Tuesday 26 July 2016

राजा शिवाजी का पत्र-गद्दार मिर्जा राजा जयसिंह के नाम

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भारतीय इतिहास में दो ऐसे पत्र मिलते हैं जिन्हें दो विख्यात महापुरुषों ने दो कुख्यात व्यक्तिओं को लिखे थे.
इनमे पहिला पत्र"जफरनामा "कहलाता है.जिसे श्री गुरु गोविन्द सिंह ने औरंगजेब को भाई दया सिंह के हाथों भेजा था. यह दशम ग्रन्थ में शामिल है. इसमे कुल 130 पद हैं.
दूसरा पत्र शिवाजी ने आमेर के राजा जयसिंह को भेजा था. जो उसे 3 मार्च 1665 को मिल गया था.
इन दोनों पत्रों में यह समानताएं हैं की दोनों फारसी भाषा में शेर के रूप में लिखे गए हैं. दोनों की पृष्ठभूमि और विषय एक जैसी है. दोनों में देश और धर्म के प्रति अटूट प्रेम प्रकट किया गया है.
शिवाजीकापत्र बरसों तक पटना साहेब के गुरुद्वारे के ग्रंथागार में रखा रहा, बाद में उसे "बाबू जगन्नाथ रत्नाकर" ने सन 1909 अप्रैल में काशी में काशी नागरी प्रचारिणी सभा से प्रकाशित किया था.
बाद में "अमर स्वामी सरस्वती" ने उस पत्र का हिन्दी में पद्य और गद्य ने अनुवाद किया था. फिर सन 1985 में अमरज्योति प्रकाशन गाजियाबाद ने पुनः प्रकाशित किया था.
राजा जयसिंह आमेर का राजा था, वह उसी राजा मानसिंह का नाती था, जिसने अपनी बहिन अकबर से ब्याही थी. जयसिंह सन 1627 में गद्दी पर बैठा था और औरंगजेब का मित्र था. औरंगजेब ने उसे 4000 घुड सवारों का सेनापति बना कर "मिर्जा राजा" की पदवी दी थी.
औरंगजेब पूरे भारत में इस्लामी राज्य फैलाना चाहता था.लेकिन शिवाजी के कारण वह सफल नही हो रहा था. औरंगजेब चालाक और मक्कार था. उसने पाहिले तो शिवाजी से से मित्रता करनी चाही और दोस्ती के बदले शिवाजी से 23 किले मांगे. लेकिन शिवाजी उसका प्रस्ताव ठुकराते हुए 1664 में सूरत पर हमला कर दिया और मुगलों की वह सारी संपत्ति लूट ली जो उनहोंने हिन्दुओं से लूटी थी.
फिर औरंगजेब ने अपने मामा शाईश्ता खान को चालीस हजार की फ़ौज लेकर शिवाजी पर हमला करवा दिया और शिवाजी ने पूना के लाल महल में उसकी उंगलियाँ काट दीं और वह भाग गया. फिर औरंगजेब ने जयसिंह को कहा की वह शिवाजी को परास्त कर दे.
जयसिंह खुद को राम का वंशज मानता था. उसने युद्ध में जीत हासिल करने के लिए एक सहस्त्र चंडी यज्ञ भी कराया. शिवाजी को इसकी खबर मिल गयी थी जब उन्हें पता चला की औरंगजेब हिन्दुओं को हिन्दुओं से लड़ाना चाहता है. जिससे दोनों तरफ से हिन्दू ही मरेंगे.
तब शिवाजी ने जयसिंह को समझाने के लिए जो पत्र भेजा था, उसके कुछ अंश हम आपके सामने प्रस्तुत कर रहे है -
1 -जिगरबंद फर्जानाये रामचंद -ज़ि तो गर्दने राजापूतां बुलंद .
हे रामचंद्र के वंशज ,तुमसे तो क्ष त्रिओं की इज्जत उंची हो रही है .
2 -शुनीदम कि बर कस्दे मन आमदी -ब फ़तहे दयारे दकन आमदी .
सूना है तुम दखन कि तरफ हमले के लिए आ रहे हो
3 -न दानी मगर कि ईं सियाही शवद-कज ईं मुल्को दीं रा तबाही शवद ..
तुम क्या यह नही जानते कि इस से देश और धर्म बर्बाद हो जाएगा.
4 -बगर चारा साजम ब तेगोतबर -दो जानिब रसद हिंदुआं रा जरर.
अगर मैं अपनी तलवार का प्रयोग करूंगा तो दोनों तरफ से हिन्दू ही मरेंगे.
5 -बि बायद कि बर दुश्मने दीं ज़नी-बुनी बेख इस्लाम रा बर कुनी .
उचित तो यह होता कि आप धर्म दे दुश्मन इस्लाम की जड़ उखाड़ देते.
6 -बिदानी कि बर हिन्दुआने दीगर -न यामद चि अज दस्त आं कीनावर .
आपको पता नहीं कि इस कपटी ने हिन्दुओं पर क्या क्या अत्याचार किये है.
7 -ज़ि पासे वफ़ा गर बिदानी सखुन -चि कर्दी ब शाहे जहां याद कुन
इस आदमी की वफादारी से क्या फ़ायदा .तुम्हें पता नही कि इसने बाप शाहजहाँ के साथ क्या किया.
8 -मिरा ज़हद बायद फरावां नमूद -पये हिन्दियो हिंद दीने हिनूद
हमें मिल कर हिंद देश हिन्दू धर्म और हिन्दुओं के लिए लड़ाना चाहिए.
9 -ब शमशीरो तदबीर आबे दहम -ब तुर्की बतुर्की जवाबे दहम .
हमें अपनी तलवार और तदबीर से दुश्मन को जैसे को तैसा जवाब देना चाहिए.
10 -तराज़ेम राहे सुए काम ख्वेश -फरोज़ेम दर दोजहाँ नाम ख्वेश
अगर आप मेरी सलाह मानेंगे तो आपका लोक परलोक नाम होगा .
इस पत्र से आप खुद अंदाजा कर सकते है. शिवाजी का देश और धर्म के साथ हिन्दुओ के प्रति कितना लगाव था. हमें इस बात पर गर्व होना चाहिए कि हम उनके अनुयायी है. हमें उनके जीवन से सीखना चाहिए. तभी हम सच्चे देशभक्त बन सकते हैं.

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