Tuesday, 12 July 2016

सत्संग बनकर दूसरों को सुख दें

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दार्शनिक क्षेत्र में प्राय: कहा जाता है कि यह कभी न भूलो कि जीवन के अंत में मौत के साथ क्या जाएगा?

सिकंदर जब इस दुनिया से गया तो उसके दोनों हाथ खाली थे। यह बात सुनने में बिल्कुल सीधी लगती है। यदि इस संवाद के पीछे के दर्शन को ठीक से समझा जाए तो जीते-जी बहुत बड़ी उपलब्धि हाथ लग जाएगी।

यह तय है कि अंत समय दुनिया ने जो आपको दिया होगा वह आप नहीं ले जा सकते, लेकिन जो आपने दुनिया को दिया होगा वह आपके साथ जरूर जाएगा।

मृत व्यक्ति के साथ जाती हुईं चीजें दिखती नहीं, लेकिन स्मृति में होती हैं, चर्चा में होती हैं, अनुभूति में होती हैं।

हम जब संसार में रहते हैं तो इस दुनिया को क्या दे सकते हैं? सबसे पहले है धन। जरूरी नहीं है कि हमारे पास धन हो।

धन भी हो तो जरूरी नहीं कि हमारे पास देने का मन हो। इसलिए एक चीज संसार के लोगों को जरूर दें और वह है समय।

दूसरों को ऐसा समय दीजिए जो उनके लिए हितकारी हो। जैसे कोई दुखी हो और यदि उसे आपके साथ वक्त बिताने का मौका मिल जाए तो उसका दुख खुशी में बदल जाएगा।

अपने घर-परिवार के लोगों को उनके हिस्से का समय दीजिए। अभी तो न सिर्फ हम उनके हिस्से का समय चुरा रहे हैं, बल्कि डाका भी डाल रहे हैं। उन्हें समय देने का सबसे अच्छा तरीका है, भोजन के समय साथ रहें।

शरीर को दो तरह की भूख होती है। दोनों में वह घनिष्ठता चाहता है। शरीर की भूख भोग-विलास से मिटती है, लेकिन सूक्ष्म शरीर पवित्र संग चाहता है।

मनुष्य ने मनुष्य से पहला संबंध भोजन के माध्यम से ही जाना। बच्चा अपनी मां से पहली बार उसके दूध के जरिये जुड़ता है।

भोजन में आत्मीयता होती है, इसलिए संसार में रहते हुए दूसरों को ऐसा समय दीजिए कि वह सत्संग बनकर उन्हें सुख प्रदान करे।

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