छत्तीसगढ़ देश का एक अनूठा राज्य है, जिसके भूगर्भ में न जाने कितने रहस्य और मिथक छिपे पड़े हैं। छत्तीसगढ़ के प्रयागराज के रुप में प्रसिद्ध राजिम क्षेत्र में पुरातत्ववेत्ताओं को खुदाई में देवी लक्ष्मी के चरण चिह्न मिले हैं।
यह पहला अवसर है कि जब पौराणिक कथाओं में बार-बार 'श्री क्षेत्र' के रुप में वर्णित राजिम में पुरातात्विक खुदाई में देवी लक्ष्मी की पूजा के साक्ष्य मिले हैं।
पौराणिक कथाओं में उल्लिखित 'श्री क्षेत्र' को धन की देवी लक्ष्मी का निवास-स्थान बताया गया है। "श्री" का अर्थ होता है- धन, ऐश्वर्य, संपदा आदि।
राजिम में देवी लक्ष्मी का चरण चिह्न मिलने से बात की पुष्टि होती है कि राजिम क्षेत्र को पौराणिक कथाओं में 'श्री क्षेत्र' कहा जाना बेबुनियाद नहीं है।
छत्तीसगढ़ में पहली बार मिले हैं देवी लक्ष्मी के चरण-चिह्न
पुरातत्वविद् डॉ. अरुण शर्मा के अनुसार, "माता लक्ष्मी के चरण चिह्न पूरे छत्तीसगढ़ में पहली बार मिले हैं। ये मौर्यकालीन उत्तर मुखी त्रिदेवी मंदिर में लाल पत्थर पर अंकित मिलते हैं। ये चरण चिह्न दो कमल फूलों पर मिले हैं, जिसमें से एक कमल का फूल सीधा और एक उल्टा है।"
उन्होंने बताया, "उल्टे कमल फूल के ऊपर ये चरणचिन्ह हैं। चरण चिह्न् 60 गुणा 60 सेंटीमीटर के लाल पत्थर पर मिले हैं। इसके ऊपर 15 सेंटीमीटर के व्यास के अंदर ये चिह्न् अंकित हैं।
डॉ. शर्मा का कहना है, "माता लक्ष्मी के चरण चिन्ह मिलने से इस बात की प्रामाणिकता सिद्ध होती है कि पौराणिक कथाओं में राजिम क्षेत्र को श्री क्षेत्र कहा जाता था। वहीं लक्ष्मी देवी की उपासना ढाई हजार साल पूर्व से चली आ रही है।"
इससे पहले प्राप्त हुए हैं मौर्यकालीन उत्तरमुखी मंदिर
उल्लेखनीय है कि इससे पहले राजिम के सीताबाड़ी में एक मंदिर परिसर में बड़े-बड़े पत्थरों को तराशकर बनाए गए तीन गर्भगृहों में विराजित लक्ष्मी, सरस्वती और दुर्गा देवी का उत्तरमुखी मंदिर भी मिल चुका है। माना जा रहा है कि ये मंदिर ढाई हजार साल पुराने हैं यानी यानी मौर्यकालीन हैं।
इन मंदिरों के क्षतिग्रस्त होने की बाबत पुरातत्वशास्त्रियों का मानना है कि ये मंदिर 12वीं शताब्दी में बाढ़ से क्षतिग्रस्त हो गए थे।
भगवान नृसिंह की शांत मुद्रावाली की मूर्ति भी मिली
पुरातत्वविद् डॉ. अरुण शर्मा ने बताया, "माता लक्ष्मी के चरण चिह्न् मिलने के साथ ही राजिम में एक व्यक्ति के यहां शांत मुद्रा वाली नृसिंह की मूर्ति भी मिली है। मूर्ति 10 गुणा 9 गुणा 2.5 सेंटीमीटर की है।"
उन्होंने बताया, "ये मूर्ति छत्तीसगढ़ में अब तक चार स्थानों पर प्राप्त हुई है। इसमें सिरपुर, गिदपुरी, केशकाल तथा अब राजिम शामिल है। मूर्ति काले ग्रेनाइड पत्थर की बनी हुई है।"
उल्लेखनीय है कि अबतक भगवान नृसिंह की हिरण्यकश्यप का वध करती हुई प्रतिमा मिलती आई है। लेकिन नृसिंह भगवान की शांत मुद्रा वाली भारत के किसी स्थान से पहली बार प्राप्त हुए हैं।
No comments:
Post a Comment