Sunday 14 August 2016

'दशराज्ञ युद्ध' का रहस्य


गुरु वशिष्ठ और विश्वामित्र के मध्य प्रतिष्ठा की लड़ाई चलती रहती थी। इस लड़ाई के चलते ही 5 हजार वर्ष पूर्व हुए महाभारत युद्ध के पूर्व एक और महासंग्राम हुआ था जिसे 'दशराज्ञ युद्ध' के नाम से जाना जाता।यह रामायण काल की बात है। महाभारत युद्ध के पहले भारत के आर्यावर्त क्षेत्र में आर्यों के बीच दशराज्ञ युद्ध हुआ था। ऋग्वेद के 7वें मंडल में इस युद्ध का वर्णन मिलता है। इस युद्ध से यह पता चलता है कि आर्यों के कितने कुल या कबीले थे और उनकी सत्ता धरती पर कहां तक फैली थी।
ब्रह्मा से भृगु, भृगु से वारिणी भृगु, वारिणी भृगु से बाधृश्य, शुनक, शुक्राचार्य (उशना या काव्या), बाधूल, सांनग और च्यवन का जन्म हुआ। शुनक से शौनक, शुक्राचार्य से त्वष्टा का जन्म हुआ। त्वष्टा से विश्वरूप और विश्वरकर्मा। विश्वकर्मा से मनु, मय, त्वष्टा, शिल्लपी और देवज्ञ का जन्म हुआ। दशराज्ञ युद्ध के समय भृगु मौजूद थे।
पुरु और तृत्सु नामक आर्य समुदाय के बीच यह युद्ध हुआ था। इस युद्ध में जहां एक ओर पुरु नामक आर्य समुदाय के योद्धा थे, तो दूसरी ओर 'तृत्सु' नामक समुदाय के योद्धा युद्ध लड़ रहे थे। दोनों ही हिन्द-आर्यों के 'भरत' नामक समुदाय से संबंध रखते थे। हालांकि पुरुओं के नेतृत्व में से कुछ को अनार्य माना जाता था।
तुत्सु समुदाय का नेतृत्व राजा सुदास ने किया। सुदास दिवोदास के पुत्र थे, जो स्वयं सृंजय के पुत्र थे। सृंजय के पिता का नाम देवव्रत था। सुदास के युद्ध में सलाहकार ऋषि वशिष्ठ थे।
पुरु का नेतृत्व : सुदास के विरुद्ध दस राजा युद्ध लड़ रहे थे जिनका नेतृत्व पुरु कबीला के राजा संवरण कर रहे थे। जिनके सैन्य सलाहकार ऋषि विश्वामित्र थे।
यह भी सत्ता और विचारधारा की लड़ाई थी। एक और वेद पर आधारित भेदभाव रहित वर्ण व्यवस्था का विरोध करने वाले विश्वामित्र के सैनिक थे तो दूसरी ओर एकतंत्र और इंद्र की सत्ता को कायम करने वाले गुरु वशिष्ठ की सेना के प्रमुख राजा सुदास थे।
ऋग्वेद में दशराज्ञ युद्ध को एक दुर्भाग्यशाली घटना कहा गया है। इस युद्ध में इंद्र और वशिष्ट की संयुक्त सेना के हाथों विश्वाामित्र की सेना को पराजय का मुंह देखना पड़ा। दशराज्ञ युद्ध में इंद्र और उसके समर्थक विश्वामित्र का अंत करना चाहते थे। हालांकि विश्वानमित्र को भूमिगत होना पड़ा।
उस काल में राजनीतिक व्यवस्था गणतांत्रिक समुदाय से परिवर्तित होकर राजाओं पर केंद्रित भी हो रही थी। दशराज युद्ध में भारत कबीला राजा-प्रथा पर आधारित था जबकि उनके विरोध में खड़े कबीले लगभग सभी लोकतांत्रिक थे।
इस युद्ध में सुदास के भारतों की विजय हुई और उत्तर भारतीय उपमहाद्वीप के आर्यावर्त और आर्यों पर उनका अधिकार स्थापित हो गया। इसी कारण आगे चलकर पूरे देश का नाम ही आर्यावर्त की जगह 'भारत' पड़ गया।

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