Tuesday 26 July 2016

ब्राह्मी


‘स’ वर्णस्य देवी च ब्राह्मी ब्रह्मा तु देवता ।।
ऋषिर्वशिष्ठो यन्त्रं च ब्राह्मी भूतिद्वयं पुनः॥
श्रद्धायुक्ता च विद्यन्ते फलं सृष्टिः सुसन्ततिः॥
अर्थात्- ‘स’ अक्षर की देवी ‘ ब्राह्मी ‘, देवता- ‘ब्रह्मा’, बीज- ‘ह्रीं’ ऋषि- ‘वशिष्ठ’, यन्त्र ‘ब्राह्मीयंत्रम्’, विभूति ‘श्रद्धा एवं युक्ता’ और प्रतिफल- सृजन शक्ति एवं सुसन्तति है ।’
त्रिदेव प्रसिद्ध हैं- ब्रह्मा, विष्णु, महेश, उत्पादन, अभिवृद्धि, परिवर्तन ।। इन्हें ब्राह्मी कहा जाता है ।। सृजन — उत्पादन में संलग्न संसार, की सबसे बड़ी विशेषता है ।। यह क्षमता धरती में हैं और जननी में है ।। अपने उत्पादनों से दूसरों को निहित करना और स्वयं धन्य बनना, इसी उत्कृष्टता के कारण धरती माता और जननी माता गौरवान्वित होती हैं ।।
यह ब्राह्मी माता के अनुदान हैं, जिन्हें जो जितनी मात्रा में उपलब्ध करता है, वह उसी अनुपात के महामानव बनता चला जाता है ।। ध्वंस दानवों का और सृजन देवों का सिद्धान्त हैं ।। इससे सृजन क्रियाओं में संलग्न मनुष्य ही देव- मानव कहलाते हैं ।।
गायत्री की ब्राह्मी शक्ति की साधना करने से साधक में ब्रह्म तेजस्- ब्राह्मणत्व विकसित होता है ।। ब्राह्मण पृथ्वी के देवता माने जाते हैं ।। उन्हें भूदेव कहते हैं ।।
सत्- रज में- सत्यं शिवं सुंदरम् में प्रथम वर्ग सत् या सत्य का है ।। यही ब्राह्मी विशेषता है ।। उसका अवलम्बन ग्रहण करने से व्यक्तित्व- स्वभाव में सतोगुण बढ़ता है और आचार, व्यवहार में सतोगुण का- पवित्रता एवं सादगी का अनुदान निरन्तर बढ़ता जाता है ।।
ब्राह्मी हंस वाहिनी है ।। उसके एक हाथ में पुस्तक दूसरे में कमण्डलु है ।। किशोरी कन्या उसकी वय है ।। इन अलंकारों से ब्रह्मशक्ति का स्वरूप समझने में सहायता मिलती है और उसका अनुग्रह पाने का द्वार खुलता है ।। गायत्री का वाहन सामान्य हंस नहीं, मनुष्यों में पाये जाने वाले राजहंस- परमहंस हैं ।।
राजहंस- शालीन, सज्जन, श्रेष्ठ, आदर्श ।। परमहंस- तत्त्वज्ञानी, तपस्वी, परमार्थी, जीवनमुक्त ।। गायत्री उपासना के आधार पर साधक सामान्य मानवी स्तर से ऊँचा उठकर राजहंस बनता है ।। साधना की परिपक्वता से वह परमहंस की स्थिति तक पहुँच जाता है ।। देवात्मा सिद्ध पुरुष के रूप में दृष्टिगोचर होता है ।।
नीर- क्षीर विवेक हंस का प्रधान गुण हैं ।। दूसरा है- मोती ही चुगना- कौड़ी को हाथ न लगाना ।। यही सतोगुण है ।। उत्कृष्ट चिन्तन- सद्विवेक और औचित्य को ही अपनाना- अनौचित्य से बचे रहना- यही हंस प्रवृत्ति है ।। ब्राह्मी चेतना का स्वरूप यही है ।। गायत्री का हंस वाहन है ।। अर्थात् हंस प्रवृत्ति के व्यक्तित्वों को ही वह महाशक्ति अपने निकटतम रखती है ।। दूसरा तात्पर्य यह है कि इस उपासना के फलस्वरूप साधक का सतोगुण क्रमशः बढ़ता ही चला जाता है ।।
पुस्तक से सद्ज्ञान और कमण्डलु से सत्कार्य का संकेत है, गायत्री शक्ति के दोनों हाथों में यही वरदान रखे हैं ।। ब्राह्मी साधना से अन्तःकरण में उत्कृष्ट चिन्तन की तरंगें उठती हैं ।। क्रिया- कलाप में सत्कर्म करने का उल्लास एवं साहस उभरता है ।। गायत्री को ब्राह्मण की कामधेनु कहा गया है ।।
उसका तात्पर्य यह है कि ब्राह्मी शक्ति कामधेनु का पयपान करने वाला साधक सच्चे अर्थों में ब्राह्मण बनता है और आत्मसंतोष, लोक सम्मान तथा दैवी अनुग्रह के तीनों वरदान प्राप्त करता है ।।
ऋद्धियों और सिद्धियों पर अधिकार ब्रह्म- परायण का होता है ।। जिसका बाह्य और अन्तर जीवन पवित्र है, उसी को मन्त्र सिद्धि उपलब्ध होती है ।। इसके लिए आवश्यक पात्रता गायत्री की ब्रह्म धारा के सम्पर्क से प्राप्त होती है ।।
सावित्री- सत्यवान की कथा में सावित्री ने सत्यवान को वरण किया था और उसे मृत्यु के मुख से छुड़ाने तथा लकड़हारे से राजा बना देने का अनुदान प्राप्त किया था ।। सत्यवान साधक, सावित्री की सच्ची सहायता प्राप्त कर सके, ब्राह्मी शक्ति के माध्यम से यही पृष्ठभूमि बनती है ।।
संक्षेप में ब्राह्मी शक्ति के वाहन, आयुध का विवेचन निम्न प्रकार हैः-
ब्राह्मी के चार मुख- चतुर्मुखी प्रतिभा- समझदारी, ईमानदारी, जिम्मेदारी, बहादुरी आदि वृत्तियों तथा चार हाथ- चार पुरुषार्थ (धर्म, अर्थ , काम, मोक्ष) के प्रतीक हैं ।।
हाथों में पुस्तक से वेदज्ञान, माला से सतत ध्यान- जागरूकता, जल- कमण्डलु से आद्रर्ता तथा आशीर्वाद मुद्रा से सतत अनुग्रह का बोध ।। वाहन हंस- शुभ्र आकांक्षाओं का प्रतीक है ।।

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