Thursday 3 March 2016

निंदा का दंड-

 बहुत समय पहले की बात है एक नेक साहूकार ने सोचा कि मैंने जो इतना धन कमा लिया है तो उसके कुछ अंश का गाँव वालों के सदुपयोग के लिये लगाना चाहिये। अतः वह मंदिर के पुजारी से मिला और उसे मन की बात बताई। पुजारी ने खेतों के पास सिचाईं हेतू नहर बनवाने को कहा। उत्तम विचार जान साहूकार ने नहर बनवाई और उदघाटन पर सभी ब्राह्मणों को भोज के लिये आमंत्रित किया। 
जहाँ खुले में खाना बन रहा था वहीं ऊपर से एक चील पंजे में तड़पते हुए सांप को लिये गुजरी जिसका जहर बन रहे खाने में गिर गया। इस बात का किसी को पता न था। साहूकार ने पूजा कर सभी ब्राह्मणों को भोजन परोसा जिसे खाते ही सारे ब्राह्मण मर गये।
तब यम ने सोचा कि इतनी ब्रह्म हत्या का दोषी कौन होगा क्योंकि साहूकार ने तो जान बूझ कर जहर नहीं मिलाया था, न ही रसोईये न ऐसा कर्म किया, चील भी अनजाने ही वहाँ से गुजरी और सांप भी मृत्यु के भय से जहर उगल रहा था। तो इस कर्म का कौन भागीदार होगा।
तभी गांव में बाहर से एक आदमी आया और उसने खेत मे काम कर रहे किसान से पूछा कि नहर किसने बनवाई है, उससे मिलना चाहता हूँ। किसान बोला गांव के सारे ब्राह्मणों की हत्या करने वाले साहूकार ने बनवाई है। यम ने सुना और बोला ब्रह्म हत्या के कर्म का भागीदार यह किसान है और उसे मृत्यु के समय इस कर्म का दंड भुगतना पड़ेगा।
इसी तरह हम जाने अनजाने बिना सोचे किसी की भी निंदा कर देते हैं, जानने की कोशिश भी नहीं करते कि वह वास्तव में निंदनीय है भी कि नहीं और ऐसे कितने कर्म जोड़ लेते हैं वास्तव में जिनसे हमारा कुछ लेनादेना नहीं होता। पुराणों में भी लिखा है कि निंदा दंडनीये अपराध है जिसका कुछ भुगतान जीते जी करना पड़ता है और कुछ मर आत्मा भुगतती है। 

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