Saturday 27 February 2016

सुख - दुख क्या है ?


जीवन में प्रत्येक व्यक्ति सुख के लिए प्रयत्न करता है परंतु सुख से पूर्व दुख क्यों आता है ? वास्तविकता में दुख तो है ही नहीं । जो मन के अनुकूल होता है वह सुख है और जो मन के प्रतिकूल होता है वह दुख लगता है । अत: सुख और दुख मन:स्थिति है ।
ये संसार परमात्मा का है । संसार में हम सब परमात्मा के अंश है । अत: भगवान हमारे हैं । अपने भगवान के संसार में सब कुछ प्रभु का है, 'मेरा' कुछ भी नहीं है । किसी भी व्यक्ति या वस्तु से 'मेरा' संबंध कटते ही दुख कटता है और सुख आ जाता है ।
शिक्षा - हमारे भगवान का संसार दुख रूप तो हो ही नहीं सकता । भगवान कभी दर्द तो दे ही नहीं सकते । वे तो सच्चिदानंद हैं, आनंदमय हैं, सबको आनंद ही आनंद देते है और चेतन ही आनंद उठाता है । अत: अपने को चेतन बनाना है । अपने तार भगवान से जोड़ने से ही भगवान से संबंध जुड़ जाता है और आनंद का लाभ उठाया जा सकता है । सत्संग के अभाव में अथवा बुद्धि की अपरिपक्वता में व्यक्ति जिद्दी हो जाता है और कहने लगता है कि "मैं जो कहता हूं वही सत्य है, अपितु होना यह चाहिए कि जो सत्य है वही मैं कहता हूं ।" हम सत्य की संतान हैं । अत: सत्य का पालन करें 

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