Wednesday 23 March 2016

शिव महिम्न स्तोत्र में रोहिणी, मृगशिरा तथा आर्द्रा नक्षत्र का रहस्य *

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प्रजानाथं नाथ प्रसभमभिकं स्वां दुहितरं।
गतं रोहिद् भूतां रिरमयिषुमृष्यस्य वपुषा।।
धनुष्पाणेर्यातं दिवमपि सपत्राकृतममु।
त्रसन्तं तेऽद्यापि त्यजति न मृगव्याधरभसः।। २२।।
भावार्थ: एक बार प्रजापिता ब्रह्मा अपनी पुत्री वाणी पर ही मोहित हो गए। जब उनकी पुत्री ने हिरनी का स्वरुप धारण कर भागने की कोशिश की तो कामातुर ब्रह्मा भी हिरन भेष में उसका पीछा करने लगे।
हे शंकर ! तब आप ने व्याघ्र स्वरूप में धनुष-बाण ले ब्रह्मा को मार भगाया। आपके रौद्र रूप से भयभीत ब्रह्मा आकाश दिशा में अदृश्य अवश्य हुए परन्तु आज भी वह आपसे भयभीत हैं।
आकाश में आप देखेंगे रोहिणी नक्षत्र के रूप मे मृगीरूपधारी संध्या और उसके पीछे मृगशिरा नक्षत्र (मृगशिर के ३ तारे हैं व उनका रूप हिरणियों जैसा है) के रूप मे मृगरूपधारी ब्रह्मा जी और आर्द्रा नक्षत्र के रूप मे महादेव का बाण

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