Wednesday 6 July 2016

श्राप

वेदवती का रावण को श्राप
राजा धर्मद्वज का कुशध्वज नामक एक धर्मात्मा भाई था। उसका विवाह मालावती नामक युवती से हुआ। धर्मध्वज के भांति कुशध्वज भी भगवती जगदम्बा का अनन्य भक्त था। वह प्रतिदिन उनके मायाबीज मंत्र का जाप करता था। भगवती कि कृपा से कुशध्वज के घर एक सुन्दर कन्या उत्पन्न हुई। वह कन्या महालक्ष्मी का अंश थी। जन्म लेते ही वह कन्या वेद मंत्रो का उच्चारण करते हुए सुतिकाग्रिः से बाहर निकल आई। अतः विद्वानों ने उसका नाम वेदवती रखा।
माता पिता के भांति वेदवती के ह्रदय में भी भक्ति का अथाह सागर उमड़ रहा था। युवा होने पर उसने घर त्याग दिया और पुष्कर क्षेत्र मे जाकर कठोर तपस्या करने लगी। उसने कई वर्षों तक निराहार रहकर कठोर तप किया, लेकिन फिर भी उसका शरीर सुन्दर और हृष्ट पृष्ट रहा। उसकी तपस्या का एकमात्र उद्देश्य भगवान विष्णु को प्राप्त करना था।
एक दिन वह ध्यान में लीन थी कि तभी एक आकाशवाणी हुई-"देवी! तुम जिन परब्रम्ह को पाने के लिए कठोर तप कर रही हो,अगले जन्म में तुम्हे उनकी पत्नी बनने का सौभाग्य प्राप्त होगा। भगवान् विष्णु स्वयं पत्नी रूप में तुम्हारा वरण करेंगे। सहस्रों वर्षो तक कठोर तप करने के बाद भी ऋषि-मुनिगण जिनके दुर्लभ दर्शनों के लिए तरसते रहते है, वे परब्रम्ह अपने चरणों में स्थान प्रदान करेंगे।"
आकाशवाणी सुनकर वेदवती का उद्वेलित ह्रदय शांत हो गया फिर वह हिमालय पर जाकर पहले से अधिक कठोर तप करने लगी।
उन दिनों सम्पूर्ण दक्षिण दिशा में दैत्यराज रावण का अधिकार था। रावण ने अपने बल, पराक्रम और दिव्य शक्तियों द्वारा देवताओं को भी पराजित कर दिया था। उसके नाम से दसों दिशाएं कापती थी। यक्ष, गन्धर्व, देवगण सभी भयभीत होकर उसकी स्तुति करते थे।
एक दिन भ्रमण करते हुए रावण कि दृष्टि वेदवती पर पड़ी। वेदवती के रूप सौंदर्य और यौवन को देखकर वह उस पर मोहित हो गया। वह वेदवती के पास गया और बोला,"हे सुंदरी, तुम कौन हो और इस निर्जन वन में क्या कर रही हो? तुम्हारा सौन्दर्य अप्सराओं को भी चुनौती दे रहा है। अवश्य तुम देवलोक की कोई सुंदरी हो। सुंदरी मै तुमसे विवाह कर तुम्हे अपनी पटरानी बनाना चाहता हूं। तुम मेरे साथ लंका चलो। मै तुम्हारे चरणों में अपना सारा ऐश्वर्य और वैभव अर्पित कर दूंगा।"
वेदवती ने रावण का प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया और उसे लौट जाने के लिए कहा लेकिन रावण ने बल पूर्वक वेदवती का हाथ पकड़ लिया। तब वेदवती क्रोध में भर कर बोली,"पापी! तुने मुझे स्पर्श कर अपने काल को आमंत्रित किया है। मै तुझे श्राप देती हूं अगले जन्म में मै तेरे और तेरे वंश के नाश का कारण बनूँगी!"
इसके बाद वेदवती ने योगाग्नि में स्वयं को भस्म कर लिया शापित रावण लंका लौट गया।
त्रेता युग में वेदवती राजा जनक की कन्या सीता हुई। भगवान विष्णु के अंशावतार श्री राम ने सीता जी का वरण किया। वनवास के समय रावन सीता का हरण कर उन्हें लंका ले गया बाद में सीता को प्राप्त करने के लिए श्री राम ने रावण सहित उसके संपूर्ण वंश को नष्ट कर डाला। कहा जाता है कि द्वापर में वेदवती ने द्रौपदी के रूप में भी जन्म लिया था।

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