_____
एक राजा को पक्षी पालने का शौक था। अपने पाले पक्षियों में एक बाज उन्हें इतना प्रिय था कि उसे वे अपने हाथ पर बैठाए रहते और कहीं जाते तो साथ ही ले जाते थे। एक बार राजा वन में आखेट करने गए। उनका घोड़ा दूसरे साथियों से आगे निकल गया। राजा वन में भटक गए। उन्हें बहुत प्यास लगी थी। घूमते हुए उन्होंने देखा कि एक चट्टान की संधि से बूंद-बूंद करके पानी टपक रहा है।
राजा ने वहां एक प्याला जेब से निकाल कर रख दिया। कुछ देर में प्याला भर गया। राजा ने प्यास की व्यग्रता में प्याला उठाकर पीना चाहा, किंतु उसी समय उनके कंधे पर बैठा बाज उड़ा और उसने पंख मारकर प्याला लुढ़का दिया। राजा को बहुत क्रोध आया, किंतु उन्होंने प्याला फिर भरने के लिए रख दिया। बड़ी देर में प्याला फिर भरा। जब वे पीने को उद्यत हुए तो बाज ने फिर पंख मारकर उसे गिरा दिया। क्रोधित राजा ने बाज की गर्दन मरोड़कर उसे मार डाला।
जब बाज को नीचे फेंककर उन्होंने सिर उठाया तो उनकी दृष्टि चट्टान की संधि पर पड़ी। वहां एक मरा सर्प दबा था और उसके शरीर में से वह जल टपक रहा था। राजा समझ गए कि जल पीकर मैं मर न जाऊं, इसलिए बाज ने बार-बार जल गिराया। उन्हें बहुत दुख हुआ, किंतु अब अपने क्रोध पर पश्चाताप के सिवाय उनके पास कुछ नहीं बचा था।
सार यह है कि क्रोध एक ऐसा दुर्गुण है, जो मनुष्य का विवेक हर लेता है और विवेकहीन मनुष्य अपने हितैषी का भी शत्रु हो जाता है। अत: क्रोध पर नियंत्रण रखना जरूरी है।
एक राजा को पक्षी पालने का शौक था। अपने पाले पक्षियों में एक बाज उन्हें इतना प्रिय था कि उसे वे अपने हाथ पर बैठाए रहते और कहीं जाते तो साथ ही ले जाते थे। एक बार राजा वन में आखेट करने गए। उनका घोड़ा दूसरे साथियों से आगे निकल गया। राजा वन में भटक गए। उन्हें बहुत प्यास लगी थी। घूमते हुए उन्होंने देखा कि एक चट्टान की संधि से बूंद-बूंद करके पानी टपक रहा है।
राजा ने वहां एक प्याला जेब से निकाल कर रख दिया। कुछ देर में प्याला भर गया। राजा ने प्यास की व्यग्रता में प्याला उठाकर पीना चाहा, किंतु उसी समय उनके कंधे पर बैठा बाज उड़ा और उसने पंख मारकर प्याला लुढ़का दिया। राजा को बहुत क्रोध आया, किंतु उन्होंने प्याला फिर भरने के लिए रख दिया। बड़ी देर में प्याला फिर भरा। जब वे पीने को उद्यत हुए तो बाज ने फिर पंख मारकर उसे गिरा दिया। क्रोधित राजा ने बाज की गर्दन मरोड़कर उसे मार डाला।
जब बाज को नीचे फेंककर उन्होंने सिर उठाया तो उनकी दृष्टि चट्टान की संधि पर पड़ी। वहां एक मरा सर्प दबा था और उसके शरीर में से वह जल टपक रहा था। राजा समझ गए कि जल पीकर मैं मर न जाऊं, इसलिए बाज ने बार-बार जल गिराया। उन्हें बहुत दुख हुआ, किंतु अब अपने क्रोध पर पश्चाताप के सिवाय उनके पास कुछ नहीं बचा था।
सार यह है कि क्रोध एक ऐसा दुर्गुण है, जो मनुष्य का विवेक हर लेता है और विवेकहीन मनुष्य अपने हितैषी का भी शत्रु हो जाता है। अत: क्रोध पर नियंत्रण रखना जरूरी है।
No comments:
Post a Comment