Wednesday 21 September 2016

भक्त का त्याग संभव नहीं


महाराज युधिष्ठिर अर्जुन पौत्र कुमार परिक्षित को राजद्दी पर बिठाकर तथा कृपाचार्य एवं धृतराष्ट्र- पुत्र युयुत्यु को उनकी देख भाल में नियुक्त करके अपने चारों भाइयों तथा द्रौपदी को साथ लेकर हस्तिनापुर से चल पड़े। पृथ्वी- प्रदक्षिणा के उदेश्य से कई देशों में घूमते हुए वे हिमालय को पार कर मेरु पर्वत की ओर बढ़ रहे थे। रास्ते में देवी दौपदी तथा इनके चारों भाई एक एक करके क्रमश: गिरते गए। इनके गिरने की परवाह न करते हुए युधिष्ठिर आगे बढ़ते गए। इतने में ही स्वयं देवराज इंद्र सफेद घोड़े से युक्त दिव्य रथ को लेकर सारथी सहित इन्हें लेने के लिए आए और इनसे रथ पर चढ़ जाने को कहा।
युधिष्ठिर ने अपने भाइयों तथा पत्नी द्रौपदी के बिना अकेले रथ पर बैठना स्वीकार नहीं किया। इंद्र के यह विश्वास दिलाने पर कि वे लोग आपसे पहले ही स्वर्ग पहुंच चुके है, इन्होंने रथ पर चढ़ना स्वीकार किया। परंतु इनके साथ एक कुत्ता भी था जो शुरू से ही इनके साथ चल रहा था।
देवराज इंद्र ने कहा- धर्मराज, कुत्ता रखने वालों के लिए स्वर्ग में कोई जगह नहीं है। आपको अमरता, ऐश्वर्य और सिद्धी की प्राप्ति हुई है, साथ ही स्वर्गीय सुख भी सुलभ हुए है। अत: इस कुत्ते को यहीं छोड़कर आप मेरे साथ चले।
युधिष्ठिर ने कहा- देवराज भक्त का त्याग करने से जो पाप होता है,उसका कभी अंत नही होता। संसार में वह ब्रह्म हत्या के समान माना गया है। यह कुत्ता मेरे साथ है, मेरा भक्त है फिर मै इसका त्याग कैसे कर सकता हूं।
देवराज ने कहा- मनुष्य जो कुछ दान, स्वाध्याय अथवा हवन आदि पुण्यकर्म करता है, उस पर यदि कुत्ते की दृष्टि भी पड़ जाए तो उसके फल को राक्षस हर लेते है।
इसलिए आप इस कुत्ते का त्याग कर दें। इससे आपको देवलोक की प्राप्ति होगी।
युधिष्ठिर ने कहा - भगवन्, संसार में यह निश्चित बात है कि मरे हुए मनुष्यों के साथ न किसी का मेल होता है, न विरोध। दौपदी तथा अपने भाइयों को जीवित करना मेरे वश में नहीं है।अत: मर जाने पर ही मैने उनका त्याग किया है। शरण में आए हुए को भय देना, स्त्री का वध करना, ब्राह्मण का धन लूटना और मित्रों के साथ द्रोह करना ये चार अधर्म एक ओर और भक्त का त्याग दूसरी ओर हो, तो मेरी समझ में यह अकेला ही उन चारों के बराबर है। इस समय यह कुत्ता मेरा भक्त है। और मै इसका परित्याग कभी नहीं कर सकता।
युधिष्ठिर के दृढ़ निश्चय को देखकर कुत्ते के रूप में स्थित धर्मस्वरूप भगवान धर्मराज प्रसन्न होकर अपने वास्तविक रूप में आ गए और बोले- क्षुद्र कुत्ते के लिए भी आप इंद्र के रथ का परित्याग करने के लिए आप तैयार हो गए। अत:स्वर्ग लोकर में आपकी समानता करने वाला कोई नहीं है।

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