Friday, 8 July 2016

हमारा सबसे दिव्य शिवलिंग हमारा अपना अंगूठा है

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जब हम अपनी चार उंगलिओं को मोड़ कर अंगूठा ऊपर करते हैं तब हमारा अंगूठा एक शिव लिंग का आकार ले लेता है .

यही है हमारे शरीर में हमारा साथ सदा रहने वाला शिव लिंग. यदि आपको कहीं मंदिर में कोई शिव लिंग उपलब्ध नही हो पाता है तो आप अपने अंगूठे पर ही जलाभिषेक करके भगवान शिव की पूजा कर सकते हैं .

      अंगूठे का नाखून शिव लिंग के साथ में चन्द्र का प्रतीक है .

अंगूठे पर बनी तीन मोटी रेखाएं प्राकृतिक रूप से इस शिवलिंग को तिलक करती हैं .

नाखून के पीछे की रेखाएं (जिनका प्रयोग फिंगर प्रिंट के लिए होता है ) वो भगवान शिव की जटाएं हैं .

हर व्यक्ति के अंगूठे रूपी शिव लिंग में ये जटाएं  एक अलग तरह की होती हैं .

बिना अंगूठे के प्रयोग के आप केवल अपनी बाक़ी चार उँगलियों से कोई बड़ा कार्य जैसे भार उठाना ,लिखना आदि नही कर सकते क्योंकि आप बिना शिवजी की सहायता के कुछ नही कर सकते.

अंगूठे से तिलक करने से आपको भगवान शिव का आशीर्वाद स्वतः मिल जाता है .

शिवलिंग मुद्रा

बाएं हाथ को पेट के पास लाकर सीधा रखें। दाएं हाथ की मुठ्ठी बना कर बाईं हथेली पर

रखें और दाएं हाथ का अंगूठा सीधा ऊपर की ओर रखें। नीचे वाले बाएं हाथ की अंगुलियाँ

और अंगूठा मिला कर रखें। दोनों बाजुओं की कोहनियाँ सीधी रखें। इस मुद्रा को शिवलिंग
मुद्रा कहते हैं।

शिवलिंग मुद्रा दिन में दो बार पाँच मिनट के लिए लगाएं।
लाभ :

@ शिवलिंग मुद्रा लगाने से सुस्ती, थकावट दूर हो नयी शक्ति का विकास होता है।

@ शिवलिंग मुद्रा लगाते हुए लम्बे व गहरे सांस लेने चाहिये।

@ शिवलिंग मुद्रा लगाने से मानसिक थकान व चिंता दूर होती है

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