Sunday 14 August 2016

आयुर्वेद सिद्धात रहस्य में आज बात करेंगे पंच-पंचक की...


(पाँच ज्ञानेन्द्रियां एव उनके पाँच-पाँच विषय,अधिष्ठान, द्रव्य व बुद्धियाँ)
मुख्य रुप से जिन इन्द्रियों आदि पर मानव के ज्ञान व कर्म आधारित हैं, उन्हें पंच-पंचक कहा गया है, जिसका शाब्दिक-अर्थ है- पांच-पांच की संख्या वाले पांच समूह अर्थात 25 तत्व।
1. पांच ज्ञानेन्द्रियां – जिन इन्द्रियों की सहायता से अलग-अलग प्रकार का ज्ञान प्राप्त किया है, वे ज्ञानेन्द्रियां कहलाती हैं। ये संख्या में 5 हैं-(1) श्रवणेन्द्रिय,(2) त्वगिन्द्रिय (3) नेत्रेन्द्रिय, (4) रसनेन्द्रिय और (5) घ्राणेन्द्रिय।
2. ज्ञानेन्द्रियों के पांच विषय- ज्ञानेन्द्रियां जिस-जिस अनुभूति या ज्ञान को प्राप्त करती हैं , उसे विषय कहा जाता हैं। अर्थात एक ज्ञानेन्द्रिय एक ही प्रकार का ज्ञान प्राप्त करती है। इस प्रकार इन इन्द्रियों के विषय भी पांच हैं- (1) श्रवणेन्द्रिय का विषय शब्द सुनना हैं।(2)त्वगिन्द्रिय का विषय स्पर्श हैं, यह छूकर कठोर, कोमल, शीत, उष्ण ज्ञान प्राप्त करती हैं (3) नेत्रेन्द्रिय का विषय रुप हैं, यह किसी पदार्थ को देख कर उसका रुप ग्रहण करती है। (4) रसनेन्द्रिय का विषय स्वाद हैं, यह चखकर मधुर, अम्ल आदि रसों का अनुभव करती है। (5) घ्राणेन्द्रिय का विषय गन्ध है, यह सूंघकर विविध प्रकार के गन्ध को ग्रहण करती हैं।
3. पांच अधिष्ठान- ज्ञानेन्द्रियों का अपना कोई आकार नहीं है। ये केवल शक्ति स्वरुप हैं। ये शरीर के जिस-जिस स्थान पर रहती हैं अर्थात टिकी हुई हैं , उसे इनका अधिष्ठान कहा जाता है। अधिष्ठान को इन्द्रियगोलक भी कहते हैं। इन गोलकों में ही ये शक्ति रुप ज्ञानेन्द्रियां रहती हैं।
4. इन्द्रियों के पांच द्रव्य – इन्द्रियों के पांच द्रव्य क्रमशः आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी हैं, इन पंञ्च महाभूतों में श्रोत्रेन्द्रिय का द्रव्य आकाश, स्पर्शनेन्द्रिय का वायु, चक्षु इन्द्रिय का अग्नि, रसनेन्द्रिय का जल और घ्राण इन्द्रिय का द्रव्य पृथ्वी हैं।
5. पांच बुद्धियां- ज्ञानेन्द्रियां स्वयं ज्ञान प्राप्त नहीं कर सकती। जब इन इन्द्रियों का अपने विषय के साथ सम्पर्क होता है, तो मन का भी साथ में रहना आवश्यक है। मन के साथ में होने से ही श्रोत्रेन्द्रिय अपने विषय शब्द को ठीक प्रकार से सुन सकती है, त्वचा स्पर्श कर सकती है, नेत्र देख सकती है, रसना चख सकती हैं व नासिका सूंघ सकती है। तत्पश्चात बुद्धि निर्णय करती है कि वह शब्द क्या और किसका हैं, स्पर्श कैसा है-गर्म, ठण्डा, मुलायम, या खुरदरा आदि, रुप या आकार किसका है, कैसा है, स्वाद कैसा है। इस प्रकार मनयुक्त इन्द्रियों द्वारा प्राप्त की जाने वाली अनुभूति या ज्ञान को पांच भागों में बांटा गया है-(1) श्रवण बुद्धि, (2) स्पर्शनबुद्धि, (3) रुपबुद्धि ,(4) रसबुद्धि और (5) गन्धबुद्धि। ये बुद्धियां वस्तु के निर्णय व स्वरुप की परिचायिका होती हैं। इन बुद्धियों से या इनके समुह से क्षणिक एवं निश्चयात्मक प्रत्यक्ष ज्ञान प्राप्त होता है, अर्थात स्वरुप का बोध होता हैं।

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