द्वारिकाधीश भगवान कृष्ण के चरणों से जयपुर की धरती पवित्र है। हजारों साल पहले मथुरा से द्वारिका जाते समय कान्हा आमेर के रास्ते से निकले थे। द्वापर युग में कान्हा की इस यात्रा का गवाह है, नाहरगढ़ पहाड़ी स्थित चरण मंदिर।
बताया जाता है कि यहां पर कृष्ण के चरण पड़े थे। इसके बाद ही इसका नाम चरण मंदिर हो गया। मंदिर में श्री कृष्ण के दाहिने पैर और उनकी गायों के पांच खुरों के प्राकृतिक निशान की पूजा होती है।
लोक मान्यता व शास्त्रों के अनुसार द्वापर युग में आज का विराटनगर तब विराट जनपद था। कृष्ण अपने प्रिय पाण्डवों से अज्ञातवास व वन गमन के समय कई बार यहां मिलने आए थे। उनके ढूंढाड़ की धरा पर आने का प्रमाण अम्बिका वन (आमेर ) का भागवत प्रसंग भी है।
द्वापर युग में नाहरगढ़ के पास में स्थित चरण मंदिर का पहाड़ी वन क्षेत्र अम्बिका वन के नाम से जाना जाता था।
ग्वालों व नंदबाबा के संग कृष्ण भी आए थे आमेर
भागवत पुराण के मुताबिक भगवान योगेश्वर कृष्ण नंदबाबा व ग्वालों के संग अम्बिका वन में आए। उन्होंने अम्बिकेश्वर महादेव की पूजा की। अम्बिकेश्वर महादेव मंदिर आज भी आमेर में मौजूद है। अम्बिका वन में कृष्ण के साथ आए नंदबाबा को एक अजगर ने पकड़ लिया तब श्री कृष्ण ने नंदबाबा को अजगर से मुक्त कराया।
भागवत के मुताबिक वह अजगर इन्द्र के पुत्र सुदर्शन के रूप में प्रकट हुआ।। सुदर्शन ने कृष्ण को बताया कि उसने कुरूप ऋषियों का अपमान कर दिया था, इससे नाराज ऋषियों ने अजगर बनने का श्राप दिया। नाहरगढ़ पहाड़ी पर चरण मंदिर के नीचे सुदर्शन की खोळ और नाहरगढ़ में सुदर्शन मंदिर आज भी प्रसिद्ध है।
मानसिंह ने बनाया था चरण मंदिर
पन्द्रहवीं शताब्दी में आमेर नरेश मानसिंह (प्रथम) ने चरण मंदिर को भव्य रूप दिया था। सवाई जयसिंह द्वितीय ने नाहरगढ़ पहाड़ी पर सुदर्शन गढ़ के नाम से किला बनवाना शुरू किया, लेकिन नाहरसिंह भोमिया के व्यवधान के कारण किले का नाम सुदर्शन गढ़ के बजाय नाहरगढ़ रखना पड़ा।
मान्यता है कि बृज से आमेर के नाहरगढ़ पहाडि़यों के क्षेत्र में पहले कदम्ब के पेड़ों का घना वन भी था। चरण मंदिर के नीचे सुदर्शन की खोळ में श्रीकृष्ण के अति प्रिय कदम्ब के हजारों पेड़ आज भी मौजूद है। कदम्ब कुंड में हजारों कदम्ब के पेड़ हैं।
भक्तिकाल में वृंदावन की पावन धरा से जयपुर के आराध्य देव भगवान गोविंद देव और गोपीनाथ के यहां लाए गए विग्रह साक्षात श्रीकृष्ण के रूप लावण्य की हूबहू कृति माने जाते हैं।
कृष्ण के प्रपोत्र पद्मनाभ ने अपनी दादी के बताये कृष्ण के वर्णन अनुसार इन मूर्तियों का निर्माण करवाया था। औरंगजेब ने मंदिरों को खण्डित करना शुरु किया तब गोस्वामीजी विग्रह को ढूंढाड़ की धरा पर ले लाए।
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