Wednesday 23 March 2016

टैक्स

बहुत पुरानी कथा है,अरूणाचंल का राजा दिमुकुबो एक स्वार्थी राजा था। उसने अपने ऐशोआराम के खर्चे पूरे करने के लिये प्रजा पर तरह-तरह से टैक्स/लगान लगाने शुरू कर दिये। राजा के और उसके नुमाइंदों के अत्याचारों से प्रजा त्राही-त्राही कर उठी। किसी को भी समझ में नहीं आ रहा था कि दिमुकुबो को राजपद से कैसे विमुख किया जाये।
एक दिन वहाँ एक साधू आये, और लोगों से उनकी परेशानी जान कर बोले-अगर वास्तव में राजा से मुक्ति पाना चाहते हो तो पहले स्वंय के लालच को छोड़ना होगा।
लोग बोले-हमारे लालच से दिमुकुबो के द्वारा किये जाने वाले अत्याचार का क्या संबंध।
साधु बोला- हर एक के लालच का आपस में परस्पर संबंध है। तुम खेती कर धान उगा कर चाहते हो कि धान के अच्छे दाम मिलें, और अधिक दाम की मांग पूरी करने के चक्कर में मंडी में कम धान लाते हो ताकी जरूरतमंद अधिक दाम देने पर मजबूर हो जाये। इसी तरह प्रत्येक नागरिक अपने स्वार्थपूर्ति हेतू टैक्स की चोरी कर राजस्व को घाटे में ले जाता है। और राजा अपने तथा राज्य के खर्चे पूर्ण न होते देख नया टैक्स लगा देता है। यह ठीक वैसा ही है कि यदि प्रत्येक को बोला जाये कुँड में दूध का एक लोटा डालो, और हर एक यही सोचे कि बाकी सब तो दूध डालेंगें मैं गर पानी का एक लोटा डालूँ तो किसी को क्या पता चलेगा, इसतरह कुडँ दूध की जगह पानी से भर जाता है।
प्रजा को बात समझ में आई लालच का चुँबक ही सारे फसाद की जड़ है, उन्होंने लागत के अनुसार वस्तुओं की कीमत तय करी और मंडी में बेच भारी मुनाफा कमाया।
धीरे- धीरे राजस्व बढ़ने लगा तो लगान भी कम होने लगा और प्रजा खुश हो गई। तब राजा दिमुकुबो ने प्रजा के कुछ नुमाइंदों को बुलाया और बोला- अब तो आप सब मुझे स्वार्थी और ऐयाश नहीं कहेगें। अच्छा हुआ जो आप सबने साधू की बात मानी। प्रजा के कुछ नुमाइंदे सोच में पड़ गये हर वक्त महल में रहने वाले को साधू की बात कैसे पता चली। उन्हें सोच में पड़े देख राजा साधू की दाढ़ी लगा कर बोला समझ आया लालच का चुँबक। 
मित्रों आजकल हम सब का भी यही हाल है, एक के साथ दो फ्री सामान लेने के छोटे से लालच ने हमें कितने तरह के टैक्सों से घेर लिया है और हम सब बस सरकार बदलने की सोचते रहते हैं। अगर सहमत हैं तो लाइक करें।

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