Wednesday, 13 July 2016

गुरु ने बताया कि कर्मो से ही मिलता है स्वर्ग या नर्क

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     एक बार एक शिष्य को समझ नहीं आ रहा था कि स्वर्ग-नर्क मृत्यु के बाद प्राप्त होते हैं या जीते-जी मिलते हैं। इस प्रश्न के जवाब के लिए वह अपने गुरु के पास गया। गुरुदेव समझाने की बजाय उसे साथ लेकर पहले एक शिकारी के पास पहुंचे।

       शिकारी कुछ पक्षियों को पकड़कर लाया और उन्हें काटने लगा। शिष्य शिकारी के इस कृत्य को देखकर घबरा गया। उसने गुरुदेव से कहा- गुरुजी, यहां से चलिए यहां तो नर्क है।

       गुरुदेव ने कहा- इस शिकारी ने न जाने कितने जीवों को मारा होगा। इसके लिए तो यहां भी नर्क है और मृत्यु के बाद भी। फिर गुरुदेव शिष्य को एक वेश्या के यहां ले जाने लगे। यह देख शिष्य बोला- गुरुजी, आप मुझे ये कहां लेकर जा रहे हैं?

        गुरुदेव बोले- यहां के वैभव को देखो। मनुष्य किस तरह अपना शरीर, शील व चरित्र बेचकर सुखी हो रहा है। पर शरीर का सौंदर्य नष्ट होते ही यहां कोई नहीं आता। इनके लिए संसार स्वर्ग की तरह है, पर अंत नर्क के समान। इसके पश्चात गुरु-शिष्य एक गृहस्थ के यहां गए।

     गृहस्थ परिश्रमी, नेक व ईमानदार था। गुरुदेव ने कहा- यही वह व्यक्ति है, जिसके लिए जीवित रहते हुए इस पृथ्वी पर भी स्वर्ग है और मृत्यु के उपरांत भी स्वर्ग ही प्राप्त होगा। शिष्य को अच्छी तरह समझ आ गया कि स्वर्ग और नर्क अपने कर्मो का फल है और वह संसार में रहते हुए ही हमें भुगतना पड़ता है।

वस्तुत: कर्मो के आधार पर ही मनुष्य को स्वर्ग और नर्क की प्राप्ति होती है और मृत्यु के बाद ही नहीं, जीवित रहते हुए ही।

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