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चुम्बक का उल्लेख:-
चुम्बक का उल्लेख_____
मणिगमनं सूच्यभिसर्पण मित्यदृष्ट कारणं कम्|| वैशेषिक दर्शन ५/१/१५||
अर्थात् तृणो का मणि की ओर चलना और सुई का चुम्बक की ओर चलना,अदृश्य कर्षण शक्ति के कारण है।
दुरदर्शी यंत्र अर्थात् दुरबीन का उल्लेख:-
गुजरात के अन्हिलपुर नगर के जेैन ग्रंथालय मे संस्कृत भाषा मे रचित 'शिल्प संहिता नामक ' प्राचीन ग्रंथ है जिसमे कई यंत्रो को बनाने की विधि है-
१ तेल ,पारा,ओर जल द्वारा तापमापी बनाने का उल्लेख है।
२ दुरबीन का उल्लेख_____
" मनोर्वाक्यं समाधाय तेन शिल्पीन्द्र शाश्वत:|
यन्त्र चकार सहसा दृष्टर्थ्य दूरदर्शनम्||
पललाग्नौ दग्धमृदा कृत्वा काचमनश्वरं|
शोधयित्वा तु शिल्पीन्द्रो नैमत्य क्रियते च||
चकार बलवत्स्वच्छं पातनं सूपविष्कृतम्|
वंशपर्वसमाकारं धातुदण्ड कल्पत्तम्|
तत्पश्पादग्रमध्येषु मुकुरं च विवेश सः|
अर्थात् " मिट्टी भून के उससे प्रथम कांच बनती है| एक पोली नलिका के दोनो नुक्कड पर वह कांच लगाई जाती है| दूर के नक्षत्रादि देखने मे इसका उपयोग किया जाता है
चुम्बक का उल्लेख:-
चुम्बक का उल्लेख_____
मणिगमनं सूच्यभिसर्पण मित्यदृष्ट कारणं कम्|| वैशेषिक दर्शन ५/१/१५||
अर्थात् तृणो का मणि की ओर चलना और सुई का चुम्बक की ओर चलना,अदृश्य कर्षण शक्ति के कारण है।
दुरदर्शी यंत्र अर्थात् दुरबीन का उल्लेख:-
गुजरात के अन्हिलपुर नगर के जेैन ग्रंथालय मे संस्कृत भाषा मे रचित 'शिल्प संहिता नामक ' प्राचीन ग्रंथ है जिसमे कई यंत्रो को बनाने की विधि है-
१ तेल ,पारा,ओर जल द्वारा तापमापी बनाने का उल्लेख है।
२ दुरबीन का उल्लेख_____
" मनोर्वाक्यं समाधाय तेन शिल्पीन्द्र शाश्वत:|
यन्त्र चकार सहसा दृष्टर्थ्य दूरदर्शनम्||
पललाग्नौ दग्धमृदा कृत्वा काचमनश्वरं|
शोधयित्वा तु शिल्पीन्द्रो नैमत्य क्रियते च||
चकार बलवत्स्वच्छं पातनं सूपविष्कृतम्|
वंशपर्वसमाकारं धातुदण्ड कल्पत्तम्|
तत्पश्पादग्रमध्येषु मुकुरं च विवेश सः|
अर्थात् " मिट्टी भून के उससे प्रथम कांच बनती है| एक पोली नलिका के दोनो नुक्कड पर वह कांच लगाई जाती है| दूर के नक्षत्रादि देखने मे इसका उपयोग किया जाता है
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