Wednesday 16 March 2016

महिषासुरमर्दिनी की कैसे हुईं उत्पत्ति ?


पिछली कड़ी में आप ने जाना था कि कैसे मां शक्ति देवताओं के तेज से उत्पन्न हुई थी...उसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए आज आपको बताते है कि मां शक्ति को देवताओं ने कैसे किया अस्त्र-शस्त्रों और आभूषणों से सुसज्जित -
समस्त देवताओं के तेज पुंज से प्रकट हुई देवी को देखकर महिषासुर के सताये हुए देवता बहुत प्रसन्न हुए । भगवान शंकर ने अपने शूल से एक शूल निकालकर उन्हें दिया, फिर भगवान विष्णु ने भी अपने चक्र से चक्र उल्पन्न करके भगवती को अर्पण किया । वरूण ने भी शंख भेंट किया, अग्नि ने उन्हें शक्ति दी और वायु ने धनुष तथा बाण से भरे हुए दो तरकस प्रदान किए । सहस्त्र नेत्रों वाले देवराज इंद्र ने अपने वज्र से वज्र उत्पन्न करके दिया और ऐरावत हाथी से उतारकर एक घंटा भी प्रदान किया । यमराज ने काल दंड से दंड,वरूण ने पाश, प्रजापति ने स्फटिकाक्षकी माला तथा ब्रह्माजी ने कमंडलु भेंट किया । सूर्य ने देवी के समस्त रोम-कूपों में अपनी किरणों का तेज भर दिया । काल ने उन्हें चमकती हुई ढाल और तलवार दी । क्षीर समुद्र ने उज्जवल हार तथा कभी जीर्ण न होनेवाले दो दिव्य वस्त्र भेंट किए । साथ ही उन्होंने दिव्य चूड़ामणि, दो कुंडल, कड़े, उज्जवल अर्धचंद्र, सव बाहुओं के लिए केयूर, दोनों चरणों ते लिए निर्मल नूपुर, गले की सुंदर हंसली और सब उंगलियों में पहनने के लिए रत्नों की बनी अंगूठियां भी दीं । विश्वकर्मा ने उन्हें अत्यंत निर्मल फरसा भेंट किया । साथ ही अनेक प्रकार के अस्त्र और कवच दिए, इनके सिवा मस्तक और वक्ष:सथलपर धारण करने के लिए कभी न कुम्हलाने वाले कमलों की मालाएं दीं । जलधि ने उन्हें सुंदर कमल का फूल भेंट किया । हिमालय ले सवारी के लिए सिंह तथा भांति-भांति के रत्न समर्पित किए । धनाध्यक्ष कुबेर ने मधुसे भरा पानपात्र दिया तथा सम्पूर्ण नागों के राजा शेष ने, जो इस पृथ्वी को धारण करते हैं,उन्हें बहुमूल्य मणियों से विभूषित नागहार भेंट दिया । इसी प्रकार अन्य देवताओं ने भी आभूषण और अस्त्र-शस्त्र देकर देवीका सम्मान किया । तत्पश्चात उन्होंने बारंबार अट्टाहासपूर्वक उच्चस्वर से गर्जना की । उनके भयंकर नाद से सम्पूर्ण आकाश गूंज उठा । देवी का वह अत्यंत उच्चस्वर से किया हुआ सिंहनाद कहीं समा न सका,आकाश उसके सामने लघु प्रतीत होने लगा । उससे बड़े जोर की प्रतिध्वनि हुई, जिससे सम्पूर्ण विश्व में हलचल मच गई और समुद्र कांप उठे । पृथ्वी डोलने लगी और समस्त पर्वत हिलने लगे । उस समय देवताओं ने अत्यंत प्रसन्नता के साथ सिंहवाहिनी भवानी से कहा - देवी ! तुम्हारी जय हो । साथ ही महर्षियों ने भक्ति भाव से विनम्र होकर स्तवन किया ।
सम्पूर्ण त्रिलोकी को क्षोभग्रस्त देख दैत्यगण अपनी समस्त सेना को कवच आदि से सुसज्जित कर, हाथों में हथियार ले सहसा उठकर खड़े हो गए । देवी अपने विशाल रूप में दैत्यों पर प्रहार करने लगीं और अस्त्र-शस्त्रों की निरंतर वर्षा असुरों पर शूरू कर दी...इस तरह से देवी और असुरों का युद्ध लगातार नौ दिनों तक चलता रहा । इस युद्ध में लाखों की तादाद में दैत्यों को देवी ने मार गिराया....ऋषि-मुनियों और देवगण देवी की उपासना करते है और अंत में देवी के हाथों दैत्य महिष को मृत्यु प्राप्त हुईं ।

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