Saturday 9 July 2016

राज-राजेश्वरी माता मंदिर

मराठों से युद्ध में विजय मिलने के बाद सवाई प्रताप सिंह ने जलमहल के पीछे बंध की घाटी में तांत्रिक विधि से राज-राजेश्वरी माता मंदिर बनवाया। भगवान दत्तात्रेय की परम्परा के सिद्ध संत अमृतपुरी महाराज के निर्देशन में स्थापित मंदिर में आठ भुजाओं के भैरवनाथ और दस भुजा वाले हनुमानजी की अति दुर्लभ मूर्तियां हैं। पांच मुख के भगवान शिव एवं माता के सामने गणेशजी व सूर्य भगवान विराजमान है।

मराठों की सेना जयपुर पर हमला करने आई तब जयपुर की सेना ने तूंगा के पास मराठों से मुकाबाला किया। मराठों का हमला तेज होने लगा तब महाराजा प्रताप सिंह युद्ध क्षेत्र से निकलकर गुर्जरघाटी में प्रभातपुरी की खोल की गुफा में अमृतपुरी महाराज की शरण में आए। संत अमृतपुरी ने राज-राजेश्वरी माता का मंदिर बनवाने का वादा करवाने के बाद युद्ध में विजयी होने का आशीर्वाद दिया।

जयपुर की सेना के युद्ध में जीतने के बाद प्रताप सिंह ने वादा पूरा करने के लिए अमृतपुरी महाराज के निर्देशन में बंध की घाटी में राज-राजेश्वरी माता का मंदिर बनवाया और मंदिर की सेवा-पूजा के पेटे मालपुर चौड़ गांव जागीर में दिया। जयपुर बसने के पहले से ही भगवान दत्तात्रेय की संत परम्परा के गणेशपुरी महाराज नाहरगढ़ किले के नीचे प्रभातपुरी खोल की गुफा में रहने लगे थे। उनके शिष्य प्रभातपुरी महाराज ढूंढाड़ में प्रसिद्ध संत हुए। गुफा के बाहर पहाड़ से झरना भी गिरता है।

वर्ष 1899 में छप्पनियां अकाल के बाद सवाई माधोसिंह द्वितीय ने प्रभातपुरी बांध बनवाया। अब इस बांध में सूराख होने से बरसात का जल नहीं ठहरता। नाहरगढ़ के नाहर सिंह भोमिया भी गणेशपुरी महाराज के शिष्य थे। छाजू सिंह बड़नगर ने पांच युवराज में गणेशपुरी का जन्म गुजरात में होना बताया है।

अल्पायु में माता-पिता की मृत्यु के बाद गणेशपुरी ने भगवान दत्तात्रेय को गुरू मानकर साधना शुरू की। वे गुजरात के गिरनार, काठियावाड़ होते हुए मालवा पहुंचे। उन्होंने शिप्रा नदी के किनारे पर करीब बीस साल तपस्या की। बाद में गणेशपुरी ने अपने शिष्य नाहर सिंह भोमिया के साथ आमेर रियासत में गुर्जरघाटी में पहाड़ी की खोल में तीस साल तक तपस्या की।

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