Tuesday 16 August 2016

महर्षि भारद्वाज रचित ‘विमान शास्त्र‘ 4


महाभारत काल तथा उससे पूर्व भारतवर्ष में भी विमान विद्या का विकास हुआ था । न केवल विमान अपितु अंतरिक्ष में स्थित नगर रचना भी हुई थी | इसके अनेक संदर्भ प्राचीन वांग्मय में मिलते हैं। निश्चित रूप से उस समय ऐसी विद्या अस्तित्व में थी जिसके द्वारा भारहीनता (zero gravity) की स्थति उत्पन्न की जा सकती थी। यदि पृथ्वी की गरूत्वाकर्षण शक्ति का उसी मात्रा में विपरीत दिशा में प्रयोग किया जाये तो भारहीनता उत्पन्न कर पाना संभव है|
विद्या वाचस्पति पं. मधुसूदन सरस्वती " इन्द्रविजय " नामक ग्रंथ में ऋग्वेद के छत्तीसवें सूक्त प्रथम मंत्र का अर्थ लिखते हुए कहते हैं कि ऋभुओं ने तीन पहियों वाला ऐसा रथ बनाया था जो अंतरिक्ष में उड़ सकता था ।
पुराणों में विभिन्न देवी देवता , यक्ष , विद्याधर आदि विमानों द्वारा यात्रा करते हैं इस प्रकार के उल्लेख आते हैं । त्रिपुरासुर याने तीन असुर भाइयों ने अंतरिक्ष में तीन अजेय नगरों का निर्माण किया था , जो पृथ्वी, जल, व आकाश में आ जा सकते थे और भगवान शिव ने जिन्हें नष्ट किया।
वेदों मे विमान संबंधी उल्लेख अनेक स्थलों पर मिलते हैं। ऋषि देवताओं द्वारा निर्मित तीन पहियों के ऐसे रथ का उल्लेख ऋग्वेद (मण्डल 4, सूत्र 25, 26) में मिलता है, जो अंतरिक्ष में भ्रमण करता है। ऋषिओं ने मनुष्य-योनि से देवभाव पाया था। देवताओं के वैद्य अश्विनीकुमारों द्वारा निर्मित पक्षी की तरह उडऩे वाले त्रितल रथ, विद्युत-रथ और त्रिचक्र रथ का उल्लेख भी पाया जाता है।
महाभारत में श्री कृष्ण, जरासंध आदि के विमानों का वर्णन आता है। वाल्मीकि रामायण में वर्णित ‘पुष्पक विमान’ (जो लंकापति रावण के पास था) के नाम से तो प्राय: सभी परिचित हैं। लेकिन इन सबको कपोल-कल्पित माना जाता रहा है। यदि विमान की चर्चा केवल रामायण या अन्य पुराणों में ही मिलती
तो हम इसे उन ऋषियों या कवियों की कल्पनाशक्ति मान लेते।
विमान की चर्चा, अंतरिक्ष यात्रा की विश्वसनीय-सी चर्चा वेदों में है और वह भी फुटकर नहीं, बल्कि ऐसी है कि महर्षि भारद्वाज ने वेदों का निर्मंथन कर ‘यंत्र सर्वस्व’ नामक इंजीनियरी ग्रंथ उसमें से नवनीत की भाँति निकाल डाला (वैमानिक प्रकरणम्, पृ0 2, वृहद विमान शास्त्र)
(दसवां श्लोक)।
‘यंत्र सर्वस्व’
ग्रंथ में इंजीनियरी आदि से संबंधित, चालीस प्रकरण हैं। ‘यंत्र सर्वस्व’ के इस वैमानिक प्रकरण के अतिरिक्त विमान शास्त्र से संबंधित अनेक ग्रंथ हैं जिनमें छः ऋषियों के ग्रंथ प्रसिद्ध हैं:
नारायण कृत ‘विमान चंद्रिका’, शौनक कृत ‘व्योमयान’, गर्ग कृत ‘यंत्रकल्प’, वाचस्पति कृत ‘यानविंदु’, चाक्रायणि कृत ‘खेटयान प्रदीपिका’, तथा घुंडिनाथ कृत ‘व्योमयानार्क प्रकाश’।
महर्षि भारद्वाज ने न केवल वेदों तथा इन छः ग्रंथों का भी मंथन किया वरन् अन्य अनेक ऋषियों द्वारा इन विषयों पर रचित ग्रंथों का भी मंथन किया था। इसमें आचार्य लल्ल (‘रहस्य लहरी’), सिद्धनाथ, विश्वकर्मा (पुष्पक विमान का आविष्कर्ता), छायापुरुष, मनु, मय आदि के ग्रंथों की चर्चा है।
‘बृहद विमान शास्त्र’ में कुल 97 विमान से संबद्ध ग्रंथों का संदर्भ है। और भी अनेकों से जानकारी ली गई है। महर्षि भारद्वाज के ‘बृहद विमान शास्त्र’ (बृ0वि0शा0) में जो वर्णन है, अचरज होता है कि उसमें विमानों के इंजीनियरी निर्माण की विधियों का वर्णन है। अतएव इसके पूर्व कि हम भारत की प्राचीन पंरपरा में विमानों के अथवा उनके ज्ञान के अस्तित्व पर कोई भी निर्णय लें उनका अध्ययन आवश्यक हो जाता है।
भारत के प्राचीन ग्रन्थों में आज से लगभग दस हजार वर्ष पूर्व विमानों तथा उन के युद्धों का विस्तरित वर्णन है। सैनिक क्षमताओं वाले विमानों के प्रयोग, विमानों की भिडन्त, तथा ऐक दूसरे विमान का अदृष्य होना और पीछा करना किसी आधुनिक वैज्ञिानिक उपन्यास का आभास देते हैं लेकिन वह कोरी कलपना नहीं यथार्थ है।
प्राचीन विमानों के प्रकार___
मानव निर्मित विमान, जो आधुनिक विमानों की तरह पंखों के सहायता से उडान भरते थे। आश्चर्य जनक विमान, जो मानव निर्मित नहीं थे किन्तु उन का आकार प्रकार आधुनिक ‘उडन तशतरियों’ के अनुरूप है।
विमान विकास के प्राचीन ग्रन्थ___
भारतीय उल्लेख प्राचीन संस्कृत भाषा में सैंकडों की संख्या में उपलब्द्ध हैं, किन्तु खेद का विषय है कि उन्हें अभी तक किसी आधुनिक भाषा में अनुवादित ही नहीं किया गया। प्राचीन भारतीयों ने जिन विमानों का अविष्कार किया था उन्हों ने विमानों की संचलन प्रणाली तथा उन की देख भाल सम्बन्धी निर्देश भी संकलित किये थे, जो आज भी उपलब्ध हैं और उन में से कुछ का अंग्रेजी में अनुवाद भी किया जा चुका है।
विमान विज्ञान विषय पर कुछ मुख्य प्राचीन ग्रन्थों का ब्योरा इस प्रकार हैः-
1. ऋगवेद- इस आदि ग्रन्थ में कम से कम 200 बार विमानों के बारे में उल्लेख है। उन में तिमंजिला, त्रिभुज आकार के, तथा तिपहिये विमानों का उल्लेख है जिन्हे अश्विनों (वैज्ञिानिकों) ने बनाया था। उन में साधारणत्या तीन यात्री जा सकते थे। विमानों के निर्माण के लिये स्वर्ण, रजत तथा लोह धातु का प्रयोग किया गया था तथा उन के दोनो ओर पंख होते थे।
वेदों में विमानों के कई आकार-प्रकार उल्लेखित किये गये हैं। अहनिहोत्र विमान के दो ईंजन तथा हस्तः विमान (हाथी की शक्ल का विमान) में दो से अधिक ईंजन होते थे। एक अन्य विमान का रुप किंग-फिशर पक्षी के अनुरूप था।
इसी प्रकार कई अन्य जीवों के रूप वाले विमान थे। इस में कोई सन्देह नहीं कि बीसवीं सदी की तरह पहले भी मानवों ने उड़ने की प्रेरणा पक्षियों से ही ली होगी। याता-यात के लिये ऋग वेद में जिन विमानों का उल्लेख है वह इस प्रकार है-
जल-यान – यह वायु तथा जल दोनो तलों में चल सकता था। (ऋग वेद 6.58.3)
कारा – यह भी वायु तथा जल दोनो तलों में चल सकता था। (ऋग वेद 9.14.1)
त्रिताला – इस विमान का आकार तिमंजिला था। (ऋग वेद 3.14.1)
त्रिचक्र रथ – यह तिपहिया विमान आकाश में उड सकता था। (ऋग वेद 4.36.1)
वायु रथ – रथ की शकल का यह विमान गैस अथवा वायु की शक्ति से चलता था। (ऋग वेद 5.41.6)
विद्युत रथ – इस प्रकार का रथ विमान विद्युत की शक्ति से चलता था। (ऋग वेद 3.14.1).
2. यजुर्वेद में भी एक अन्य विमान का तथा उन की संचलन प्रणाली उल्लेख है जिस का निर्माण जुडवा अशविन कुमारों ने किया था। इस विमान के प्रयोग से उन्हो मे राजा भुज्यु को समुद्र में डूबने से बचाया था।
3. विमानिका शास्त्र –1875 ईसवी में भारत के ऐक मन्दिर में विमानिका शास्त्र ग्रंथ की ऐक प्रति मिली थी। इस ग्रन्थ को ईसा से 400 वर्ष पूर्व का बताया जाता है तथा ऋषि भारज रचित माना जाता है। इस का अनुवाद अंग्रेज़ी भाषा में हो चुका है।
इसी ग्रंथ में पूर्व के 97 अन्य विमानाचार्यों का वर्णन है तथा 20 ऐसी कृतियों का वर्णन है जो विमानों के आकार प्रकार के बारे में विस्तरित जानकारी देते हैं। खेद का विषय है कि इन में से कई अमूल्य कृतियाँ अब लुप्त हो चुकी हैं। इन ग्रन्थों के विषय इस प्रकार थेः-
विमान के संचलन के बारे में जानकारी, उडान के समय सुरक्षा सम्बन्धी जानकारी, तुफान तथा बिजली के आघात से विमान की सुरक्षा के उपाय, आवश्यक्ता पडने पर साधारण ईंधन के बदले सौर ऊर्जा पर विमान को चलाना आदि। इस से यह तथ्य भी स्पष्ट होता है कि इस विमान में ‘एन्टी ग्रेविटी’ क्षेत्र की यात्रा की क्षमता भी थी।
विमानिका शास्त्र में सौर ऊर्जा के माध्यम से विमान को उडाने के अतिरिक्त ऊर्जा को संचित रखने का विधान भी बताया गया है। ऐक विशेष प्रकार के शीशे की आठ नलियों में सौर ऊर्जा को एकत्रित किया जाता था जिस के विधान की पूरी जानकारी लिखित है किन्तु इस में से कई भाग अभी ठीक तरह से समझे नहीं गये हैं।
इस ग्रन्थ के आठ भाग हैं जिन में विस्तरित मानचित्रों से विमानों की बनावट के अतिरिक्त विमानों को अग्नि तथा टूटने से बचाव के तरीके भी लिखित हैं। ग्रन्थ में 31 उपकरणों का वर्तान्त है तथा 16 धातुओं का उल्लेख है जो विमान निर्माण में प्रयोग की जाती हैं जो विमानों के निर्माण के लिये उपयुक्त मानी गयीं हैं क्यों कि वह सभी धातुयें गर्मी सहन करने की क्षमता रखती हैं और भार में हल्की हैं।
क्रमशः______

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