प्रयाग वह स्थान है जहा पर ब्रह्मा जी ने अपनी मैथुनी सृष्टि का प्रथम सोपान रखा. इस विकृति को देखते हुए पृथ्वी भविष्य में अपनी छाती पर होने वाले पाप, अत्याचार, हिंसा, द्रोह एवं पाखण्ड आदि को देख कर ब्रह्मा जी के आगे रोने विलाप करने लगी. ब्रह्मा जी पृथ्वी के करुण क्रंदन से द्रवित होकर यहाँ पर एक बहुत बड़ा यज्ञ किया. इस यज्ञ में वह स्वयं पुरोहित, भगवान विष्णु यजमान एवं भगवान शिव उस यज्ञ के देवता बने. इतना बड़ा यज्ञ हुआ कि उसके आहट मात्र से त्रिलोक का समस्त पाप विध्वंश के कगार पर पहुँच गया.
तब अंत में तीनो देवताओं ने अपनी शक्ति पुंज के द्वारा पृथ्वी के पाप बोझ को हल्का करने के लिये एक “वृक्ष” उत्पन्न किया. यह एक बरगद का वृक्ष था. तीनो देवताओं ने पृथ्वी से कहा कि यह वृक्ष तुम्हारे ऊपर होने वाले समस्त पापो का क्षय करता रहेगा. इस परम पवित्र वृक्ष के पापहारी प्रभाव से ब्रह्मा जी को उनके मैथुनी सृष्टि करने से लगे पाप का चतुर्थांश तत्काल समाप्त हो गया. ब्रह्माजी अचंभित होकर रह गये. चूंकि ब्रह्मा जी ने इतना बड़ा यज्ञ यहाँ करवाया. इस लिये इसका नाम प्रयाग पड़ गया.
“प्र” का अर्थ होता है बहुत बड़ा तथा “याग’ का अर्थ होता है यज्ञ. ‘प्रकृष्टो यज्ञो अभूद्यत्र तदेव प्रयागः” इस प्रकार इसका नाम ‘प्रयाग’ पडा. और इस प्रकार अंत में फिर ब्रह्मा जी ईश्वर क़ी इच्छा सर्वोपरि मान कर अपने लोक चले गये. इस देवभूमि का प्राचीन नाम प्रयाग ही था.
जब मुस्लिम शासक अकबर यहाँ आया. तों इस वृक्ष के प्रभाव के परिणाम स्वरुप उसे हिन्दू धर्म में कुछ आस्था उत्पन्न हुई. उसने हिन्दू रानी एवं राजा मान सिंह क़ी बहन योद्धा बाई से विवाह किया. तथा इस वृक्ष के पास ही अपना किला बनवा कर अपनी सेना के साथ यहाँ रहने लगा.
उसने हिन्दू एवं मुस्लिम दोनों धर्मो को मिलाकर एक नया धर्म चलाया जिसका नाम उसने “दीनेइलाही” रखा. इस प्रकार “इलाही” जहां पर “आबाद” हुआ वह इलाहाबाद हुआ.
स्वर्ग लोक से अपनी थोड़ी सी चूक के कारण जब गंगाजी को धरती पर आना हुआ तों उसने भगवान से यह प्रार्थना किया कि हे प्रभु ! आप क़ी आज्ञा शिरोधार्य कर के मै धरती पर जा रही हूँ. किन्तु क्या मुझे वहां पर कोई और सहारा देने वाला नहीं होगा?
भगवान ने बताया कि पृथ्वी पर एक बरगद का वृक्ष है. तुम उसके पास से होकर गुजरोगी. उसके स्पर्श से तुम जितने प्राणियों के पाप धोकर ऊब जाओगी, यह वृक्ष तुम्हारे उस पाप को दूर करेगा. गंगा जी प्रसन्न मन से पृथ्वी पर आयीं. तथा वही गंगाजी इस परम पावन बरगद के वृक्ष के पास से होकर ही गुजरती है.
भगवान सूर्य देव क़ी दो पत्नियां थी. एक का नाम संज्ञा तथा दूसरी का नाम छाया था. संज्ञा जब सूर्य देव के साथ रहते हुए उनक़ी गर्मी नहीं बर्दास्त कर सकीं तों उन्होंने अपनी ही तरह क़ी एक छाया के रूप में एक औरत का निर्माण किया. तथा उसे भगवान सूर्य के पास छोड़ कर अपने मायके चली गयीं.
सूर्य देव उसे ही अपनी पत्नी मान कर एवं जान कर उसके साथ रहने लगे. संज्ञा के गर्भ से दो जुड़वे बच्चे जन्म लिये. उसमें लडके का नाम यम तथा लड़की का नाम यमी पडा. यम यमराज हुए तथा यमी यमुना हुई. सूर्या की दूसरी पत्नी छाया के गर्भ से शनि देव का जन्म हुआ. जब यमुना भी अपनी किसी भूल के परिणाम स्वरुप धरती पर आने लगी तों उसने अपने उद्धार का मार्ग भगवान से पूछा.
भगवान ने बताया कि धरती पर देव नदी गंगा में मिलते ही तुम पतित पावनी बन जाओगी. किन्तु गंगा जी ने काली कलूटी यमुना को अपने में मिलाने से मना कर दिया.
उधर भगवान श्री कृष्ण मथुरा में अपने साथी ग्वाल बालों के साथ यमुना किनारे गेंद खेलते हुए अपने गेंद को यमुना में फेंक दिये. यमुना में कालिया नाग रहता था. भगवान गेंद लाने के लिये यमुना में कूद पड़े. कालिया नाग ने उन्हें पकड़ लिया. भगवान ने उसे यमुना में ही दबा दिया. उसका पुरा विष यमुना में फ़ैल गया. और यमुना और ज्यादा विषाक्त एवं काली नीली हो गयी.
गंगा जी के इंकार को सुन कर यमुना बहुत निराश एवं दुखी हुई. गंगा जी के इनकार से उत्पन्न हुई अपनी पुत्री क़ी व्यथा से भगवान सूर्य भी बहुत दुखी एवं क्रोधित हुए. उन्होंने कहा कि हे गंगे ! जिस घमंड एवं अमर्ष से परिपूरित होकर तुम अपने आगे किसी को कुछ नहीं समझ रही हो वह घमंड तेरा चूर होगा. तुम केवल पाप धोने वाली ही नहीं बल्कि पृथ्वी पर मल-मूत्र, मुर्दा एवं गन्दगी भी धोने वाली होगी.
गंगा जी इस शाप से काँप गयीं. वह रोने गिड़ गिडाने लगी. भगवान विष्णु ने गंगा को आश्वासन देते हुए कहा कि सूर्य देव का दिया गया शाप मै मिटा तों नहीं सकता. किन्तु इतना अवश्य वरदान दे रहा हूँ कि धरती पर चाहे कितना भी बड़ा यज्ञ या पूजा पाठ क्यों न हो , बिना तुम्हारे जल के वह पूर्ण नहीं हो सकता है.
तथा यमुना को कहा कि हे यमुना ! तुम प्रयाग स्थित वटवृक्ष के नीचे से होकर गुजरोगी. तुम्हारा जल उसके पत्तो को स्पर्श करते ही निर्मल एवं पाप विनाशक हो जाएगा. गंगा भी प्रसन्न हो गयी. उन्होंने कहा कि अब यमुना को अपने में मिलाने से मेरी भी महत्ता बढ़ जायेगी.
जब सरस्वती को पता चला कि ऐसा वृक्ष प्रयाग में स्थित है. तों वह भी ब्रह्मा जी से अनुमति लेकर स्वर्णभूमि छोड़ कर आकर प्रयाग में इन दोनों नदियों में शामिल हो गयीं.
सरस्वती पूर्व काल में स्वर्णभूमि में बहा करती थी. स्वर्णभूमि का बाद में नाम स्वर्णराष्ट्र पडा. धीरे धीरे कालान्तर में यह सौराष्ट्र हो गया. किन्तु यह सौराष्ट्र प्राचीन काल में पुरा मारवाड़ भी अपने अन्दर समेटे हुए था. सरस्वती यहाँ पर बड़े ही प्रेम से रहती थीं. सोने चांदी से नित्य इनकी पूजा अर्चना होती थी.
धीरे धीरे चूंकि इस प्रदेश से सटा हुआ यवन प्रदेश (खाड़ी देश) भी था, अतः यहाँ के लोग यवन आचार विचार के मानने वाले होने लगे. सरस्वती इससे ज्यादा दुखी थीं इधर इनको मौक़ा मिल गया. और उन्होंने ब्रह्माजी से अनुमति लेकर मारवाड़ एवं सौराष्ट्र छोड़ कर प्रयाग में आकर बस गयीं.
और तब से सरस्वती के वहां से चले आने के बाद वहां के लोगो में बुद्धि एवं ज्ञान का क्षय होने लगा. तथा वह पूरी भूमि ही मरू भूमि में परिवर्तित हो गयी. जो आज राजस्थान के नाम से प्रसिद्ध है. इसकी कथा भागवत पुराण में बड़े ही विस्तार से बतायी गयी है. आज पुरातत्व विभाग ने अपनी खुदाई एवं खोज से इस बात को सत्य प्रमाणित मान रहा है.
क्रमशः_____
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