Monday 8 February 2016

मिट्टी के महल

मिट्टी के महल- हर किसी को रहने के लिये घर चाहिये। सब अपनी-अपनी हैसियत के अनुसार महल, कोठी, बंगला या कच्चा-पक्का आशियाना बनवाते हैं,और बनवाते समय नींव की मजबूती का ध्यान जरूर रखते हैं। जब ईंट पत्थर, लोहे के सरिये व कंक्रीट आशियाना बन जाता है तो फिर उस पर अपना मालिकाना हक जता कर इतराते हैं। जब तब आशियाने की मरम्मत करवा कर उसे दुरूस्त रखते हैं। 
परम पिता परमात्मा ने भी हम सब को मिट्टी का महल पांच तत्वों से मजबूत कर रहने के लिये दिया है। जिसकी नींव की मजबूती का आधार हमारे अच्छे कर्म हैं। जसके जितने अच्छे कर्म होते हैं उसे उतने ही कम शारिरक कष्ट होते हैं। इस बात को हम इस तरह से भी देख सकते हैं कि कर्मों के हिसाब से कोई जन्म से ही बिमार या विकलांग होता है, अर्थात् कमजोर नींव और कोई बुढ़ापे में भी चुस्त दुरूस्त रहता है यानी मजबूत नींव। हाँलाकि हर प्रकार का महल/शरीर नशवर है तो भी बिना बीमारी का शरीर जिंदगी की बहुत सारी तकलीफों से बचाता है।
अपने शरीर को केवल कंचन काया बना बनाव श्रिंगार कर या फिर कसरती बदन बनाना केवल इस जन्म में उसे कुछ समय के लिये ठीक रख सकता है जैसे दिवाली आने पर घर की लीपापोती उसे साल भर के लिये चमका देती है लेकिन चौखट औ दीवारों के भीतर की दीमक अच्छे से अच्छे महल को भरभरा कर गिरने पर मजबूर कर देती है और कोई भी कुछ नहीं कर पाता।
साराशं यह है कि पिछले कर्मों का भुगतान तो हमें इस जन्म में करना ही है पर अगर हम अच्छे कर्म करने की कोशिश करें तो निश्चित ही अगले जन्म में मजबूत नींव वाले महल के हकदार होगें और हो सकता है कि इस जन्म की भी काफी तकलीफों से छुटकारा मिल जाये। अतः मिट्टी के महल को ऊपरी चमक दमक से नहीं अच्छे कर्मों से सजाना चाहिये ताकी आत्मा को उसमें रहने पर सुख की अनुभूति हो।
जय श्री राम जय श्री कृष्ण

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