Sunday 14 August 2016

आयुर्वेद सिद्धात रहस्य में आज बात करेंगे रात्रिचर्या की।


‪#‎रात्रिचर्या‬
दिन और रात मिलाकर 24 घण्टों की पूरी अवधि को ही एक दिवस कहा जाता है। अत: रात्रिचर्या भी दिनचर्या का ही अंग होता है। दिन भर के सभी काम और परिश्रम करने के बाद रात्रि में विश्राम की आवश्यकता होती है। हम सभी जानते हैं कि शरीर को स्वस्थ और स्फूर्तिमान बनाए रखने के लिए ठीक प्रकार नींद लेना बहुत जरूरी है। सारे दिन के कार्यो को करने के बाद जब शरीर और मस्तिष्क थक कर निष्क्रिय से हो जाते हैं तथा ज्ञानेन्द्रियां एवं कर्मेन्द्रियां भी थक जाती हैं तो व्यक्ति नींद की अवस्था में आ जाता है।
रात का समय नींद के लिए अनुकूल होता है, क्योंकि रात में शरीर का कफ दोष और मन का तमस् दोष नींद लाने में सहायक होते है। आयुर्वेद के अनुसार रात्रि को जल्दी सोकर सुबह जल्दी उठना चाहिए।
जिन व्यक्तियों को नींद नहीं आती वे अनिद्रा रोग से ग्रस्त माने जाते हैं तथा अनेक प्रकार के मानसिक, शारीरिक विकारों से पीड़ित रहते हैं।
‪#‎अनिद्राकेकारणऔरउपचार‬
मानसिक विकार, जैसे -भय, चिंता, शोक और क्रोध।
अत्यधिक शारीरिक परिश्रम से पूरे शरीर में अति पीड़ा।
रक्त- मोक्षक अर्थात शरीर में अति पीड़ा।
अति उपवास।
धूम्रपान
असुविधाजनक बिस्तर
स्वाभाविक रुप से ही कम नींद आना।
‪#‎अनिद्राकेउपचार‬
मालिश, उबटन और स्नान व हाथ- पैर आदि अंगों को दबाना।
प्याज का सेवन।
मानसिक रुप से प्रसन्न रहना।
रुचि के अनुसार संगीत सुनना।
आंखों, सिर और मुख के लिए अरामदायक मलहमों पा उपयोग।
सोने के लिए आरामदायक बिस्तर और शांत स्थान।

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