण कन्या तो था नहीं , साक्षात श्रीकृष्ण की योगमाया थी। आकाश में जाते ही वह देवी के रूप में बदल गई। देवता, गन्धर्व, अप्सराएं उसकी स्तुति करने लगे।
उस देवी ने कंस से कहा- रे मूर्ख! मुझे मारने से तुझे क्या मिलेगा। तुझे मारने वाला तेरा शत्रु कहीं और पैदा हो चुका है। अब तू निर्दोष बालको की हत्या मत कर। कंस से ऐसा कहकर ही भगवती योगमाया अंतर्धान हो गयीं और विन्ध्याचल की विन्ध्येश्वरी नाम से प्रसिद्ध हुई
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