जो ईश्वर का भक्त होता है, उसका स्वामी ईश्वर होता है । उसपर मौत का अधिकार नहीं होता । अनधिकार चेष्टा करने से मौत की भी मौत हो जाती है । गोदावरी के तट पर ‘श्वेत’ नामक एक ब्राह्मण रहते थे । उनका सब समय निरंतर साम्ब सदाशिव की पूजा में व्यतीत होता था । वे अतिथियों को शिव समझकर उनका भलीभांति आदर - सत्कार किया करते थे । उनका शेष समय भगवान के ध्यान में बीतता था । उनकी आयु पूरी हो चुकी थी, किंतु उन्हें इस बात का ज्ञान न था । उन्हें न रोग था न शोक, इसलिए आयु पूरी हो चुकी है, इसका आभास नहीं हुआ । उनका सारा ध्यान शिव में केंद्रित था । यमदूत समय से उन्हें लेने आएं, परंतु वे उनके घर में प्रवेश नहीं कर पाते थे । चित्रगुप्त ने मृत्यु से पूछा - मृत्युदेव ! श्वेत अबतक यहां क्यों नहीं आया ? तुम्हारे दूत भी नहीं आएं । यह सुनकर मृत्यु को श्वेत पर बहुत क्रोध आया । वे स्वयं उन्हें लेने दौड़े । गृह के द्वार पर यमदूत भय से कांपते दिखायी पड़े । उन्होंने मृत्यु से कहा - नाथ ! हम क्या करें ? श्वेत तो शिव द्वारा सुरक्षित है । उसे तो हम देख भी नहीं पा रहे हैं, उसके पास पहुंचना तो अत्यंत कठिन है ।
दूतों की बात सुनकर मौत का क्रोध और भभक उठा । वे झट ब्राह्मण के घर में प्रवेश कर गए । ब्राह्मण देवता को यह पता न था कि कहां क्या हो रहा है ? मृत्युदेव को झपटते देखकर भैरव बाबा ने कहा - मृत्युदेव ! आप लौट जाइये । किंतु मृत्युदेव ने उनकी बात को अनसुनी कर श्वेत पर फंदा डाल दिया । भक्त पर मृत्यु का यह आक्रमण भैरव बाबा को सहन न हुआ । उन्होंने मृत्यु पर डंडे से प्रहार किया । मृत्युदेव वहीं ठंड हो गए । यमदूत भागकर यमराज के पास पहुंचे । वे डर के मारे थर - थर कांप रहे थे । मृत्यु की मृत्यु सुनकर यमराज को बड़ा क्रोध हो आया । उन्होंने हाथ में यमदण्ड ले लिया और अपनी सेना के साथ श्वेत के पास पहुंच गए ।
वहां भगवान शंकर के पार्षद पहले से ही खड़े थे । सेनापति कार्तिकेय के शक्ति अस्त्र से सेनासहित यमराज की भी मृत्यु हो गयी । यह अपूर्व समाचार सुनकर भगवान सूर्य देवताओं के साथ ब्रह्मा के पास पहुंचे और ब्रह्मा सबके साथ घटनास्थल पर आये । देवताओं ने भगवान शंकर की स्तुति की और कहा - भगवान ! यमराज सूर्य के पुत्र हैं । ये लोकपाल हैं । इन्होंने कोई अपराध या पाप नहीं किया है, अत: इनका वध नहीं होना चाहिए । इन्हें जीवित कर दें, नहीं तो अव्यवस्था हो जायगी । भगवन ! आप से की हुई प्रार्थना कभी व्यर्थ नहीं होती ।
भगवान आशुतोष ने कहा - मैं भी व्यवस्था के पक्ष में हूं । वेद की एक व्यवस्था है कि जो मेरे अथवा भगवान विष्णु के भक्त हैं, उनके स्वामी स्वयं हम लोग होते हैं । मृत्यु का उन पर कोई अधिकार नहीं होता । यमराज के लिए यह व्यवस्था की गयी है कि वे भक्तों को अनुचरों के साथ प्रणाम करें ।
इसके बाद भगवान आशुतोष ने नंदी के द्वारा गौतमी गंगा (गोदावरी) का जलमरे हुए लोगों पर छिड़कवाया । तत्क्षण सब के सब स्वस्थ होकर उठ खड़े हुए ।
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