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बरमूडा ट्रायंगल या शैतानी टापू जो कि अटलांटिक महासागर के पश्चिमी हिस्से में स्थित है, जिसका रहस्य अभी भी अनसुलझा हुआ है. कहा जाता है कि बरमूडा ट्रायंगल में कई एयरक्राफ्ट और जहाज बड़े ही रहस्यमय परिस्थिति में गायब हो चुके हैं.
भले ही अमेरिकी नौसेना का कहना है कि बरमूडा ट्रायंगल जैसा कोई टापू नहीं है, जबकि असाधारण तरीके से यहां पर इस तरह की घटनाएं सामने आती रही हैं.
वैसे तो समय-समय पर बरमूडा ट्रायंगल के रहस्य को सुलझाने के कई दावे किये गये हैं, जबकि अभी भी इसके पीछे का रहस्य अनसुलझा ही है. कुछ का मानना है कि बरमूडा ट्रायंगल के अंदर एक छुपा हुआ पिरामिड है, जो चुम्बक की तरह हर चीज़ को खींचता है. लगातार जहाजों के गायब होने लगभग 500 साल बाद इसे "डेंजर रीजन" का नाम दिया गया.
इसके लिए यह भी कहा गया कि साल 1492 में अमेरिका की यात्रा के दौरान कोलम्बस ने भी इस एरिया में कुछ चमकता हुआ देखा, जिसके बाद उनका मेगनेटिक कंपास ख़राब हो गया. इसके अलावा कई ऐसी घटनाएँ हुई, जिसका कारण आज तक कोई नहीं जान पाया है.
क्या संबंध है बरमूडा ट्रायंगल और ऋग्वेद के बीच
1. लगभग 23000 सालों पहले लिखे गए ऋग्वेद के अस्य वामस्य में कहा गया है कि मंगल का जन्म धरती पर हुआ है.
2. ऋग्वेद में लिखा है कि जब धरती ने मंगल को जन्म दिया, तब मंगल को उसकी मां से दूर कर दिया गया, तब भूमि ने घायल होने के कारण अपना संतुलन खो दिया (और धरती अपनी धुरी पर घूमने लगी). उस समय धरती को संभालने के लिए दैवीय वैध, अश्विनी कुमार ने त्रिकोणीय आकार का लोहा उसके चोटहिल स्थान में लगा दिया और भूमि अपनी उसी अवस्था में रुक गई.
3. यही कारण है कि पृथ्वी की धुरी एक विशेष कोण पर झुकी हुई है, धरती का यही स्थान बरमूडा ट्रायंगल है.
4. सालों तक धरती में जमा होने के कारण त्रिकोणीय लोहा प्राकृतिक चुम्बक बन गया और इस तरह की घटनाएं होने लगीं.
क्या लिखा है अथर्व वेद में बरमूडा ट्रायंगल के बारे में
1. अथर्व वेद में कई रत्नों का उल्लेख किया गया है, जिनमें से एक रत्न है दर्भा रत्न है.
2. उच्च घनत्व वाला यह रत्न न्यूट्रॉन स्टार का एक बहुत ही छोटा रूप है.
3. दर्भा रत्न का उच्च गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र, उच्च कोटि की एनर्जेटिक रेज़ का उत्त्सर्जन और हलचल वाली चीज़ों को नष्ट करना आदि गुणों को बरमूडा ट्रायंगल में होने वाली घटनाओं से जोड़ा जाता है.
4. इस क्षेत्र में दर्भा रत्न जैसी परिस्थिति होने के कारण अधिक ऊर्जावान विद्युत चुंबकीय तरंगों का उत्त्सर्जन होता है, और वायरलेस से निकलने वाली इलेक्ट्रो-मैग्नेटिक तरंगों के इसके संपर्क में आते ही वायरलेस ख़राब हो जाता है और उस क्षेत्र में मौजूद हर चीज़ नष्ट हो जाती है.
अब चाहे लोग इस बात को माने या न माने लेकिन बरमूडा ट्रायंगल में होने वाली घटनाएं किसी अलौकिक शक्ति या गतिविधि के कारण नहीं हुई हैं. बल्कि इन घटनाओं के पीछे सिर्फ और सिर्फ वैज्ञानिक कारण ही है.
बरमूडा ट्रायंगल या शैतानी टापू जो कि अटलांटिक महासागर के पश्चिमी हिस्से में स्थित है, जिसका रहस्य अभी भी अनसुलझा हुआ है. कहा जाता है कि बरमूडा ट्रायंगल में कई एयरक्राफ्ट और जहाज बड़े ही रहस्यमय परिस्थिति में गायब हो चुके हैं.
भले ही अमेरिकी नौसेना का कहना है कि बरमूडा ट्रायंगल जैसा कोई टापू नहीं है, जबकि असाधारण तरीके से यहां पर इस तरह की घटनाएं सामने आती रही हैं.
वैसे तो समय-समय पर बरमूडा ट्रायंगल के रहस्य को सुलझाने के कई दावे किये गये हैं, जबकि अभी भी इसके पीछे का रहस्य अनसुलझा ही है. कुछ का मानना है कि बरमूडा ट्रायंगल के अंदर एक छुपा हुआ पिरामिड है, जो चुम्बक की तरह हर चीज़ को खींचता है. लगातार जहाजों के गायब होने लगभग 500 साल बाद इसे "डेंजर रीजन" का नाम दिया गया.
इसके लिए यह भी कहा गया कि साल 1492 में अमेरिका की यात्रा के दौरान कोलम्बस ने भी इस एरिया में कुछ चमकता हुआ देखा, जिसके बाद उनका मेगनेटिक कंपास ख़राब हो गया. इसके अलावा कई ऐसी घटनाएँ हुई, जिसका कारण आज तक कोई नहीं जान पाया है.
क्या संबंध है बरमूडा ट्रायंगल और ऋग्वेद के बीच
1. लगभग 23000 सालों पहले लिखे गए ऋग्वेद के अस्य वामस्य में कहा गया है कि मंगल का जन्म धरती पर हुआ है.
2. ऋग्वेद में लिखा है कि जब धरती ने मंगल को जन्म दिया, तब मंगल को उसकी मां से दूर कर दिया गया, तब भूमि ने घायल होने के कारण अपना संतुलन खो दिया (और धरती अपनी धुरी पर घूमने लगी). उस समय धरती को संभालने के लिए दैवीय वैध, अश्विनी कुमार ने त्रिकोणीय आकार का लोहा उसके चोटहिल स्थान में लगा दिया और भूमि अपनी उसी अवस्था में रुक गई.
3. यही कारण है कि पृथ्वी की धुरी एक विशेष कोण पर झुकी हुई है, धरती का यही स्थान बरमूडा ट्रायंगल है.
4. सालों तक धरती में जमा होने के कारण त्रिकोणीय लोहा प्राकृतिक चुम्बक बन गया और इस तरह की घटनाएं होने लगीं.
क्या लिखा है अथर्व वेद में बरमूडा ट्रायंगल के बारे में
1. अथर्व वेद में कई रत्नों का उल्लेख किया गया है, जिनमें से एक रत्न है दर्भा रत्न है.
2. उच्च घनत्व वाला यह रत्न न्यूट्रॉन स्टार का एक बहुत ही छोटा रूप है.
3. दर्भा रत्न का उच्च गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र, उच्च कोटि की एनर्जेटिक रेज़ का उत्त्सर्जन और हलचल वाली चीज़ों को नष्ट करना आदि गुणों को बरमूडा ट्रायंगल में होने वाली घटनाओं से जोड़ा जाता है.
4. इस क्षेत्र में दर्भा रत्न जैसी परिस्थिति होने के कारण अधिक ऊर्जावान विद्युत चुंबकीय तरंगों का उत्त्सर्जन होता है, और वायरलेस से निकलने वाली इलेक्ट्रो-मैग्नेटिक तरंगों के इसके संपर्क में आते ही वायरलेस ख़राब हो जाता है और उस क्षेत्र में मौजूद हर चीज़ नष्ट हो जाती है.
अब चाहे लोग इस बात को माने या न माने लेकिन बरमूडा ट्रायंगल में होने वाली घटनाएं किसी अलौकिक शक्ति या गतिविधि के कारण नहीं हुई हैं. बल्कि इन घटनाओं के पीछे सिर्फ और सिर्फ वैज्ञानिक कारण ही है.
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