Sunday 20 March 2016

ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र कौन हैं हम ?


एक मित्र ने, अपनी ताजा पोस्ट में, अपने ब्राह्मण होने पर प्रश्न चिह्न लगाया है. उनकी बात से सहमत होते हुए, हमारा भी मानना है कि जन्म के आधार पर इस तरह के विभाजन अब प्रासंगिक नहीं हैं. हाँ, आध्यात्मिक या चेतना के विकास के सन्दर्भ में इस विभाजन का एक दूसरा आयाम भी है.
ओशो कहते हैं कि जहां तक मनु स्मृति मे वर्णित चार वर्णों की व्यवस्था का प्रश्न है, समाज को इस प्रकार की व्यवस्था में बाँटना बड़ा ही वैज्ञानिक प्रयोग था. यदि मनुष्यों के व्यक्तित्व के प्रकार की दृष्टि से देखें, तो पूरी समष्टि में चार तरह के ही व्यक्तित्व हैं शूद्र, वैश्य, क्षत्रिय तथा ब्राह्मण.
शूद्र : शुद्र उसे कह सकते हैं जो आलस्य से भरा है, जिसे कुछ भी करने की इच्छा नहीं है. भोजन मिल जाये, वस्त्र उपलब्ध हो जायें, बस वही पर्याप्त है, जीने के लिए. वह जी लेगा.
वैश्य : दूसरा वर्ग वैश्य है, जिसके लिये जीवन लग जाये, परंतु हर हाल में धन एकत्र करना है, पद पाना है. तिजोरी भरने के वह सब उपाय करता है, चाहे सब कुछ खो जाये, आत्मा नष्ट हो जाये, सम्वेदनायें मर जायें! पर उसे चिन्ता है, तो बस धन की, बैंक बैलेंस की.
क्षत्रिय : तीसरा क्षत्रिय वर्ग है. इसकी ज़िन्दगी में अंह्कार के सिवा कुछ नहीं है. किसी भी तरह यह साबित करना कि “मैं ही सब कुछ हूं”. बस इसी बात पर ज़ोर है इसका. धन जाये, पद जाये, जीवन जाये, सब कुछ दांव पर लगा देगा यह परंतु दुनिया को दिखा देगा कि “मै कुछ हूं”.
ब्राह्मण : ब्राह्मण वह है जो सिर्फ ब्रह्म की तलाश में है और कह्ता है कि संसार में सब व्यर्थ की आपाधापी है. न तो आलस्य का जीवन अर्थपूर्ण है, क्योंकि वो प्रमाद है; न धन के पीछे की दौड़ अर्थपूर्ण है, क्योंकि वो कहीं भी नहीं ले जाती है; न अहंकारपूर्ण जीवन अर्थपूर्ण है, क्योंकि जगत के अनंत विस्तार में हमारा अस्तित्व ही क्या है ? हम कौन हैं? कहां से आये हैं ? कहां जायेंगे ? जीवन के इन मूल प्रश्नों के साथ आत्म-साक्षात्कार की यात्रा मे उतर जाना ही ब्राह्मण होना है.
अब स्वयम ही जाँचें हम ; ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य या शूद्र – क्या हैं हम?
ब्राह्मण: वह जो ब्रह्म को जाने, समाज को दिशा दे, लोगों को सही रास्ते पर रखे। विभिन्न वर्णों की जिम्मेदारियां भी तय करना इन्ही के जिम्मे था। जब कभी देश का राजा गलत काम करने लगता था तब यही ब्राह्मण लोग उसे हटाकर दूसरे को गद्दी पर बैठा देते थे।

क्षत्रिय: जो क्षय यानि कि नुकसान को रोकने का काम करे। जैसे कि राजा, सैनिक इत्यादि।

वैश्य: इनका काम शूद्रों द्वारा उत्पादित माल का व्यापार करना होता था। अर्थव्यवस्था का महत्वपूर्ण हिस्सा।

शूद्र: (इन्हे आपने आलसी कहकर इनकी आपने बहुत गलत व्याख्या की है) ये वर्ग सबसे अधिक मेहनती और ज्ञान विज्ञान में प्रवीण होता था। चाहे शल्य क्रिया हो, या तरह तरह के यंत्र बनाना। ये सभी कार्य शूद्र लोग करते थे। राजीव दीक्षित जी के व्याख्यान से पता चलता है कि कई कार्य जैसे कि ईमारतें, स्टील या अन्य धातुएं, चिकित्सा आदि से जुड़े कई कार्यों में यही लोग लगे हुए थे।

>> जो शूद्र आलसी है, कुछ नही जानता वह शूद्र नही है
>> जो वैश्य व्यापार के नाम पर हेराफेरी और मिलावट जैसे कार्य करता है वह वैश्य नही है
>> जो क्षत्रिय अहंकारी है और कमजोंरों की रक्षा करने की बजाय अत्याचार करता है वह क्षत्रिय नही है
>> जो ब्राह्मण ब्रह्म तो क्या साधारण नीतियां और नैतिकता भी नही जानता है और रासलीला में व्यस्त रहता है, वह ब्राह्मण नही है

एक अस्पताल के डाक्टर समेत पूरे कर्मचारी शूद्र हैं। अस्पताल का मालिक जो कि उनके कार्यों का व्यापार कर रहा है वह वैश्य है। नेता, पुलिस और सेना क्षत्रिय और विभिन्न धर्मगुरू ब्राह्मण हैं।

श्रमजीवी भवेत शूद्रः धनजीवी कृषी वणिक
बलजीवी भवेत क्षत्री बुद्धिजीवी हि ब्राह्मण:
या फिर..
अन्नशाकप्रियः शूद्रः वैश्यो दुग्धदधिप्रियः
मतस्यमांसप्रियः क्षत्री ब्राह्मणो मधुरप्रियः
_
श्रणु यक्ष कुतं तात् ,न स्वध्यायोन न श्रतम |
कारणम् हि द्विजत्वे च व्रतमेव न संशयः ||………………(महाभारत वन पर्व )

अर्थात :कोई केवल वेद पाठन या कुल में जन्म लेने से ब्राह्मण नहीं बनता बल्कि अपने कर्मो से ब्राह्मण बनता है
इतना ही नहीं हमारे धार्मिक ग्रन्थ भरे पड़े है उन उदाहरणों से जिनसे यह सिद्ध होता है की जाति जन्म से नहीं कर्म से होती है और योग्यता बर्धन के साथ जाती बदली भी जा सकती है ,, और ये भी हो सकता है की माता पिता दोनों ब्राहमण हो और पुत्र शुद्र हो जाए या फिर इसका उल्टा हो (अर्थात माता पिता दोनों शुद्र हो और पुत्र ब्राहमण या क्षत्रिय ये उसकी योग्यता पर निर्भर है कुछ उदहारण देखते है –

अत्री मुनि (ब्राहमण) की दस पत्निया भद्रा अभद्रा आदि जो की रजा भाद्र्श्वराज (जो की क्षत्रिय थे ) की कन्याये थी और उन कन्याओं की माँ अप्सरा (नर्तकी )थी ,, दतात्रेय दुर्वाषा अत्री मुनि के पुत्र थे जो की ब्राह्मण हुए ||
(लिंग पुराण अध्याय ६३ )

अब आप कहेगे की जाति तो पिता से निर्धारित होती है अगर पिता ब्रह्मण है तो पुत्र तो स्वभाविक रूप से ब्रह्मण होगे ही ,,,नहीं नहीं ऐसा नहीं है वो अपनी योग्यता से ब्राह्मण हुए थे आगे देखे —
१-मातंग ऋषि जो की ब्रह्मण थे ,, एक ब्राह्मणी के गर्भ से चांडाल नाई के द्बारा उत्पन्न हुए थे ||
(महाभारत अनुपर्व अध्याय २२ )
२-ऋषभ देव राजा नाभि (जो कि क्षत्रिय ) के पुत्र थे इनसे सौ पुत्र हुय्र जिनमे से इक्यासी ब्राह्मण हुए
(देवी भागवत स्कन्द ४ )
३-राजा नीव (क्षत्रिय )ने शुक्र (ब्राह्मण ) कि कन्या से विवाह किया इनके कुल में मुदगल ,अवनीर, व्रह्द्र्थ ,काम्पिल्य और संजय हुए मुदगल से ब्राह्मणों का मौदगल्य गोत्र चला ……………..(भागवत स्कंध ९ अध्याय २१ )
इतना ही नहीं मै अन्य अनेक और उदहारण जिनसे ये सिद्ध होता है कि जाति जन्म से नहीं कर्म से निर्धारित होती थी , ये उदहारण ये भी सिद्ध करते है कि विजातीय विवाह प्रचलित थे और मान्य थे …….
एक और उदाहरण……. महर्षि काक्षिवान (ब्राह्मण ) के पिता दीर्घतमा क्षत्रिय थे और ये उनके द्वारा एक शूद्रा के गर्भ से उत्पन्न भगवान् मनु जिन्हें कथित प्रगति वादी वर्णाश्रम व्यवस्था के लिए पानी पी पी कर कोसते है , ने मनु स्मृति में स्पष्ट कहा है कि जाति कर्म से निर्धारित होती है जन्म से नहीं और क्रम के अनुसार जाति बदली भी जा सकती है ,,
भगवान् मनु कहते है —
शुद्रो ब्राह्मणतामेति ब्राह्मणश्चैती शूद्र्ताम |
क्षत्रिय यज्जन में वन्तु विधाद्वैश्याप्तथैव च|
(मनु स्मृति , अध्याय १० श्लोक ६५ )
अर्थात : शुद्र ब्राह्मणता को प्राप्त होता है , और ब्राह्मण शूद्रता को प्राप्त होता है इसी प्रकार क्षत्रिय और वैश्य कुल में जन्म् लेने बालो को जानो |
इससे स्पष्ट है कि जाति जन्म से नहीं थी योग्य शूद्र ब्राह्मण हो सकता था और अयोग्य ब्राह्मण शूद्र ,, इतना ही नहीं भगवान् मनु ने कर्म पर बहुत जोर दिया है वे कहते है अपनी अपनी जाति बनाये रखने के लिए या जाति को उच्च बनाने के लिए विहित कर्मो का करना आवश्यक है इस श्लोक में —
भगवान् मनु कहते है–
योsनधीत्य द्विजो वेद मन्यन्त्र कुरुते श्रमम|
स जीवन्नेव शुद्र्त्वमाशु गच्छति सन्वया ||
(मनु स्मृति अध्याय २१ श्लोक १६८ )
अर्थात : जो द्विज वेद को छोड़ कर अन्यंत्र टक्करे मारता है वह जीता हुआ सपरिवार शूद्र्त्व को प्राप्त होता है |
इतना ही नहीं वर्णाश्रम व्यवस्था बनाये रखना राज धर्म होता था और उनकी शुद्धता और स्पष्टता का भी आकलन होता था योगता में गिरने पर उच्च जाति छीन ली जाति थी , और योग्य होने पर जाति प्रदान भी कि जाती थी–
न तिष्ठति तू यः पूर्व नोपास्ते यास्तु पश्चिमाम |
स शूद्रव्र्द्वहिस्काय्य्र : सर्वस्माद्रद्विज कर्मणा ||
(मनु स्मृति अध्याय २२ श्लोक १०३ )
अर्थात : जो मनुष्य प्रातः वा सायं संध्या नहीं करता वह शूद्र है और उसे समस्त द्विज कर्मो से बाहर कर देना चाहिए
देखिये कर्म की व्याख्या करते हुए भगवान् पराशर क्या कहते है —
अग्निकाययित्परिभ्रस्टा : सध्योपासन : वर्जिता |
वेदं चैवसधियान :सर्वे ते वृषला स्मर्ता||
(पराशर स्मृति अध्याय १२ श्लोक २९)
अर्थात :हवन वा संध्या से रहित वेदों को न पढने वाला ब्राह्मण , ब्राह्मण नहीं शूद्र है|
बिलकुल यही बात शंख स्मृति भी दोहराती है देखे —
व्रत्या शूद्रसमास्तावद्विजेयास्ते विच्क्षणे |
याव द्वेदे न जायन्ते द्विजा जेयास्त्वा परम |
(शंख स्मृति अध्याय १ श्लोक ८ )
ब्राह्मण
ब्राह्मण को मोक्ष का पुरुषार्थ करना चाहिए .
ब्राह्मण को संन्यास आश्रम का पालन करना चाहिए .
ब्राह्मण को हर कार्य अहंकारपूर्वक करना चाहिए .
ब्राह्मण को भेद नीति का प्रयोग करना चाहिए .
ब्राह्मण को मस्तिष्क का उपयोग करना चाहिए .
ब्राह्मण का शत्रु मोह है .
ब्राह्मण को सबसे अहंकार होता है .
क्षत्रिय
क्षत्रिय को काम का पुरुषार्थ करना चाहिए .
क्षत्रिय को वानप्रस्थ आश्रम का पालन करना चाहिए .
क्षत्रिय को हर कार्य चित्त लगाकर करना चाहिए .
क्षत्रिय को दण्ड नीति का प्रयोग करना चाहिए .
क्षत्रिय को हाथ का उपयोग करना चाहिए .
क्षत्रिय का शत्रु लोभ है .
क्षत्रिय को सबसे द्वेष होता है .
वैश्य
वैश्य को अर्थ का पुरुषार्थ करना चाहिए .
वैश्य को गृहस्थ आश्रम का पालन करना चाहिए .
वैश्य को हर कार्य बुद्धिपूर्वक करना चाहिए .
वैश्य को अर्थ नीति का प्रयोग करना चाहिए .
वैश्य को पेट का उपयोग करना चाहिए .
वैश्य का शत्रु क्रोध है .
वैश्य को सबसे राग होता है .
शूद्र
शूद्र को धर्म का पुरुषार्थ करना चाहिए .
शूद्र को ब्रह्मचर्य आश्रम का पालन करना चाहिए .
शूद्र को हर कार्य मन लगा कर करना चाहिए .
शूद्र को साम नीति का प्रयोग करना चाहिए .
शूद्र को पैर का उपयोग करना चाहिए .
शूद्र का शत्रु काम है .
शूद्र सबसे ईर्ष्या करता है .
शूद्र
जो हर काम उदर यानी पेट के लिए करता है वह शूद्र |
शूद्र का मकसद बस इतना होता है की पेट भरने तक का कमा लूं |
वैश्य
जो हर काम ऐश करने के लिए करता है वह वैश्य |
वैश्य का तो पेट भरा होता है | तभी वह सेठ कहलाता है |
वही सेठ अपने कामये धन से जब ऐश करता है |
यानी वैश्यालय केवल वैश्य लोगों के लिए ही बने हैं |
वो वहां पर जाते हैं और पैसे देकर ऐश करते हैं इसलिए वैश्य कहलाते हैं |
क्षत्रिय
जो हर काम अपने क्षत्र को और विस्तारित करने के लिए करता है वह क्षत्रिय |
क्षत्र यानी छाता |
कभी भी देखा हो तो राजा हमेशा छाते में चलता है |
और इसी छाते का वह विस्तार करता है |
की मेरा छाता इतना बड़ा है |
इसलिए कहते हैं कि छा गए गुरु |
यह भी कहा जाता है कि आपकी छत्र-छाया में रहते हैं |
ब्राह्मण
जो हर काम ब्रह्म यानी परमात्मा की प्राप्ति के लिए करता है वह ब्राह्मण |

1 comment:

  1. Ager log theory jaanker itne hi imaandaar note to practical me shudro ki itni durgati apne so called Bhai hinduo ne na ki hoti. Varnvyavstha shoshan ka pratik ho chuki h
    .hazaro saal ki history gawah h. Ab isko bandaria ke mare bacche ke samaan jaan lijiye .aur new electronic computer based new samaj ka structure banana chahiye. Taaki aarakshan ka bhi solution nikal jaaye.

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