Sunday 14 August 2016

आशा पर ही टिका है हमारा जीवन


दो राजाओं में युद्ध हुआ। विजयी राजा ने हारे हुए राजा के किले को घेर लिया और उसके सभी विश्वासपात्र अधिकारीओं को बंदी बनाकर कारागृह में डाल दिया। उन कैदियों में पराजित राजा का युवा मंत्री और उसकी पत्नी भी थी। दोनों को किले के एक विशेष हिस्से में कैद कर रखा गया था। कैदखाने में दरोगा ने उन्हें आकर समझाया हमारे राजा की गुलामी स्वीकार कर लो नही तो कैद में ही भूखे – प्यासे तड़प-तड़पकर मर जाओगे। किंतु स्वाभिमानी मंत्री को गुलामी स्वीकार नही थी , इसलिए वह चुप रहा। दरोगा चला गया । इन दोनो को जिस भवन में रखा गया था , उसमें सौ दरवाजे थे। सभी दरवाजों पर बड़े-बड़े ताले लगे हुए थे। मंत्री की पत्नी का स्वास्थ्य गिर रहा था और वह बहुत घबरा गई थी, किंतु मंत्री शांत था। उसने पत्नी को दिलासा देते हुए कहा- निराश मत होओ। गहरे अंधकार में भी रोशनी की एक किरण अवश्य होती है। ऐसा कह कर वह एक-एक दरवाजे को धकेलकर देखने लगा। दरवाजा नहीं खुला। लगभग बीस-पच्चीस दरवाजे देखे, किंतु कोई भी दरवाजा नहीं खुला।
मंत्री थक गया और उसकी पत्नी की निराशा बढ़ती गई। वह बोली –तुम्हारा दिमाग तो ठीक है ? इतने बड़े-बड़े ताले लगे हैं, भला तुम्हारे धक्कों से वे दरवाजे कैसे खुलेंगे ? किंतु मंत्री हताश नही हुआ और वह उसी लगन से दरवाजों को धकेलता रहा। उसने निन्यानवें दरवाजे धकेले, किंतु एक भी नही खुला । पत्नी ने चिढ़कर उसे बैठा दिया । किंतु थोड़ी देर बाद वह पुनः खड़ा हुआ और सौंवे दरवाजे को धक्का दिया। धक्का देते ही उसकी चूलें चरमराई। मंत्री को अनुमान हो गया कि यह दरवाजा खुल सकता है। उसने दोगुने उत्साह से दरवाजे को धक्का मारना शुरु किया और थोड़ी देर में वह खुल गया। उसकी पत्नी बोली-अरे ! यह कैसे खुल गया ? मंत्री ने शांत भाव से जवाब दिया- इसलिए कि जिंदगी में कभी सारे दरवाजे बंद नहीं हुआ करते, आशा का द्वार हमेशा खुला रखना चाहिए। उस दरवाजे से निकलकर मंत्री और उसकी पत्नी ने कैद से आजादी पा ली।

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