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एक बार एक लंबा काफिला बगदाद की ओर जा रहा था। रास्ते में उस पर डाकू टूट पड़े और लूटमार करने लगे। चारो ओर हाहाकार मच गया। उस काफिले में 9 वर्ष का एक बालक भी था, जो एक और चुपचाप खड़ा इस लूटमार को देख रहा था। एक डाकू की नजर बालक पर पड़ी। उसने बालक से पूछा- तेरे पास भी कुछ है?
बालक ने उत्तर दिया- मेरे पास 40 अशर्फियां है।
डाकू हंसा और बोला- क्या कहा? तेरे 40 अशर्फियां हैं।
बालक ने कहा- मैं सत्य कहा रहा हूं। डाकू ने बालक का हाथ पकड़कर सरदार के पास ले गया और बोला- यह बालक अपने पास 40 अशर्फियां बताता है। सरदार ने बालक को अशर्फियां बताने को कहा। बालके ने अपनी सदरी उतारी और उसके अस्तर को फाड़कर अशर्फियां सामने डाल दी। डाकू हैरान रह गए। सरदार ने पूछा- लड़के, अशर्फियां इस प्रकार से रखने का उपाया किसने बताया? बालक ने कहा- मेरी मां ने इन्हें सदरी के अस्तर में सी दिया था। जिससे किसी को इसका पता न चले।
सरदार ने अचरज से पूछा- तो तूने इनके विषय में हमें क्यों बताया?
बालक बोला- चलते समय मेरी मां ने कहा था कि कभी झूठ न बोलना।
झूठ बोलना पाप है। इसलिए मैं आपसे झूठ कैसे बोलता?
डाकू बच्चे से बहुत प्रभावित हुआ और वह अपने साथियों से बोला- यह छोटा सा बच्चा अपनी मां का इतना कहना मानता है कि ऐसे संकट में भी झूठ नहीं बोला और हम लोग बड़े होकर भी सन्मार्ग पर नहीं चलते।
सभी डाकूओं ने उसी क्षण से लूटमार त्याग दी और उस मातृभक्त बालक को अपना गुरु स्वीकार किया। इस बालक का नाम अब्दुल काफिर था। जो आगे चलकर एक महान संत हुआ और आज भी मुसलमानों में बड़े पीर के नाम से प्रसिद्ध है।
वस्तुत: मां की शिक्षा उस नींव को तैयार करती हैं, जिस पर सज्जनता का ऐसा भव्य महल खड़ा होता है, जो स्थाई यश का आधार बनता है। इसलिए मां द्वारा प्रदत्त ज्ञान को वाणी के साथ ही व्यवहार का अंग भी बनाइए।
एक बार एक लंबा काफिला बगदाद की ओर जा रहा था। रास्ते में उस पर डाकू टूट पड़े और लूटमार करने लगे। चारो ओर हाहाकार मच गया। उस काफिले में 9 वर्ष का एक बालक भी था, जो एक और चुपचाप खड़ा इस लूटमार को देख रहा था। एक डाकू की नजर बालक पर पड़ी। उसने बालक से पूछा- तेरे पास भी कुछ है?
बालक ने उत्तर दिया- मेरे पास 40 अशर्फियां है।
डाकू हंसा और बोला- क्या कहा? तेरे 40 अशर्फियां हैं।
बालक ने कहा- मैं सत्य कहा रहा हूं। डाकू ने बालक का हाथ पकड़कर सरदार के पास ले गया और बोला- यह बालक अपने पास 40 अशर्फियां बताता है। सरदार ने बालक को अशर्फियां बताने को कहा। बालके ने अपनी सदरी उतारी और उसके अस्तर को फाड़कर अशर्फियां सामने डाल दी। डाकू हैरान रह गए। सरदार ने पूछा- लड़के, अशर्फियां इस प्रकार से रखने का उपाया किसने बताया? बालक ने कहा- मेरी मां ने इन्हें सदरी के अस्तर में सी दिया था। जिससे किसी को इसका पता न चले।
सरदार ने अचरज से पूछा- तो तूने इनके विषय में हमें क्यों बताया?
बालक बोला- चलते समय मेरी मां ने कहा था कि कभी झूठ न बोलना।
झूठ बोलना पाप है। इसलिए मैं आपसे झूठ कैसे बोलता?
डाकू बच्चे से बहुत प्रभावित हुआ और वह अपने साथियों से बोला- यह छोटा सा बच्चा अपनी मां का इतना कहना मानता है कि ऐसे संकट में भी झूठ नहीं बोला और हम लोग बड़े होकर भी सन्मार्ग पर नहीं चलते।
सभी डाकूओं ने उसी क्षण से लूटमार त्याग दी और उस मातृभक्त बालक को अपना गुरु स्वीकार किया। इस बालक का नाम अब्दुल काफिर था। जो आगे चलकर एक महान संत हुआ और आज भी मुसलमानों में बड़े पीर के नाम से प्रसिद्ध है।
वस्तुत: मां की शिक्षा उस नींव को तैयार करती हैं, जिस पर सज्जनता का ऐसा भव्य महल खड़ा होता है, जो स्थाई यश का आधार बनता है। इसलिए मां द्वारा प्रदत्त ज्ञान को वाणी के साथ ही व्यवहार का अंग भी बनाइए।
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