Monday 8 February 2016

प्रकृति



निर्जीव वस्तुओं की सजीवता- आतमा का प्रत्येक कार्य सृजनात्मक है, जबकी अनात्म(निर्जीव) के कार्य वस्तुतः निष्क्रिय हैं। कोई जड़ वस्तु जैसे पत्थर, जल, मिट्टी या हीरे जवाहरत कोई भी सक्रिय कार्य स्वंय नहीं कर सकते। लेकिन उनमें उपलब्ध स्थितिज ऊर्जा अपने आस-पास की प्रकृति से प्रभावित होती है। प्रयोगों से पता चला है कि नदी के बहाव से कटने वाले पत्थरों में व जमीन में कई किलोमीटर नीचे दबे पत्थरों या फिर पहाड़ के पत्थरों में स्थितिज ऊर्जा की मात्रा अलग-अलग होती है। सभी निर्जीव वस्तुऐं एक खास मात्रा में ऊर्जा का विनिमय करती रहती हैं जिसकी दर उनकी तथा उनके आस-पास की प्रकृति पर निर्भर करती हैं।
उदाहरणार्थ अगर हम नदी के बहाव से कटने वाले पत्थर को धारण करें या उसे अपने घर में रखें तो उस में उपलब्ध स्थितिज ऊर्जा जो कि बार- बार पानी के टक्कर मारने से बनी थी अपने आस-पास के पानी को एकदम प्रभावित करगी, यानी गर शरीर मे धारण किया है तो वह शरीर में उपलब्ध पानी को अपनी ओर आकर्षित करगी और यदि घर पर रखा है तो वह वातावरण से नमी को ले लेगी। इसकी वजह से वह व्यक्ति जिसने वह पत्थर धारण किया है अपने स्वभाव में अतंर पाने लगेगा पर वह शरीर के भीतरी खिंचाव को समझ नहीं पायेगा। यही है निर्जीव वस्तुओं की सजीवता।
इसीलिये शरीर में कोई भी नग, धागा या धातु धारण करने से पूर्व यह जानना बेहद जरूरी है कि उस की स्थितिज ऊर्जा किससे प्रभावित है वह हमारे ऊपर कैसा प्रभाव डालेगी।
कई लोग गुस्से को काबू में रखने के लिये मोती धारण करते हैं पर उनका गुस्सा कभी भी कम नहीं होता बल्कि बढ़ता ही है क्योंकि मोती की स्थितिज ऊर्जा में पानी व लवण दोनों को प्रभावित करने की क्षमता होती है।
जय श्री राम जय श्री कृष्ण

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