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ब्रह्म-ज्ञान और तन्त्र का साथ अनादि काल से रहा है। सही मायने में यह दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। लेकिन कलियुग में ब्रह्म-ज्ञान और तन्त्र को अलग-अलग कर दिया गया है। कलयुग में तन्त्र का इतना वीभत्स स्वरूप आम व्यक्ति को दिखाया गया कि वह तन्त्र और तान्त्रिक के नाम मात्र से डरने लगा।
तन्त्र का वह काला पन्ना जो की दुश्मनों के लिऐ या दुष्टों के सर्वनाश के लिऐ तान्त्रिक इस्तेमाल करते थे, कलियुग में धन के लोभी उसी काले तन्त्र को आम व्यक्ति पर इस्तेमाल करने लगे। विधि के विधान का निरादर करने वाले इन लोभी तांत्रिकों का इतना भयावह अन्त होता है, कि इनकी मृत्यु के उपरान्त इनका कोई नाम लेवा तक नहीं बचता।
किन्तु जो सतपुरूष होते है, वह तन्त्र का सही इस्तेमाल करते हुऐ या उचित प्रयोग करते हुऐ उसके द्वारा ब्रह्म को प्राप्त होते है और ऐसे तांत्रिक ब्रह्म-ज्ञानियों का नाम इतिहास में सुनहरे अक्षरों में लिखा जाता है।
अगर हम ध्यान-पुर्वक इतिहास का अध्ययन करे तो हमें पता चलेगा की अनुचित प्रयोग करने वालों और उचित प्रयोग करने वालों का कैसा अन्त हुआ।
अगर बात करे त्रेता-युग की तो रावण, कुम्भकर्ण, मेघनाथ तीनो ही तंत्र के ज्ञाता थे एवं तीनों ही उस ब्रह्म को समझने और जानने वाले थे। कोई माने या न माने लेकिन सही मायने में ये तीनों महान विद्वान पंडित थे।
लेकिन तन्त्र का अनुचित प्रयोग करने के कारण ही ये असमय मृत्यु को प्राप्त हुऐ। लेकिन रावण को मारने के कारण ही जो ब्रह्म-हत्या का दोष भगवान राम पर लगा, उसके प्रायश्चित स्वरूप उन्होने अश्वमेध यज्ञ करवाया।
लेकिन आज अनेकों मूढ़-मति रावण, मेघनाथ और कुम्भकर्ण के पुतले जलाते है। सोचिये इन का क्या होगा। भगवान राम ने तो रावण को मार कर अश्वमेध यज्ञ करके अपना प्रायश्चित पूरा किया, किन्तु कलयुग में रावण का पुतला जलाने वाले, जो की कोई भी प्रायश्चित नही करते, इनका क्या परिणाम होगा।
यह तो विधि ही जानती है, कि तन के पाप से बड़ा मन का पाप होता है। जिस रावण ने जो गुनाह किया था। उसकी सजा विधि के अनुसार उसे प्राप्त हुई, लेकिन आज हम काल्पनिक रूप में पुतले बना कर जलाते है।
जिसका की हमें कोई अधिकार नहीं है। कोई भी धर्म या कोई भी मत गुनहगार को उसके किये हुऐ गुनाह की सजा एक बार देता है, न की बार-बार।
जबकि हम तो रावण को जला कर हर साल गुनाह करते है, तो क्या हम इसकी सजा से बच पायेंगे। हमारे अन्दर जो मन, बुद्धि और आत्मा है। उसका हम सही इस्तेमाल ही नहीं करते। अगर हम मन बुद्धि और आत्मा का सही प्रयोग करें तो हम से कभी भी जाने-अनजाने, तन या मन का गुनाह नहीं होगा।
तंत्र का प्रयोग करके जो गुनाह रावण ने किया। विधि ने समय के अनुसार उसको सजा दी। लेकिन रावण को जला कर जो गुनाह हम साल कर रहें है। सोचिये विधि उसकी कितनी भयावह सजा हमें देगी। हमारे कहने का तात्पर्य यही है, कि अगर कोई भी व्यक्ति तंत्र का दुर-उपयोग करता है, तो वह विधि के विधान से बच नहीं सकता। समय अनुसार उसको सजा अवश्य मिलेगी।
ब्रह्म-ज्ञान और तन्त्र का साथ अनादि काल से रहा है। सही मायने में यह दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। लेकिन कलियुग में ब्रह्म-ज्ञान और तन्त्र को अलग-अलग कर दिया गया है। कलयुग में तन्त्र का इतना वीभत्स स्वरूप आम व्यक्ति को दिखाया गया कि वह तन्त्र और तान्त्रिक के नाम मात्र से डरने लगा।
तन्त्र का वह काला पन्ना जो की दुश्मनों के लिऐ या दुष्टों के सर्वनाश के लिऐ तान्त्रिक इस्तेमाल करते थे, कलियुग में धन के लोभी उसी काले तन्त्र को आम व्यक्ति पर इस्तेमाल करने लगे। विधि के विधान का निरादर करने वाले इन लोभी तांत्रिकों का इतना भयावह अन्त होता है, कि इनकी मृत्यु के उपरान्त इनका कोई नाम लेवा तक नहीं बचता।
किन्तु जो सतपुरूष होते है, वह तन्त्र का सही इस्तेमाल करते हुऐ या उचित प्रयोग करते हुऐ उसके द्वारा ब्रह्म को प्राप्त होते है और ऐसे तांत्रिक ब्रह्म-ज्ञानियों का नाम इतिहास में सुनहरे अक्षरों में लिखा जाता है।
अगर हम ध्यान-पुर्वक इतिहास का अध्ययन करे तो हमें पता चलेगा की अनुचित प्रयोग करने वालों और उचित प्रयोग करने वालों का कैसा अन्त हुआ।
अगर बात करे त्रेता-युग की तो रावण, कुम्भकर्ण, मेघनाथ तीनो ही तंत्र के ज्ञाता थे एवं तीनों ही उस ब्रह्म को समझने और जानने वाले थे। कोई माने या न माने लेकिन सही मायने में ये तीनों महान विद्वान पंडित थे।
लेकिन तन्त्र का अनुचित प्रयोग करने के कारण ही ये असमय मृत्यु को प्राप्त हुऐ। लेकिन रावण को मारने के कारण ही जो ब्रह्म-हत्या का दोष भगवान राम पर लगा, उसके प्रायश्चित स्वरूप उन्होने अश्वमेध यज्ञ करवाया।
लेकिन आज अनेकों मूढ़-मति रावण, मेघनाथ और कुम्भकर्ण के पुतले जलाते है। सोचिये इन का क्या होगा। भगवान राम ने तो रावण को मार कर अश्वमेध यज्ञ करके अपना प्रायश्चित पूरा किया, किन्तु कलयुग में रावण का पुतला जलाने वाले, जो की कोई भी प्रायश्चित नही करते, इनका क्या परिणाम होगा।
यह तो विधि ही जानती है, कि तन के पाप से बड़ा मन का पाप होता है। जिस रावण ने जो गुनाह किया था। उसकी सजा विधि के अनुसार उसे प्राप्त हुई, लेकिन आज हम काल्पनिक रूप में पुतले बना कर जलाते है।
जिसका की हमें कोई अधिकार नहीं है। कोई भी धर्म या कोई भी मत गुनहगार को उसके किये हुऐ गुनाह की सजा एक बार देता है, न की बार-बार।
जबकि हम तो रावण को जला कर हर साल गुनाह करते है, तो क्या हम इसकी सजा से बच पायेंगे। हमारे अन्दर जो मन, बुद्धि और आत्मा है। उसका हम सही इस्तेमाल ही नहीं करते। अगर हम मन बुद्धि और आत्मा का सही प्रयोग करें तो हम से कभी भी जाने-अनजाने, तन या मन का गुनाह नहीं होगा।
तंत्र का प्रयोग करके जो गुनाह रावण ने किया। विधि ने समय के अनुसार उसको सजा दी। लेकिन रावण को जला कर जो गुनाह हम साल कर रहें है। सोचिये विधि उसकी कितनी भयावह सजा हमें देगी। हमारे कहने का तात्पर्य यही है, कि अगर कोई भी व्यक्ति तंत्र का दुर-उपयोग करता है, तो वह विधि के विधान से बच नहीं सकता। समय अनुसार उसको सजा अवश्य मिलेगी।
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