Monday 8 February 2016

बंधन-

जैसे ही आत्मा शरीर में प्रवेश करती है वह जन्म मृत्यु के बंधन में बंध जाती है, यह बात सनातन अर्थात् सत्य है और इस बात की पुष्टि प्रत्येक धर्म करता है। पर इस सच्चाई को जानते समझते हुये भी इंसान अपने आप को मृत्युपरंत अनेकाऐक बंधनों में बंधता रहता है। वह बंधता है अपने ही गलत दृष्टिकोण से, मिथ्या सोच से, विपरीत मान्यताओं की पकड़ से। ऐसा व्यक्ति सच को झूठ और झूठ को सच मानता है और दोहरा जीवन जीता है। 
मित्रों मानव जीवन ही एकमात्र ऐसा जीवन है जिसे बुद्धि प्राप्त है। हम सभी को पता है कि रूढ़िवादिता से उतपन्न हुए धार्मिक संस्कार एवम् मान्यताऐं हमें वास्तविकता से दूर ले जाती हैं और हम सत्य जानते हुये भी भर्मित हो उन सब का पालन करते रहते हैं।
जब हम मुश्किल वक्त से गुज़र रहे होते हैं तो इधर उधर से पता लगते ही कि फंला स्टोन पहन लो, घर का वास्तु ठीक करवा लो, यह टोटका तो रामबाण है आदी- आदी हम बिना सोचे समझे करने लगते हैं और रूढ़िवादिता के अंधविश्वास में बंधते चले जाते हैं। जब कि सत्य तो यह है कि जब तक हम सुख में थे तबतक किसी स्टोन की, घर में दोष की या किसी टोटके की जरूरत नहीं थी, तब यह अंधविश्वास कैसे बिना हमारे कर्मों के कटने से पहले हमें सुख दे सकेगें।
अतः अगर बंधनों सें मुक्त होने के लिए हम को चाहिए सुलझा हुआ दृष्टिकोण,काल, समय और व्यक्ति की सही परख, दृढ़ संकल्प शक्ति, पाथेय की पूर्ण तैयारी, अखंड आत्मविश्वास और स्वयं की पहचान। बस जीवन सरलता से कट जायेगा और मृत्यु के समय भी आत्मा आसानी से बंधन मुक्त हो सकेगी।
जय श्री राम जय श्री कृष्ण

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