Tuesday 16 August 2016

भारत का स्वर्णिम अतीत____3


11. भारत के विज्ञान के बारे में बीसियों अंग्रेजों ने शोध की है और वो ये कहते हैं की भारत में विज्ञान की 20 से ज्यादा शाखाएँ हैं, जो बहुत ज्यादा पुष्पित और पल्लवित हुई है। उनमें से सबसे बड़ी शाखा है खगोल विज्ञान, दूसरी नक्षत्र विज्ञान, तीसरी बर्फ बनाने का विज्ञान, चौथी धातु विज्ञान, भवन निर्माण का विज्ञान ऐसी 20 तरह की वैज्ञानिक शाखाएँ पूरे भारत में हैं। वॉकर लिखा रहा है की "भारत में ये जो विज्ञान की ऊंचाई है वो इतनी अधिक है इसका अंदाज़ा हम अंग्रेजों को नहीं लगता।"
एक यूरोपीय वैज्ञानिक था कॉपरनिकस, उसके बारे में कहा जाता है की उसने पहली बार बताया सूर्य का पृथ्वी के साथ क्या संबंध है, जिसने पहली बार सूर्य से पृथ्वी की दूरी का अनुमान लगाया और जिसने सूर्य से दूसरे उपग्रहों के बारे में जानकारी सारी दुनिया को दी। लेकिन इस कॉपरनिकस की बात को वॉकर ही कह रहा है की ये असत्य है। वॉकर कहता है की अंग्रेजों के हजारों साल पहले भारत में ऐसे विशेषज्ञ वैज्ञानिक हुए हैं जिन्होने पृथ्वी से सूर्य का ठीक ठीक पता लगाया है और भारत के शास्त्रों में उसको दर्ज़ कराया है।
यजुर्वेद में ऐसे बहुत सारे श्लोक हैं जिनसे खगोल शास्त्र का ज्ञान मिलता है। कॉपरनिकस का जिस दिन जन्म हुआ था यूरोप में, उससे ठीक एक हज़ार साल पहले एक भारतीय वैज्ञानिक "श्री आर्यभट्ट जी" ने पृथ्वी और सूर्य की दूरी बिलकुल ठीक ठीक बता दी थी और जितनी दूरी आर्यभट्ट जी ने बताई थी उसमे कॉपरनिकस एक इंच भी इधर उधर नही कर पाया। वही दूरी आज अमेरिका और यूरोप में मानी जाती है। भारत में खगोल विज्ञान इतना गहरा था की इसी से नक्षत्र विज्ञान का विकास हुआ। भारतीय वैज्ञानिकों ने ही दिन और रात की लंबाई, समय के आंकड़े निकाले है और सारी दुनिया में उनका प्रचार हुआ है।
ये जो दिनों की हम गिनती करते हैं रविवार, सोमवार इन सभी दिनों का नामकरण और अवधि पूरी की पूरी महान महर्षि आर्यभट्ट की निकाली हुई है और उनके द्वारा ही ये दिन तय किए हुए हैं। अंग्रेज़ इस बात को स्वीकार करते हैं की भारत के दिनों को ही उधार लेकर हमने सन्डे, मंडे बनाया है।
पृथ्वी अपनी अक्ष और सूर्य के चारों ओर घूमती है ये बात सबसे पहले 10वीं शताब्दी में भारतीय वैज्ञानिकों ने प्रमाणित की थी। पृथ्वी के घूमने से दिन रात होते हैं, मौसम और जलवायु बदलते हैं, ये बात भी भारतीय वैज्ञानिकों के द्वारा प्रमाणित हुई है सारी दुनिया में। सूर्य के कितने उपग्रह हैं और उनका सूर्य के साथ अंतरसंबंध क्या है ये सारी खोज भारत में तीसरी शताब्दी में हुई थी जब दुनिया में कोई पढ़ना लिखना भी नहीं जानता था।
12. एक अंग्रेज़ है 'डेनियल डिफ़ों' वो कहता है की "भारत के वैज्ञानिक कितने ज्यादा पक्के हैं गणित में की चन्द्र ग्रहण और सूर्य ग्रहण का ठीक ठीक समय बता देते हैं सालों पहले।"
1708 में ये लंदन की संसद में कह रहा है की 'मैंने भारत का पंचांग जब भी पढ़ा है मुझे एक प्रश्न का उत्तर कभी नही मिला की भारत के वैज्ञानिक कई कई साल पहले कैसे पता लगा लेते हैं की आज चन्द्र ग्रहण पड़ेगा, आज सूर्य ग्रहण पड़ेगा और इस समय पर पड़ेगा और सही सही उसी समय पर पड़ता है।' इसका मतलब भारत के वैज्ञानिकों की खगोल और नक्षत्र विज्ञान में बहुत गहरी शोध है। "
13. भारतीय शिक्षा के बारे में जर्मन दार्शनिक 'मैक्स मूलर' ने सबसे ज्यादा शोध किया है और वो ये कहता है की "मैं भारत की शिक्षा व्यवस्था से इतना प्रभावित हूँ शायद ही दुनिया के किसी देश में इतनी सुंदर शिक्षा व्यवस्था होगी जो भारत में है। भारत के बंगाल प्रांत में मेरी जानकारी के अनुसार 80 हज़ार से ज्यादा गुरुकुल पिछले हजारों साल से सफलता के साथ चल रहे हैं।" एक अंग्रेज़ शिक्षाशास्त्री, विद्वान है 'लुडलो' वो 18वीं शताब्दी में कह रहा है की "भारत में एक भी गाँव ऐसा नहीं है जहां कम से कम एक गुरुकुल नहीं है और भारत के एक भी बच्चे ऐसे नहीं हैं जो गुरुकुल में न जाते हो पढ़ाई के लिए।"
इसके अलावा एक और अंग्रेज़ "जी॰डब्ल्यू॰ लिटनर", कहता है की मैंने भारत के उत्तरी इलाके का सर्वेक्षण किया है और मेरी रिपोर्ट कहती है की भारत में 200 लोगों पर एक गुरुकुल चलता है। इसी तरह थॉमस मुनरो कहता है की दक्षिण भारत में 400 लोगों पर कम से कम एक गुरुकुल भारत में है। दोनों के आंकड़े मिलाने पर भारत में औसत 300 लोगों पर एक गुरुकुल चलता था और जिस जमाने के ये आंकड़े है तब भारत की जनसंख्या लगभग 20 करोड़ थी।
माने सन् 1822 के आसपास सम्पूर्ण भारत देश में 7,32000 गुरुकल थे। सन् 1822 में भारत में कुल गाँव भी लगभग 7,32000 थे, इस प्रकार लगभग हर गाँव में एक गुरुकुल था। वहीं अंग्रेजों के इतिहास से पता चलता है की सन् 1868 तक पूरे इंग्लैंड में सामान्य बच्चों को पढ़ाने के लिए एक भी स्कूल नहीं था।
हमारी शिक्षा व्यवस्था अंग्रेजों से बहुत बहुत आगे थी। सबसे अच्छी बात ये थी की इन गुरुकुलों को चलाने के लिए कभी भी किसी राजा से कोई दान और अनुदान नहीं लिया जाता था, ये सारे गुरुकुल समाज के द्वारा चलाये जाते थे।'जी॰डब्ल्यू॰ लिटनर' की रिपोर्ट कहती है की 1822 में सम्पूर्ण भारत में 97% साक्षरता की दर है। हमारे प्राचीन गुरुकुलों में पढ़ाई का समय होता था सूर्योदय से सूर्यास्त तक। इतने समय में वो 18 विषय पढ़ते है जिसमें वो गणित/ वैदिक गणित, खगोल शास्त्र , नक्षत्र विज्ञान, धातु विज्ञान, भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान, शौर्य विज्ञान जैसे लगभग 18 विषय पढ़ाये जाते थे।
एक अंग्रेज़ अधिकारी 'पेंडरगास्ट' लिखाता है की 'जब कोई बच्चा भारत में 5 साल, 5 महीने और 5 दिन का हो जाता था बस उसी दिन उसका गुरुकुल में प्रवेश हो जाता था और लगातार 14 वर्ष तक वो गुरुकुल में पढ़ता था। इसके बाद जिसको विशेषज्ञता हासिल करनी होती थी उसके लिए उच्च शिक्षा के केंद्र भी थे।
भारत में शिक्षा इतनी आसान है की गरीब हो या अमीर सबके लिए शिक्षा समान है और व्यवस्था समान है। उदाहरण: भगवान श्रीकृष्ण जिस गुरुकुल में पढे थे, उसी में सुदामा भी पढे थे, एक करोड़पति का बेटा और एक रोडपति का।'
जबकि 2009 तक भारत में सरकार द्वारा लाखों करोड़ों खर्च करने के बाद 13,500 विद्यालय और 450 विश्वविद्यालय हैं। जबकि 1822 में अकेले मद्रास प्रांत (उस जमाने का कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, केरल, तमिलनाडू) में 11,575 विद्यालय और 109 विश्वविद्यालय थे। इसके बाद मुंबई प्रांत, पंजाब प्रांत और नॉर्थ वेस्ट फ़्रोंटिएर चारों स्थानों को मिला दिया जाए तो भारत में लगभग 14,000+ विद्यालय और 500-525 विश्वविद्यालय थे। इसने इंजीनियरिंग, सर्जरी, मेडिसिन, आयुर्वेद, प्रबंधन सबके लिए अलग अलग विद्यालय और विश्वविद्यालय थे।
तक्षशिला, नालंदा जैसे 500 से ज्यादा विश्वविद्यालय रहे थे।जबकि पूरे यूरोप में 'सामान्य लोगों के लिए शिक्षा व्यवस्था' सबसे पहले इंग्लैंड में 1868 में आयी। इससे पहले जो स्कूल थे वो सिर्फ राजाओं के बच्चों के लिए थे जो उनके ही महल में चला करते थे। साधारण लोगों को उनमे प्रवेश नहीं मिलता था।
यूरोप के दार्शनिकों का मानना है की आम लोगों को तो गुलाम बनके रहना है उसको शिक्षित होने से कोई फायदा नहीं। अरस्तू और सुकरात दोनों कहते हैं की "सामान्य लोगों को शिक्षा नहीं देनी चाहिए, शिक्षा सिर्फ राजा और अधिकारियों के बच्चों को देनी चाहिए, इसलिए सिर्फ उनके लिए ही विद्यालय होते थे।"
14. भारत में कृषि व्यवस्था के बारे में "लेस्टर" नाम का अंग्रेज़ कहता है की "भारत में कृषि उत्पादन दुनिया में सर्वोच्च है। अंग्रेजों की संसद में भाषण देते समय वो कहता है, भारत में एक एकड़ में सामान्य रूप से 56 कुंटल धान पैदा होता है। ये उत्पादन औसतन है, भारत के कुछ इलाकों में तो 70-75 कुंटल धान होता है और कुछ इलाकों में 45-50 कुंटल धान पैदा होता है। भारत में एक एकड़ में सामान्य रूप से 120 मीट्रिक टन गन्ना पैदा होता है। कपास का उत्पादन सारी दुनिया में सबसे ज्यादा भारत में है।"
जबकि आज भारत में "यूरिया, डीएपी, फॉस्फेट" डालने के बाद औसतन एक एकड़ में 30 कुंटल से ज्यादा धान पैदा नहीं होता है। जबकि 150 साल पहले सिर्फ गाय के गोबर और गौमूत्र की खाद से एक एकड़ में औसतन 56 कुंटल धान पैदा होता था। आज भारत में "यूरिया, डीएपी, फॉस्फेट" के बोरे के बोरे डालने के बाद एक एकड़ में औसतन उत्पादन 30-35 मीट्रिक टन है।
एक अंग्रेज़ कहता है की: 'भारत में फसलों की विविधता दुनिया में सबसे ज्यादा है। भारत में धान के कम से कम 1 लाख प्रजाति के बीज हैं। भारत में दुनिया में सबसे पहला 'हल' बना। जो दुनिया को भारत की अद्भुत देन है। इसके अलावा खुरपी, खुरपा, हसिया, हथौड़ा, बेल्ची, कुदाल, फावड़ा आदि सब चीज़ें दुनिया में बाद में आई है भारत में ये सैकड़ों साल पहले ही बन चुकी है। बीज को एक पंक्ति में बोने की परंपरा भी हजारों साल पहले भारत में विकसित हुई है।"
आज भी धान की 50,000 प्रजातियाँ पूरे देश में मौजूद हैं। दुनिया ने सन् 1750 में खेती करना भारत से ही सीखा है। इससे पहले ये यूरोप के लोग जंगली फलों और पशुओं को शिकार करके ही हजारों साल यही खाते रहे हैं। जिस समय इंग्लैंड और यूरोप के लोग दो ही चीज़ें खाते थे या तो जंगली फल या मांस, उस समय भारत में 1 लाख किस्म के चावल होते थे, बाकी चीजों की तो बात ही छोड़ दीजिये।
हजारों साल तक भारत ने दुनिया को चावल, गुड, दालें उत्पादित करके खिलाई है। और खाने पीने की हजारों चीज़ें दुनियाभर के देश हमसे खरीदते थे और हमें बदले में सोना, चाँदी, हीरे, जवाहरात देते थे।
15. भारत के लोगों का स्वास्थ्य दुनिया में सबसे अदभूत था क्योंकि यहाँ की चिकित्सा व्यवस्था भी दुनिया में सबसे उत्तम थी। हजारों लाखों जड़ी बूटियाँ और सर्जरी की विद्या पूरी दुनिया को भारत से ही गयी है। भारत में हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश, तमिलनाडू, केरल इन राज्यों में सर्जरी के सबसे बड़े शोध केंद्र चला करते थे।
जब दुनिया में कोई नहीं जानता था तब आँख में मोतियाबिंद का पहला ऑपरेशन भारत में ही हुआ है। सर्जरी की सबसे आधुनिकम विद्या 'राइनोंप्लासी' का सबसे पहला परीक्षण और प्रयोग भी भारत में ही हुआ है। इंग्लैंड की 'रॉयल सोसाइटी ऑफ सर्जन' अपने इतिहास में लिखते हैं की हमने सर्जरी भारत से सीखी है और उसके बाद पूरे यूरोप को हमने ये सर्जरी सिखायी है।
इस प्रकार भारत चिकित्सा, तकनीक, विज्ञान, उद्योग, व्यपार सबसे दुनिया में शीर्ष पर रहा है और इन सबका श्रेय भारत की शिक्षा व्यवस्था को जाता है, जो दुनिया में सबसे ऊंची थी। ऐसा अदभूत 'हमारा भारत' देश अंग्रेजों के आने से पहले तक था। अंग्रेजों की नीतियों और क़ानूनों के कारण आज हमारी व्यवस्थाओं में इतनी गिरावट आई है।
सबसे पहले उन्होने 'इंडियन एडुकेशन एक्ट' बनाकर भारत के गुरुकुल बंद किए गए। उसके बाद उन्होने भारत की वस्तुओं पर ज्यादा से ज्यादा टैक्स लगाकर और विदेशी वस्तुओं को टैक्स फ्री कराकर भारत के कारखाने बंद किए। भारत का निर्यात खत्म हो गया।
भारत की कृषि व्यवस्था को खत्म करने के लिए अंग्रेजों ने किसानों पर लगान लगाना शुरू किया। किसानों की ज़मीनें छीनने के लिए 'Land Acquisition Act' बनाया। फिर किसानों के काम आने वाली गाय और बैल इनका कत्ल कराओ और सबसे पहला कत्लखाना अंग्रेजों ने ही शुरू किया कलकत्ता में, जो आज भी चल रहा है। अंग्रेज़ उसमें 350 गाय रोज काटे थे, लेकिन आज उसमे 14,000 गाय रोज कटती हैं। ये सारी दूर व्यवस्थाएँ अंग्रेजों की देन हैं। अगर अंग्रेज़ नहीं आते तो हम आज भी दुनिया के शीर्ष पर होते। आज भी उनके कानून हटाये जाए तो भारत फिर से दुनिया के शिखर पर बैठेगा।

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