एक बार राधा रानी को एक सर्प ने काट लिया। राधा जी की सभी सखियाँ दौड़ी-दौड़ी माँ के पास आई और कहती है अपनी बेटी को देखो एक काले सर्प ने इसे डस लिया है। और राधा की के सर से दोहनी गिर गई और वो बेहोश हो गई। अब इसके विष को उतरने के लिए किसी गुणी को बुलाना पड़ेगा। माँ डर गई और रोते रोते राधा जी को अपने ह्रदय से लगा लिया। सूरदास जी कहते हैं की श्याम बहुत ही गुणवान हैं वे ही राधा का यह विष उतार सकते हैं।
एक सखी कहने लगी यदि राधा जी को ठीक करना है तो कृष्ण जी को बुला लाओ। अगर कृष्ण जी आ जायेंगे तो राधा जी तुरंत ही जीवित हो जाएँगी। क्योंकि कृष्ण जी गारुड़ी हैं। तीनो लोकों में उनसे श्रेष्ठ कोई नही है। सूरदास जी बता रहे हैं की राधा रानी को ठीक करने के लिए आज कृष्ण जी को बुलाया जा रहा है।
अब राधा रानी की सखियाँ कृष्ण जी की मैया यशोदा के पास आई है और कहती हैं- तुम्हारा कृष्ण सांप के विष को मन्त्रों से उतारने वाले गारुड़ी हैं; आप अपने पुत्र को हमारे साथ भेज दो। राधा रानी को काले सांप ने डस लिया है।
एक सखी कहने लगी यदि राधा जी को ठीक करना है तो कृष्ण जी को बुला लाओ। अगर कृष्ण जी आ जायेंगे तो राधा जी तुरंत ही जीवित हो जाएँगी। क्योंकि कृष्ण जी गारुड़ी हैं। तीनो लोकों में उनसे श्रेष्ठ कोई नही है। सूरदास जी बता रहे हैं की राधा रानी को ठीक करने के लिए आज कृष्ण जी को बुलाया जा रहा है।
अब राधा रानी की सखियाँ कृष्ण जी की मैया यशोदा के पास आई है और कहती हैं- तुम्हारा कृष्ण सांप के विष को मन्त्रों से उतारने वाले गारुड़ी हैं; आप अपने पुत्र को हमारे साथ भेज दो। राधा रानी को काले सांप ने डस लिया है।
ये सब सुनकर माँ मुस्कराने लगी की अभी थोड़ी देर पहले तो राधा मेरे घर आई थी। सूरदास जी कहते हैं राधा रानी की मूर्च्छा के मूल कारण को समझकर माँ यशोदा चुप हो गई( और सखियों को वह कारण नही बताया)
माँ ने कृष्ण जी को पुकारा। और माँ कहती है राधा के यहाँ कीरति नाम की ग्वालिन तुम्हे बुलाने आई थी, तुम वहां चले जाओ। राधा को काले सांप ने डस लिया है। और तुम कबसे गारुणी बन गए लाला। जैसी जाओ और उसका विष झाड़ आओ। सूरदास जी कहते हैं की माँ ने मन ही मन मुस्कराकर कहा- कृष्ण! सुना है तुम कुछ ऐसा जंत्र-मन्त्र जानते हो की काले सांप का विष उतार जाता है।
माँ ने कृष्ण जी को पुकारा। और माँ कहती है राधा के यहाँ कीरति नाम की ग्वालिन तुम्हे बुलाने आई थी, तुम वहां चले जाओ। राधा को काले सांप ने डस लिया है। और तुम कबसे गारुणी बन गए लाला। जैसी जाओ और उसका विष झाड़ आओ। सूरदास जी कहते हैं की माँ ने मन ही मन मुस्कराकर कहा- कृष्ण! सुना है तुम कुछ ऐसा जंत्र-मन्त्र जानते हो की काले सांप का विष उतार जाता है।
भगवान कृष्ण जी गारुणी बनकर वहां आये। जब वृषभानु सुता- राधा ने सुना तो मन में प्रसन्न हुई। की कृष्ण आज मेरे द्वार पर आये हैं। और अपने आप को राधा जी धन्य समझने लगती है। प्रेमवश में वह एकदम मुरझा गई, और राधा जी की आँखों से प्रेम के आंसू गिरने लगे।
राधा को इस प्रकार देखकर माँ और भी व्याकुल हो गई। वे समझने लगी की राधा के एक-एक अंग में विष का गहरा प्रभाव हो गया है। लेकिन सूरदास जी कहते हैं की माँ चाहे जो समझे लेकिन प्रेम पूर्ण ह्रदय के प्रेम भावों को तो राधा और कृष्ण दोनों ही पूरी तरह से समझ रहे हैं।
राधा को इस प्रकार देखकर माँ और भी व्याकुल हो गई। वे समझने लगी की राधा के एक-एक अंग में विष का गहरा प्रभाव हो गया है। लेकिन सूरदास जी कहते हैं की माँ चाहे जो समझे लेकिन प्रेम पूर्ण ह्रदय के प्रेम भावों को तो राधा और कृष्ण दोनों ही पूरी तरह से समझ रहे हैं।
माँ रोती-रोती व्याकुल होकर इधर-उधर फिर रही है। वे अपनी पुत्री को बार बार गले से लगाती है और राधा की दशा देखकर पानी-पानी हो रही है। माँ दौड़कर आई कृष्ण जी के पैरों को पकड़कर के कहने लगी- हे मोहन! मेरी लाड़ली बेटी राधा बहुत ही व्याकुल है। कृपा करके इसे ठीक कर दो।
तब कृष्ण ने कुछ झाड़ फूंक करने शुरू कर दिया। और राधा जी को स्पर्श किया। जैसे ही उन्होंने राधा जी को स्पर्श किया तो एकदम से किशोरी जी , श्री राधा रानी ने आँखे खोल दी। सूरदास जी कहते हैं- श्री कृष्ण जी वास्तव में बहुत बड़े गारुणी हैं। शरीर का विष तो उन्होंने झाड़ दिया लेकिन मन और सर पर प्रेम का जादू कर दिया।
अब राधा जी ने होश में आकर अपने नेत्र खोले और आगे कृष्ण जी को खड़े देखा तो बस एकटक निहारती रही। फिर लाज से एकदम कड़ी हुई और अपने अंग वस्त्रों को सँभालने लगी।
फिर राधा जी अपनी माँ से पूछती हैं की आज क्या है? सब लोग इकट्ठे क्यों हैं?
माँ ने कहा- राधा तुम्हे सांप ने डस लिया था। और तुम्हे अपने तन-मन की सुधि नही रह गई थी। सूरदास जी कहते हैं की माता राधा को बताने लगी की कृष्ण ने मन्त्रों के द्वारा तुम्हारा उपचार किया है।
राधा की माँ बार-बार कुंवर कन्हाई की बड़ाई कर रही है। माँ ने कृष्ण जी के मुख को चूमा,गले से लगाया और फिर अपने घर भेज दिया।
वह कहती हैं की माँ यशोदा की कोख धन्य-धन्य है जिससे कृष्ण जैसे सुपुत्र का अवतार हुआ है। इसने तो तुरंत ही ऐसा उपाय कर दिया की मेरी मरी हुई बेटी को जिन्दा कर दिया। माता मन ही मन सोचती है की राधा-कृष्ण की यह जोड़ी तो मनो विधना में सोच-समझकर बनाई है( कितना अच्छा हो की राधा को कृष्ण जैसे वर प्राप्त हो) सूरदास जी कहते हैं की ब्रज के घर-घर में यह चर्चा चल पड़ी की कृष्ण जी बहुत बड़े गारुड़ी हैं।
भगवान ने इस तरह से सुंदर प्रेम लीला की। फिर भगवान ने महारास भी रचाया है। कृष्ण 11 वर्ष की अवस्था में श्रीकृष्ण मथुरा चले गए थे। और राधा और कृष्ण का 100 साल का वियोग हुआ है। जिसके पीछे एक श्राप हैं
कुछ संत कहते हैं की ये श्राप राधा जी को नही बल्कि कृष्ण जी को हुआ। क्योंकि एक बार वृन्दावन जाने के बाद 100 वर्षों तक श्री कृष्ण दोबारा वृन्दावन नही जा सके। और मन ही मन कहते थे हे राधे मैंने तुम्हारा क्या अपराध कर दिया। मैं वृन्दावन आना चाहता हूँ लेकिन तुम्हारी कृपा के बिना कोई जीव जंतु तक वृन्दावन में नही आ सकता है।
100 वर्ष बीत जाने पर राधा और कृष्ण दोनों का पुनर्मिलन कुरुक्षेत्र में बताया जाता है, जहां सूर्यग्रहण के अवसर पर द्वारिका से कृष्ण और वृंदावन से नंद के साथ राधा आई थीं। राधा सिर्फ कृष्ण को देखने और उनसे मिलने ही नंद के साथ गई थी। इसका जिक्र पुराणों में मिलता है।
और सत्य तो ये है। राधा कृष्ण की लीला कल भी होती थी , आज भी होती है और हमेशा होती रहेंगी ।
तब कृष्ण ने कुछ झाड़ फूंक करने शुरू कर दिया। और राधा जी को स्पर्श किया। जैसे ही उन्होंने राधा जी को स्पर्श किया तो एकदम से किशोरी जी , श्री राधा रानी ने आँखे खोल दी। सूरदास जी कहते हैं- श्री कृष्ण जी वास्तव में बहुत बड़े गारुणी हैं। शरीर का विष तो उन्होंने झाड़ दिया लेकिन मन और सर पर प्रेम का जादू कर दिया।
अब राधा जी ने होश में आकर अपने नेत्र खोले और आगे कृष्ण जी को खड़े देखा तो बस एकटक निहारती रही। फिर लाज से एकदम कड़ी हुई और अपने अंग वस्त्रों को सँभालने लगी।
फिर राधा जी अपनी माँ से पूछती हैं की आज क्या है? सब लोग इकट्ठे क्यों हैं?
माँ ने कहा- राधा तुम्हे सांप ने डस लिया था। और तुम्हे अपने तन-मन की सुधि नही रह गई थी। सूरदास जी कहते हैं की माता राधा को बताने लगी की कृष्ण ने मन्त्रों के द्वारा तुम्हारा उपचार किया है।
राधा की माँ बार-बार कुंवर कन्हाई की बड़ाई कर रही है। माँ ने कृष्ण जी के मुख को चूमा,गले से लगाया और फिर अपने घर भेज दिया।
वह कहती हैं की माँ यशोदा की कोख धन्य-धन्य है जिससे कृष्ण जैसे सुपुत्र का अवतार हुआ है। इसने तो तुरंत ही ऐसा उपाय कर दिया की मेरी मरी हुई बेटी को जिन्दा कर दिया। माता मन ही मन सोचती है की राधा-कृष्ण की यह जोड़ी तो मनो विधना में सोच-समझकर बनाई है( कितना अच्छा हो की राधा को कृष्ण जैसे वर प्राप्त हो) सूरदास जी कहते हैं की ब्रज के घर-घर में यह चर्चा चल पड़ी की कृष्ण जी बहुत बड़े गारुड़ी हैं।
भगवान ने इस तरह से सुंदर प्रेम लीला की। फिर भगवान ने महारास भी रचाया है। कृष्ण 11 वर्ष की अवस्था में श्रीकृष्ण मथुरा चले गए थे। और राधा और कृष्ण का 100 साल का वियोग हुआ है। जिसके पीछे एक श्राप हैं
कुछ संत कहते हैं की ये श्राप राधा जी को नही बल्कि कृष्ण जी को हुआ। क्योंकि एक बार वृन्दावन जाने के बाद 100 वर्षों तक श्री कृष्ण दोबारा वृन्दावन नही जा सके। और मन ही मन कहते थे हे राधे मैंने तुम्हारा क्या अपराध कर दिया। मैं वृन्दावन आना चाहता हूँ लेकिन तुम्हारी कृपा के बिना कोई जीव जंतु तक वृन्दावन में नही आ सकता है।
100 वर्ष बीत जाने पर राधा और कृष्ण दोनों का पुनर्मिलन कुरुक्षेत्र में बताया जाता है, जहां सूर्यग्रहण के अवसर पर द्वारिका से कृष्ण और वृंदावन से नंद के साथ राधा आई थीं। राधा सिर्फ कृष्ण को देखने और उनसे मिलने ही नंद के साथ गई थी। इसका जिक्र पुराणों में मिलता है।
और सत्य तो ये है। राधा कृष्ण की लीला कल भी होती थी , आज भी होती है और हमेशा होती रहेंगी ।
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