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हम कितने योग्य हैं इस बात को चार लोग समझते हैं। एक हैं संसारी लोग, जिनसे हमारा बहुत गहरा नाता नहीं है। ये संसारी लोग हमारी योग्यता को थोड़ा-बहुत समझते हैं।
दूसरा वर्ग होता है हमारे निकट के लोगों का। इनमें हमारे माता-पिता, भाई, बहन, जीवन साथी और रिश्तेदार हो सकते हैं।
तीसरे हम खुद जो अपनी योग्यता से भली-भांति परिचित होते हैं।
इन तीनों से सबसे ऊपर होता है भगवान। वह जानता है कि हम कितने सक्षम हैं और क्या कर सकते हैं।
बाकी तीन जगह आप बड़ी-बड़ी बातें हांक सकते हैं परंतु ईश्वर के सामने सबकुछ साफ होता है। वह परम शक्ति किसी भी काम के लिए हमारा चयन पहले ही कर लेती है।
किष्किंधा कांड में एक बड़ी सुंदर घटना आती है। सारे वानर प्रसन्न होकर सीताजी की खोज में चल पड़े, लेकिन हनुमानजी जो बहुत सहज और सरल थे, पीछे खड़े रहे।
तुलसीदासजी ने लिखा है,
‘पाछे पवन तनय सिरू नावा। जानि काज प्रभु निकट बोलावा।। परसा सीस सरोरुह पानी। करमुद्रिका दीन्हि जन जानी।।’
इन पंक्तियों में हनुमानजी की सरलता और श्रीराम की सजगता प्रकट होती है। पहली बात तो यह कि हनुमानजी को प्रदर्शन करना बिल्कुल पसंद नहीं था और रामजी जानते थे कि बहुत सारे लोग जा रहे हैं पर कौन होगा, जो मेरा काम करेगा।
इसीलिए उन्होंने हनुमानजी को जो सबसे पीछे थे, समीप बुलाया और अपनी अंगूठी निकालकर दे दी। यह हनुमान के प्रति उनका विश्वास था। हमें भी अपनी योग्यता पर इतना भरोसा होना चाहिए कि परमात्मा हम पर विश्वास कर सकें।
वे चयन करेंगे तो मानकर चलिए हम सफल होकर रहेंगे। इसलिए थोड़ा धैर्य, थोड़ी समझ रखते हुए अपने नेतृत्व को यह विश्वास दिलाइए कि वह हम पर भरोसा कर सकता है। इस प्रसंग में हनुमानजी यही सीख दे रहे हैं।
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