Monday, 8 February 2016

संसार का अस्तित्व

संसार का अस्तित्व- गहन चिन्ता का प्रश्न है कि परम सत् औ असत् के बीच यह माया रूपी संसार आखिर किसलिये बना है। आखिर सर्वोच्च सप्राण परमात्मा ने यह माया रूपी नश्ववर मोह से लिप्त संसार क्यों बसाया है। प्राचीन ग्रंथ व वेद पुराण बताते हैं कि परमात्मा का स्वभाव है अपनी कृति पर अपने को प्रकट करना,यानी कि उसने जो कुछ भी रचा है उस पर अपना अस्तित्व प्रकट करना है। लेकिन प्रश्न फिर भी वहीं है कि आखिर क्यों उसने हमें और पूरे ब्रह्मांड को बनाया है। 
परमात्मा एक संपूर्ण ऊर्जा का केन्द्र है जिसके गर्भ में विद्धमान सत् औ असत् मूल तत्वों में निरंतर पारस्परिक क्रिया बहुत ही वेग गति से चलती रहती है और जिसके परिणाम स्वरूप विभन्न प्रकार के ग्रह नक्षत्र और प्रकृति बनती बिगड़ती रहती है। हर प्रक्रिया का अपना एक निरधारित समय चक्र होता है जब उसका प्रयोजन पूरा हो जाता है तो वो फिर से अपना मूल स्वरूप प्राप्त कर लेती है। लेकिन जो शक्ति निरधारित क्रम में प्रयोजन पूर्ण नहीं कर पाती वह व्यर्थ हो ब्रह्मांड में यूँही बिखर जाती हैं।
हर आकाशिय पिण्ड में वहाँ की प्रकृति के अनुसार सजीव औ निर्जीव शक्तियां होती हैं जो अपने निरधारित कार्य को पूरा करती हैं। हर व्यक्त के भीतर परमात्मा के सत् की सम्पूर्णता निहित रहती है।
मानव शरीर इसी प्रक्रिया का सर्वोत्तम परिणाम है जिस के द्वारा हम परमात्मा के सत् को समझने के काबिल बन सकते हैं। जो आत्मा एक शक्ति के रूप में हमारे भीतर है वह लगातार अपने निर्धारित कार्य को पूरा करने को उद्धत रहती है जिसके फलस्वरूप हम विभिन्न कर्म बंधनों में बंध जाते हैं। आत्मा द्वारा एक जन्म में कार्य पूर्ण नहीं होता है वह (आत्मा)निरंतर लक्ष्य की ओर बढ़ती हुई अनेक योनियों में जन्म लेती है।
इसलिये मानव शरीर का पूरा लाभ उठाते हुए हम सब को सत् कर्मों करते हुए विवेक से अपनी आत्मा का सहयोग करना चाहिये ताकि वह जो उस परम संपूर्ण ऊर्जा का एक अंश है व्यर्थ न हो बल्कि उसी में समाहित हो जाये।
जय श्री कृष्ण जय श्री राम

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