Friday, 22 July 2016

वामनअवतार



एक समय की बात है। युद्ध में इन्द्र से इन्द्र से हारकर दैत्यराज बलि गुरु शुक्राचार्य की शरण में गये। शुक्राचार्य ने उनके अन्दर देवभाव जगाया।
कुछ समय बाद गुरू कृपा से बलि ने स्वर्ग पर अधिकार कर लिया। प्रभु की महिमा कितनी विचित्र है कि कलका देवराज इन्द्र आज भिखारी हो गया। वह दर-दर भटकने लगा। अन्त में अपनी माता अदिति की शरण में गया। इन्द्र की दशा देख कर मां का हृदय फटने लगा। अपने पुत्र के दुःख से दुःखी अदिति ने पयोव्रत का अनुष्ठान किया। व्रत के अंतिम दिन भगवान ने प्रकट होकर अदिति से कहा- देवि चिन्ता मत करो। मैं तुम्हारे पुत्र रुप में जन्म लूंगा। इन्द्र का छोटा भाई बनकर उनका कल्याण करुंगा। यह कहकर वे अन्तर्धान हो गये। आखिर वह शुभ घड़ी आ ही गयी। अदिति के गर्भ से भगवान ने वामन के रुप में अवतार लिया। भगवान को पुत्र रुप में पाकर अदिति की गर्भ से भगवान ने वामन के रुप में अवतार लिया। भगवान को पुत्र रुप में पाकर अदिति की प्रसन्नता का ठिकाना ना रहा। भगवान को वामन ब्रह्मचारी के रुप में देख कर देवताओं और महर्षियों को बड़ा आन्नद हुआ। उन लोगों ने कश्यप जी को आगे करके भगवान का उपनयन आदि संस्कार करवाया।
उसी समय भगवान ने सुना कि राजा बलि भृगुकच्छ नामक स्थान पर अश्वमेघ यज्ञ कर रहे हैं। उन्होंने वहाँ के लिये यात्रा की। भगवान वामन कमर में मूँज की मेखला और यज्ञोपवीत धारण किये हुए थे। बगल में मृगचर्म था। सिर पर जटा थी। इसी प्रकार बौने ब्राह्मण के वेष में अपनी माया से ब्रह्मचारी बने हुए भगवान ने बलि के यज्ञ- मण्डप में प्रवेश किया। उन्हें देखकर बलिका हृदय गदगद हो गया उन्होंने भगवान को एक उत्तम आसन दिया। बलि ने नाना प्रकार से वामन की पूजा की। उसके बाद बलि ने प्रभु से कुछ मांगने का अनुरोध किया। उन्होंने तीन पग भूमि माँगी। शुक्राचार्य प्रभु की लीला समझ रहे थे। उन्होंने दान देने से बलि को मना किया। बलि ने नहीं माना। उसने संकल्प लेने के जल-पात्र उठाया। शुक्राचार्य अपने शिष्य का हित सोचकर पात्र में प्रवेश कर गये। जल गिरने का रास्ता रुक गया। भगवान ने एक कुश उठाकर पात्र के छेद में डाल दिया। उनकी एक आँख फूट गयी। संकल्प पूरा होते ही भगवान वामन ने एक पग में पृथ्वी और दूसरे में स्वर्ग नाप लिया। तीसरे पग में बलि ने अपने आपको सौंप दिया। बलि को इस समर्पणभाव से भगवान प्रसन्न हुए। उन्होनें उसे सुतल लोक का राज्य दे दिया। इन्द्र को स्वर्ग का स्वामी बना दिया।
कहा जाता है कि भगवान वामन द्वारपाल के रूप में राजा बलि को और उपेन्द्र के रुप में इन्द्र को नित्य दर्शन देते हैं।
परम दयालु वामन भगवान को हम सब नमस्कार करते हैं।

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