Wednesday, 6 July 2016

साईं सद्चरित


परमब्रह्म इन्द्रियों और विषयों से बिलकुल परे है ऐसा हर जगह कहा गया है। गीता में भी कृष्ण अर्जुन से कहते हैं,"तुम मुझे अपनी इन प्राकृतिक आँखों से नहीं देख सकते उसके लिए दिव्य नेत्र चाहिए।"
लेकिन साँई बाबा का ये किस्सा आपकी सोच बदल सकता है-
बाबा ने कभी उपवास नहीं किया और न किसी को करने दिया। उपवास से मन शांत नहीं रहता, तब परमार्थ की पूर्ती कैसे होगी? प्रथम आत्मा की तृप्ति होना जरूरी है(wow आत्मा खाना खाती है?) भूखे रहकर ईश्वर की प्राप्ति संभव नहीं है। अगर शरीर में शक्ति नहीं होगी तो हम कौन से आखों से भगवान् को देखेंगे? किस जीभ से उनका गुणगान करेंगे और किस कान से उनकी महिमा सुनेगे? सभी इन्द्रियों को उनकी विषय वस्तु मिलती रहे तो वो बलिष्ठ रहेंगी।(32 अध्याय)
साईं हमेशा कहते थे "मैं यादे हक़ हूँ" (अल्लाह का ग़ुलाम)। वो हमेशा "अल्लाह मालिक" जपते रहते थे। बाबा रोज खाने से पहले फातिहा पढ़ते थे और नियमित कुरआन का पाठ करते थे। वो रोज मछली, बकरा, नमकीन मीठ चावल, मीठ वाला प्रशाद आदि बनाते थे। रोज रात को बाबा मस्जिद में सोने से पहले घंटों बातें किया करते थे। उनके कुछ भक्त उनके साथ ही सोते थे। बाबा अपने हाथों से चिलम जलाते थे और फिर एक एक कर सब चिलम पीते थे। देर रात तक चिलम पीते पीते और बातें करते करते बाबा अपने भक्तों को परमानन्द दिया करते थे।
इस प्रकार का ब्रह्मानन्द लेने का सौभाग्य कई बार साईं सद्चरित के लेखक को भी प्राप्त हुआ था।

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