Wednesday 6 July 2016

माता सीता के स्वयंवर की कथा


सीता के स्वयंवर की कथा वाल्मीकि रामायण और रामचरित मानस के बालकांड सहित सभी रामकथाओं में मिलती है। वाल्मीकि रामायण में जनक द्वारा सीता के लिए वीर्य शुल्क का संबोधन मिलता है। जिसका अर्थ है राजा जनक ने यह निश्चय किया था कि जो व्यक्ति अपने पराक्रम के प्रदर्शन रूपी शुल्क को देने में समर्थ होगा, वही सीता से विवाह कर सकेगा। किशोरी सीता के लिए योग्य वर प्राप्त करना कठिन हो गया था, क्योंकि सीता ने मानव-योनि से जन्म नहीं लिया था। अंत में राजा जनक ने सीता का स्वयंवर रचा। एक बार दक्ष यक्ष के अवसर पर वरुण देव ने राजा जनक को एक धनुष और बाणों से आपूरित दो तरकश दिये थे। वह धनुष अनेक लोग मिलकर भी हिला नहीं पाते थे। जनक ने घोषणा की कि जो मनुष्य धनुष को उठाकर उसकी प्रत्यंचा चढ़ा देगा, उससे वे सीता का विवाह कर देंगे। महाराज जनक ने उपस्थित ऋषिमुनियों के आशीर्वाद से स्वयंवर के लिये शिवधनुष उठाने के नियम की घोषणा की। सभा में उपस्थित सभी राजकुमार, राजा व महाराजा धनुष उठाने में विफल रहे। यह देखकर विश्वामित्र ने राम से प्रतियोगिता में हिस्सा लेने को कहा। गुरु की आज्ञा मानते हुए श्रीराम ने अत्यंत सहजता से वह धनुष उठाकर चढ़ाया और मध्य से तोड़ डाला। इस प्रकार स्वयंवर को जीत श्रीराम ने माता सीता से विवाह किया था। इस विवाह से धरती, पाताल और स्वर्ग लोक में खुशियों की लहर दौड़ पड़ी। राजा दशरथ और जनक ने अपनी वंशावली का पूर्ण परिचय देकर सीता और उर्मिला का विवाह राम और लक्ष्मण से तथा विश्वामित्र के प्रस्ताव से कुशध्वज की दो सुंदरी कन्याओं मांडवी-श्रुतकीर्ति का विवाह भरत तथा शत्रुघ्न के साथ निश्चित कर दिया

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