Tuesday 26 July 2016

क्यों प्रिय है भगवान शिव को बेलपत्र


शिव पूजा का सबसे पावन दिन है सोमवार। सभी देवों में शिव ही ऐसे देव हैं जो अपने भक्तों की भक्ति-पूजा से बहुत जल्दी ही प्रसन्न हो जाते हैं। शिव भोले को आदि और अनंत माना गया है जो पृथ्वी से लेकर आकाश और जल से लेकर अग्नि हर तत्व में विराजमान हैं।
शिव पूजा में बहुत सी ऐसी चीजें अर्पित की जाती हैं जो अन्यल किसी देवता को नहीं चढ़ाई जाती, जैसे- आक, धतूर, भांग आदि लेकिन भगवान शिव को बेलपत्र सबसे ज्यादा प्रिय है।
भगवान शिव के पूजन में बेलपत्र का विशेष महत्त्व है। शिवलिंग पर बेलपत्र अर्पित करने से प्रसन्न होते हैं महादेव। मान्यता है कि शिव की उपासना बिना बेलपत्र के पूरी नहीं होती।
 बेलपत्र का महत्त्व
बेल के पेड़ की पत्तियों को बेलपत्र कहते हैं। बेलपत्र में तीन पत्तियां एक साथ जुड़ी होती हैं लेकिन इन्हें एक ही पत्ती मानते हैं। भगवान शिव की पूजा में बेलपत्र प्रयोग होते हैं और इनके बिना शिव की उपासना सम्पूर्ण नहीं होती। पूजा के साथ ही बेलपत्र के औषधीय प्रयोग भी होते हैं। इसका प्रयोग करके तमाम बीमारियां दूर की जा सकती हैं।
 बेलपत्र चढ़ाने की मान्यता
सागर मंथन के समय जब हालाहल नाम का विष निकलने लगा तब विष के प्रभाव से सभी देवता एवं जीव-जंतु व्याकुल होने लगे। ऐसे समय में भगवान शिव ने विष को अपनी अंजुली में लेकर पी लिया। विष के प्रभाव से स्वयं को बचाने के लिए शिव जी ने इसे अपनी कंठ में रख लिया इससे शिव जी का कंठ नीला पड़ गया और शिव जी नीलकंठ कहलाने लगे।
लेकिन विष के प्रभाव से शिव जी का मस्तिष्क गर्म हो गया। ऐसे समय में देवताओं ने शिव जी के मस्तिष्क पर जल उड़ेलना शुरू किया जिससे मस्तिष्क की गर्मी कम हुई। बेल के पत्तों की तासीर भी ठंडी होती है इसलिए शिव जी को बेलपत्र भी चढ़ाया गया। इसी समय से शिव जी की पूजा जल और बेलपत्र से शुरू हो गयी।
बेलपत्र और जल से शिव जी का मस्तिष्क शीतल रहता और उन्हें शांति मिलती है। इसलिए बेलपत्र और जल से पूजा करने वाले पर शिव जी प्रसन्न होते हैं। शिवरात्रि की कथा में प्रसंग है कि, शिवरात्रि की रात में एक भील शाम हो जाने की वजह से घर नहीं जा सका।
उस रात उसे बेल के वृक्ष पर रात बितानी पड़ी। नींद आने से वृक्ष से गिर न जाए इसलिए रात भर बेल के पत्तों को तोड़कर नीचे फेंकता रहा। संयोगवश बेल के वृक्ष के नीचे शिवलिंग था। बेल के पत्ते शिवलिंग पर गिरने से शिव जी प्रसन्न हो गये। शिव जी भील के सामने प्रकट हुए और परिवार सहित भील को मुक्ति का वरदान दिया। 

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