Thursday, 3 March 2016

जीवन का उद्देश्य पूर्ण करने में हमारी सहायक हों।

भगवान् अपनी संम्पूर्ण शक्तियों के साथ केवल एक मानव शरीर में अवतरित नहीं होते हैं। उनकी शक्तियाँ अनेक स्त्रियों, पुरषों व अन्य प्राणियों के रूप धारण कर भगवान् के अवतारित उद्देश्य में सहायक होते हैं। जैसे प्रभु श्री राम के रूप में अपने तीनों भाईयों के साथ व माँ की शक्ति स्वरूपा सीता,उर्मिला, मांडवी तथा श्रुर्तिकीर्ति अवतरित हुए। जो उनके अवतार के उद्देश्य को पुरा कर पाने में उनके सहायक हुए। अगर रामायण काल की सभी घटनाओं तथा सभी पात्रों का विशलेषण करें तो ज्ञात होता है कि हर एक यहां तक स्वंय रावण भी प्रभु से सदगति पाने हेतु सीता हरण करता है, वह सोचता है कि राम अगर प्रभु होगे तो उनके द्वारा मारे जाने से कल्याण होगा वरना उसकी विजय पताका निष्कंटक फहराती रहगी।
प्रभु मनुष्य जीवन में हर दुःख बड़े धैर्य के साथ स्वंय झेलते है, और हम सब के लिये एक उद्धाहरण प्रस्तुत करते हैं और इस लीला में उनकी शक्तियाँ समय पर विभिन्न रूपों में अवतारित हो उनकी सहायक बनती हैं। साधारण मनुष्य थोड़े से दुःख तकलीफ में घबरा कर कारक को कोसने में व रो कर अथवा बदले के विषय में सोचता हुआ समय व्यतीत करता है। वह कष्टों से उभरने का प्रयत्न शांत बुद्धि से नहीं करता।
रानी कैकयी के द्वारा 14 वर्षों का वनवास दिये जाने पर राम भी अपना अधिकार मांग सकते थे, वह बदले में कैकयी को जेल में डाल सकते थे, अपनी शक्तियों के बल पर संम्पूर्ण अयोध्या पर कब्जा कर सकते थे। इसी तरह लक्षमण भी राम के साथ वनवास न जा कर राजसुख भोगते। पर नहीं राम के अवतार का उद्देश्य पूर्ण करने हेतू माँ सीता जी ने अनेक कष्टों को भोगना स्वीकार किया। इसी तरह उर्मिला ने सासुओं की सेवा तथा लक्षमण के स्वामी सेवाव्रत हेतु पति से वियोग स्वीकार किया। इसी तरह भरत की प्रेम भक्ति, हनुमान की स्वामीभक्ति प्रभु अवतार के उद्देश्य पूर्ण में सहायक हुए।
लेकिन अन्य शक्तियाँ तभी सहायक होती हैं जब अवतार स्वयं कष्ट उठाने व परिस्थितियों के अनुसार निर्णय लेने को तत्पर होता है।
इसीलिये मित्रों मन से जय श्री राम बोलते हुए उन जैसे गुणों को आत्मसात करने की कोशिश करनी चाहिये जिससे बैर, ईर्ष्या, क्रोध आदी का नाश हो और हमारी अच्छी शक्तियाँ हमारे जीवन का उद्देश्य पूर्ण करने में हमारी सहायक हों।

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