Sunday 7 February 2016

भक्त का अद्भुत अवदान


कीच से जैसे कमल उत्पन्न होताहै, वैसे ही असुर - जाति में भी कुछ भक्त उत्पन्न हो जाते हैं । भक्तराज प्रह्लाद का नाम प्रसिद्ध है । गयासुर भी इसी कोटी का भक्त था । बचपन से ही गय का हृदय भगवान विष्णु के प्रेम में ओतप्रोत रहता था । उसके मुख से प्रतिक्षण भगवान के नाम का उच्चारण होता रहता था ।
गयासुर बहुत विशाल था । उसने कोलाहल पर्वत पर घोर तप किया । हजारों वर्ष तक उसने सांस रोक ली जिससे सारा संसार क्षुब्ध हो गया । देवताओं ने ब्रह्मा से प्रार्थना की कि ‘आप गयासुर से हमारी रक्षा करें ।’ ब्रह्मा देवताओं के साथ भगवान शंकर के पास पहुंचे । पुन: सभी भगवान शंकर के साथ विष्णु के पास पहुंचे । भगवान विष्णु ने कहा - ‘आप सब देवता गयासुर के पास चलें, मैं भी आ रहा हूं ।’
गयासुर के पास पहुंचकर भगवान विष्णु ने पूछा - ‘तुम किसलिए तप कर रहे हो ? हम सभी देवता तुमसे संतुष्ट हैं, इसलिए तुम्हारे पास आये हुए हैं । वर मांगो ।’
गयासुर ने कहा - ‘मेरी इच्छा है कि मैं सभी देव, द्विज, यज्ञ, तीर्थ, ऋषि, मंत्र और योगियों से बढ़कर पवित्र हो जाऊं ।’ देवताओं ने प्रसन्नतापूर्वक गयासुर को वरदान दे दिया । फिर वे प्रेम से उसे देखकर और उसका स्पर्श कर अपने - अपने लोकों में चले गये । इस तरह भक्तराज गय ने अपने शरीर को पवित्र बनाकर प्राय: सभी पापियों का उद्धार कर दिया । जो उसे देखता और जो उसका स्पर्श करता उसका पाप - ताप नष्ट हो जाता । इस तरह नरक का दरवाजा ही बंद हो गया ।
भगवान विष्णु ने अपने भक्त के पवित्र शरीर का उपयोग सदा के लिए करना चाहा । किसी का शरीर तो अमर रह नहीं सकता । गय के उस पवित्र शरीर के पातके बाद प्राणियों को उसके शरीर से वह लाभ नहीं मिलता, अत: भगवान ने ब्रह्मा को भेजकर उसके शरीर को मंगवा लिया । गयासुर अतिथि के रूप में आएं हुए ब्रह्मा को पाकर बहुत प्रसन्न हुआ और उसने अपने जन्म और तपस्या को सफल माना । ब्रह्मा ने कहा - ‘मुझे यज्ञ करना है । इसके लिए मैंने सारे तीर्थों को ढूंढ़ डाला, परंतु मुझे ऐसा कोई तीर्थ नहीं प्राप्त हुआ जो तुम्हारे शरीर से बढ़कर पवित्र हो, अत: यज्ञ के लिए तुम अपना शरीर दे दो ।’ यह सुनकर गयासुर बहुत प्रसन्न हुआ और वह कोलाहल परिवत पर लेट गया ।
ब्रह्मा यज्ञ की सामग्री के साथ वहां पधारे । प्राय: सभी देवता और ऋषि भी वहां उपस्थित हुए । गयासुर के शरीर पर बहुत बड़ा यज्ञ हुआ । ब्रह्मा ने पूर्णाहुति देकर अवभृथ - स्नान किया । यज्ञ का यूप (स्तंभ) भी गाड़ा गया ।
भक्तराज गयासुर चाहते थे कि उसके शरीर पर सभी देवताओं का वास हो । भगवान विष्णु का निवास गयासुर को अधिक अभीष्ट था, इसलिए उसका शरीर हिलने लगा । जब सभी देवता उस पर बस गये और भगवान विष्णु गदाधर के रूप में वहां स्थित हो गये, तब भक्तराज गयासुर ने हिलना बंद कर दिया । तब से गयासुर सबका उद्धार करता आ रहा है । यह एक भक्त का विश्व के कल्याण के लिए अद्भुत अवदान है ।

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