Sunday 14 August 2016

ताड़का-संहार


जब श्रीराम और लक्ष्मण विश्वामित्र के साथ गङ्गाजी के दक्षिणी तट पर पहुँचे , तब रास्ता अत्यन्त दुर्गम हो गया। सिंह, व्याघ्र, सूकर आदि उस वन की भयंकरता को और भी बढ़ा रहे थे। श्रीराम ने विश्वामित्र जी से पूछा-प्रभो! इस भंयकर जंगल का क्या नाम है तथा इसका इतिहास क्या हैं ?
विश्वामित्र जी ने कहा - राम! इस भूखण्ड में बहुत दिनों पहले मलद और कुरुष नामके दो अत्यन्त ही समृद्ध जनपद थे। कालान्तर में यहाँ ताड़का नामकी एक यक्षिणी अपने पति सुन्द के साथ आकर रहने लगी उसके पास दस हजार हाथियों का बल था । दोनों पति – पत्नी यहाँ स्वछन्द रहने लगे तथा यहां के निवासी और मुनि उनके अत्याचार से पीड़ित होकर इस स्थान को छोड़कर अन्यत्र चले गये । अगस्त्य ऋषि के शाप से सुन्द भस्म हो गया और ताड़का राक्षसी हो गयी। मारीच और सुबाहु इसी ताड़का के पुत्र हैं । इन राक्षसों के अत्याचार से यह स्थान निर्जन पड़ा हैं। कोई भी इस रास्त् से आने की हिम्मत नहीं करता है। यदि कोई आ भी जाता है तो ताड़का उसे मारकर खा जाती है । अब उस स्थान का नाम दण्डकारण्य है। तुम इस दुष्टा राक्षसी को मारकर इस स्थान को पवित्र करो।
श्रीराम ने कहा –मुनिवर! भले ही ताड़का क्रुर और दुष्टा हो , परन्तु वह स्त्री है। एक स्त्री को मारना रघुकुल की मर्यादा के विरुद्ध हैं।
विश्वामित्र जी ने कहा –श्रीराम ! अत्याचारी व्यक्ति चाहे स्त्री हो या पुरुष , यदि वह अपना सुधार नहीं करता और जनता को पीड़ित करता है तो उसे मार डालना परम धर्म है। इसलिये तुम बिना शंका किये इस दुष्टा का संहार करो । विश्वामित्र जी के आदेश का पालन करने के लिये श्रीराम ने अपना धनुष उठाय़ा और जोर से टंकार किया। धनुष की टंकार सुनते ही ताड़का अपने निवास से निकली। वह बिजली-सी कड़कती हुई श्रीराम और विश्वामित्र की ओर दौड़ी। अत्यन्त क्रोधित होकर वह श्रीराम –लक्ष्मण और विश्वामित्र पर पत्थरोंकी वर्षा करने लगी। श्रीराम और लक्ष्मण भी अपना धनुष-बाण लेकर उसके सामने आ डटे । भंयकर युद्ध प्रारम्भ हो गया। अब ताड़काने माया-युद्ध प्रारम्भ किया। युद्ध में विलम्ब होते देखकर विश्वामित्र ने कहा- श्रीराम! अब इसे मारने में देर मत करो । रात्री में राक्षसों की शक्ति बढ़ जाती है। फिर इसे मारना कठिन हो जायगा।
श्रीराम ने ताड़का को मार डालने के उद्देश्य से धनुष पर कराल बाण का संधान किया और ताड़का की छाती को लक्ष्य करके चला दिया। उस बाण के लगते ही ताड़का की छाती फट गयी और कटे वृक्ष की तरह पृथ्वी पर गिरकर मर गयी। देवगणों ने आकाश से श्रीराम पर पुष्पों की वर्षा की । ताड़का- वध से विश्वामित्र जी परम प्रसन्न हुए। चारों ओर श्रीराम की जय-जयकार होने लगी

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