Sunday, 14 August 2016

सत्त


सत्तु अक्सर सात प्रकार के धान्य मिलाकर बनाया जाता है .ये है मक्का , जौ , चना , अरहर ,मटर , खेसरी और कुलथा .इन्हें भुन कर पीस लिया जाता है
आयुर्वेद के अनुसार सत्तू का सेवन गले के रोग, उल्टी, आंखों के रोग, भूख, प्यास और कई अन्य रोगों में फायदेमंद होता है। इसमें प्रचुर मात्रा में फाइबर, कार्बोहाइड्रेट्स, प्रोटीन, कैल्शियम, मैग्नीशियम आदि पाया जाता है। यह शरीर को ठंडक पहुंचाता है।
जौ का सत्तू : यह जलन को शांत करता है। इसे पानी में घोलकर पीने से शरीर में पानी की कमी दूर होती है। साथ ही बहुत ज्यादा प्यास नहीं लगती। यह थकान मिटाने और भूख बढाने का भी काम करता है। यह डायबिटीज के रोगियों के लिए काफी फायदेमंद होता है। यह वजन को नियंत्रित करने में भी मददगार होता है।
चने का सत्तू : चने के सत्तू में चौथाई भाग जौ का सत्तू जरूर मिलाना चाहिए। चने के सत्तू का सेवन चीनी और घी के साथ करना फायदेमंद होता है। इसे खाने से लू नहीं लगती।
कैसे करें सेवन
सत्तू को ताजे पानी में घोलना चाहिए, गर्म पानी में नहीं।
सत्तू सेवन के बीच में पानी न पिएं।
इसे रात्रि में नहीं खाना चाहिए।
सत्तू का सेवन अधिक मात्रा में नहीं करना चाहिए। इसका सेवन सुबह या दोपहर एक बार ही करना सत्तू का सेवन दूध के साथ नहीं करना चाहिए।
कभी भी गाढे सत्तू का सेवन नहीं करना चाहिए, क्योंकि गाढा सत्तू पचाने में भारी होता है। पतला सत्तू आसानी से पच जाता है ।
इसे ठोस और तरल, दोनों रूपों में लिया जा सकता है।
यदि आप चने के सत्तू को पानी, काला नमक और नींबू के साथ घोलकर पीते हैं, तो यह आपके पाचनतंत्र के लिए फायदेमंद होता है .।
सत्तु के सेवन से ज़्यादा तैलीय खाना खाने से होने वाली तालीफ़ ख़त्म हो जाती है और तेल निकल जाता है .।
इसमें बहुत पोषण होता है इसलिए बढ़ते बच्चों को ज़रूर दे ।. मूंगफली के दानों के साथ यह होरिक्स को भी पीछे छोड़ देता है .।

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