Wednesday 9 March 2016

क्यों मनाते हैं महाशिवरात्रि ?


इस व्रत की दो कथाएं है । एक का सारांश यह है कि एक बार एक धनवान मनुष्य कुसंगवश शिवरात्रि के दिन पूजन करती हुई किसी स्त्री का आभूषण चुरा लेने के अपराध में मार डाला गया, किंतु चोरी की ताक में वह आठ प्रहर भूखा - प्यासा और जागता रहा था, इस कारण स्वत: व्रत हो जाने से शिव जी ने उसको सद्गति दी । दूसरी का सारांश यह है कि शिवरात्रि के दिन एक व्याधा दिनभर शिकार की खोज में रहा, तो भी शिकार नहीं मिला । अंत में वह गुंथे हुए एक झाड़ की ओट में बैठ गया । उसके अंदर स्वयंभू शिव जी की एक मूर्ति और बिल्ववृक्ष था । उसी अवसर पर एक हरिणी पर वधिक की दृष्टि पड़ी । उसने अपने सामने पड़नेवाले बिल्वपत्रों को तोड़कर शिव जी पर गिरा दिया और धनुष लेकर बाण छोड़ने लगा । तब हरिणी उसे उपदेश देकर जीवित चली गयी । इसी प्रकार वह प्रत्येक प्रहर में आयी और चली गयी । परिणाम यह हुआ कि उस अनायास किये हुए व्रत से ही शिव जी ने उस व्याधा को सद्गति दी और भवबाधा से मुक्त कर दिया । बन सके तो शिवरात्रि का व्रत सदैव करना चाहिए और न बन सके तो 15 वर्ष के बाद ‘उद्यापन’ कर देना चाहिए । उसके लिए चावल, मूंग और उड़द आदि से ‘लिंगतोभद्र’ मण्डल बनाकर उसके बीच में सुवर्णादि के सुपूजित दो कलश स्थापना करे और चारों कोणों में तीन - तीन कलश स्थापना करें ।
इसके बाद तांबे के नांदिये पर विराजे हुए सुवर्णमय शिव जी और चांदी की बनी हुई पार्वती को बीच के दोनों कलशों पर यथाविधि स्थापना करके पद्धति के अनुसार सांगोपांग षोडशोपचार पूजन और हवनादि करे । अंत में गोदान, शय्यादान, भूयसी आदि देकर और ब्रह्मणभोजन कराके स्वयं भोजन कर व्रत को समाप्त करें । पूजन के समय शंक, घण्टा आदि बजाने के विषय में (योगिनीतंत्र में) लिखा है कि ‘शिवागारे झल्लकं च सूर्यागारे च शंकरकम् । दुर्गागारे वंशवाद्यं मधुरीं च न वादयेत् ।।’ अर्थात् शिव जी के मंदिर में झालर, सूर्य के मंदिर में शंक और दुर्गा के मंदिर में मीठी बंसरी नहीं बजानी चाहिए । शिवरात्रि के व्रत में कठिनाई तो इतनी है कि इसे वेदपाठी विद्वान ही यथाविधि संपन्न कर सकते हैं और सरलता इतनी है कि पठित - अपठित, धनी - निर्धन - सभी अपनी - अपनी सुविधा या सामर्थ्य के अनुसार शतश: रुपये लगाकर भारी समारोह से अथवा मेहनत मजदूरी से प्राप्त हुए दो पैसे के गाजर, बेर और मूली आदि सर्वसुलभ फल फूल आदि से पूजन कर सकते हैं और दयालु शिव जी छोटी - से - छोटी और बड़ी से बड़ी - सभी पूजाओं से प्रसन्न होते हैं ।

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