Saturday, 25 June 2016

गोत्र:

ब्राह्मण की वंशावली
भविष्य पुराण से मिलता है।जिसमे ब्राह्मण उत्पत्ति से सभी नियम क्रम दर्शाये गए है।
1) गोत्र: गोत्र का अर्थ है, की वह कौन से ऋषिकुल में से उतर कर आया है। या उसका जन्म किस ऋषिकुल से संबन्धित है। किसी व्यक्ति की वंश परंपरा जहां से प्रारम्भ होती है, उस वंश का गोत्र भी वहीं से प्रचलित होता गया है।
हम सभी जानते हें की हम किसी न किसी ब्राह्मण ऋषि की ही संतान हैं, इस प्रकार से जो जिस ऋषि से प्रारम्भ हुआ वह उस ऋषि का वंशज कहा गया।
गोत्रों की उत्पत्ति सर्वप्रथम ब्राह्मणो मे ही हुई थी क्योकि यह वर्ग ही ज्ञान से इसे स्मरण रखने में समर्थ था। धीरे धीरे जब ब्राह्मण वर्ग का विस्तार हुआ तब अपनी पहिचान बनाने के लिए अपने आदि पुरुषों के नाम पर गोत्र का विस्तार हुआ।
इन गोत्रों के मूल ऋषि –
अंगिरा,
भृगु,
अत्रि,
कश्यप,
वशिष्ठ,
अगस्त्य,
तथा
कुशिक थे,
और इनके वंश
अंगिरस,
भार्गव,
आत्रेय,
काश्यप,
वशिष्ठ
अगस्त्य,
तथा
कौशिक हुए।
[ इन गोत्रों के अनुसार इकाई को “गण” नाम दिया गया, यह माना गया की एक गण का व्यक्ति अपने गण में विवाह न कर अन्य गण में करेगा। इस प्रकार कालांतर में ब्राह्मणो की संख्या बढ़ते जाने पर पक्ष और शाखायें बनाई गई।
इस तरह इन सप्त ऋषियों पश्चात उनकी संतानों के विद्वान ऋषियों के नामो से अन्य गोत्रों का नामकरण हुआ।
वेदों का अध्ययन करने पर जिन सात ऋषियों या ऋषि कुल के नामों का पता चलता है।जो ब्राह्मण के वंशज हुए और उन्हें के गोत्र से ब्राह्मणों का विकास हुआ।
वे नाम क्रमश: इस प्रकार है:-
1.वशिष्ठ,
2.विश्वामित्र,
3.कण्व,
4.भारद्वाज,
5.अत्रि,
6.वामदेव
और
7.शौनक।
गोत्र शब्द का एक अर्थ गो जो प्रथ्वी का पर्याय भी है और ‘त्र’ का अर्थ रक्षा करने वाला भी है। यहाँ गोत्र का अर्थ प्रथ्वी की रक्षा करें वाले ऋषि से ही है।
भगवान् ने भी ब्राह्मणों को सभी से श्रेष्ठ इसलिए कहा क्योंकि ब्राह्मण शास्त्र के साथ शस्त्र भी उठा कर पृथ्वी की रक्षा कर सकते है।
इसलिए ब्राह्मण सदैव पूजनीय रहा है।गो शब्द इंद्रियों का वाचक भी है, ऋषि मुनी अपनी इंद्रियों को वश में कर अन्य प्रजा जनो का मार्ग दर्शन करते थे, इसलिए वे गोत्र कारक कहलाए।
ऋषियों के गुरुकुल में जो शिष्य शिक्षा प्राप्त कर जहा कहीं भी जाते थे वे अपने गुरु या आश्रम प्रमुख ऋषि का नाम बतलाते थे, जो बाद में उनके वंशधरो में स्वयं को उनके वही गोत्र कहने की परंपरा पड़ गई।
गोत्रों का महत्व :- जाति की तरह गोत्रों का भी अपना महत्‍व है ।
1. गोत्रों से व्‍यक्ति और वंश की पहचान होती है ।
2. गोत्रों से व्‍यक्ति के रिश्‍तों की पहचान होती है ।
3. रिश्‍ता तय करते समय गोत्रों को टालने में सुविधा रहती है ।
4. गोत्रों से निकटता स्‍थापित होती है और भाईचारा बढ़ता है ।
5. गोत्रों के इतिहास से व्‍यक्ति गौरवान्वित महसूस करता है और प्रेरणा लेता है ।
भविष्य पुराण के अनुसार ब्राह्मणों का इतिहास है की प्राचीन काल में महर्षि कश्यप के पुत्र कण्वय की आर्यावनी नाम की देव कन्या पत्नी हुई।
ब्रम्हा की आज्ञा से दोनों कुरुक्षेत्र वासनी सरस्वती नदी के तट पर गये और कण् व चतुर्वेदमय सूक्तों में सरस्वती देवी की स्तुति करने लगे एक वर्ष बीत जाने पर वह देवी प्रसन्न हो वहां आयीं और ब्राम्हणो की समृद्धि के लिये उन्हें वरदान दिया ।
वर के प्रभाव कण्वय के आर्य बुद्धिवाले दस पुत्र हुए जिनका क्रमानुसार नाम था -
उपाध्याय,
दीक्षित,
पाठक,
शुक्ला,
मिश्रा,
अग्निहोत्री,
दुबे,
तिवारी,
पाण्डेय,
और
चतुर्वेदी ।
इन लोगो का जैसा नाम था वैसा ही गुण। इन लोगो ने नत मस्तक हो सरस्वती देवी को प्रसन्न किया। बारह वर्ष की अवस्था वाले उन लोगो को भक्तवत्सला शारदा देवी ने अपनी कन्याए प्रदान की।
वे क्रमशः
उपाध्यायी,
दीक्षिता,
पाठकी,
शुक्लिका,
मिश्राणी,
अग्निहोत्रिधी,
द्विवेदिनी,
तिवेदिनी
पाण्ड्यायनी,
और
चतुर्वेदिनी कहलायीं।
फिर उन कन्याआं के भी अपने-अपने पति से सोलह-सोलह पुत्र हुए हैं वे सब गोत्रकार हुए जिनका नाम -
कश्यप,
भरद्वाज,
विश्वामित्र,
गौतम,
जमदग्रि,
वसिष्ठ,
वत्स,
गौतम,
पराशर,
गर्ग,
अत्रि,
भृगडत्र,
अंगिरा,
श्रंगी,
कात्यायन,
और
याज्ञवल्क्य।
इन नामो से सोलह-सोलह पुत्र जाने जाते हैं।
मुख्य 10 प्रकार ब्राम्हणों ये हैं-
(1) तैलंगा,
(2) महार्राष्ट्रा,
(3) गुर्जर,
(4) द्रविड,
(5) कर्णटिका,
यह पांच "द्रविण" कहे जाते हैं, ये विन्ध्यांचल के दक्षिण में पाये जाते हैं।
तथा
विंध्यांचल के उत्तर मं पाये जाने वाले या वास करने वाले ब्राम्हण
(1) सारस्वत,
(2) कान्यकुब्ज,
(3) गौड़,
(4) मैथिल,
(5) उत्कलये,
उत्तर के पंच गौड़ कहे जाते हैं।
वैसे ब्राम्हण अनेक हैं जिनका वर्णन आगे लिखा है।
ऐसी संख्या मुख्य 115 की है।
शाखा भेद अनेक हैं । इनके अलावा संकर जाति ब्राम्हण अनेक है ।
यहां मिली जुली उत्तर व दक्षिण के ब्राम्हणों की नामावली___
जो एक से दो और 2 से 5 और 5 से 10 और 10 से 84 भेद हुए हैं,
फिर उत्तर व दक्षिण के ब्राम्हण की संख्या शाखा भेद से 230 के लगभग है ।
तथा और भी शाखा भेद हुए हैं, जो लगभग 300 के करीब ब्राम्हण भेदों की संख्या का लेखा पाया गया है।
उत्तर व दक्षिणी ब्राम्हणां के भेद इस प्रकार है
81 ब्राम्हाणां की 31 शाखा कुल 115 ब्राम्हण संख्या
(1) गौड़ ब्राम्हण,
(2)मालवी गौड़ ब्राम्हण,
(3) श्री गौड़ ब्राम्हण,
(4) गंगापुत्र गौडत्र ब्राम्हण,
(5) हरियाणा गौड़ ब्राम्हण,
(6) वशिष्ठ गौड़ ब्राम्हण,
(7) शोरथ गौड ब्राम्हण,
(8) दालभ्य गौड़ ब्राम्हण,
(9) सुखसेन गौड़ ब्राम्हण,
(10) भटनागर गौड़ ब्राम्हण,
(11) सूरजध्वज गौड ब्राम्हण(षोभर),
(12) मथुरा के चौबे ब्राम्हण,
(13) वाल्मीकि ब्राम्हण,
(14) रायकवाल ब्राम्हण,
(15) गोमित्र ब्राम्हण,
(16) दायमा ब्राम्हण,
(17) सारस्वत ब्राम्हण,
(18) मैथल ब्राम्हण,
(19) कान्यकुब्ज ब्राम्हण,
(20) उत्कल ब्राम्हण,
(21) सरवरिया ब्राम्हण,
(22) पराशर ब्राम्हण,
(23) सनोडिया या सनाड्य,
(24)मित्र गौड़ ब्राम्हण,
(25) कपिल ब्राम्हण,
(26) तलाजिये ब्राम्हण,
(27) खेटुवे ब्राम्हण,
(28) नारदी ब्राम्हण,
(29) चन्द्रसर ब्राम्हण,
(30)वलादरे ब्राम्हण,
(31) गयावाल ब्राम्हण,
(32) ओडये ब्राम्हण,
(33) आभीर ब्राम्हण,
(34) पल्लीवास ब्राम्हण,
(35) लेटवास ब्राम्हण,
(36) सोमपुरा ब्राम्हण,
(37) काबोद सिद्धि ब्राम्हण,
(38) नदोर्या ब्राम्हण,
(39) भारती ब्राम्हण,
(40) पुश्करर्णी ब्राम्हण,
(41) गरुड़ गलिया ब्राम्हण,
(42) भार्गव ब्राम्हण,
(43) नार्मदीय ब्राम्हण,
(44) नन्दवाण ब्राम्हण,
(45) मैत्रयणी ब्राम्हण,
(46) अभिल्ल ब्राम्हण,
(47) मध्यान्दिनीय ब्राम्हण,
(48) टोलक ब्राम्हण,
(49) श्रीमाली ब्राम्हण,
(50) पोरवाल बनिये ब्राम्हण,
(51) श्रीमाली वैष्य ब्राम्हण
(52) तांगड़ ब्राम्हण,
(53) सिंध ब्राम्हण,
(54) त्रिवेदी म्होड ब्राम्हण,
(55) इग्यर्शण ब्राम्हण,
(56) धनोजा म्होड ब्राम्हण,
(57) गौभुज ब्राम्हण,
(58) अट्टालजर ब्राम्हण,
(59) मधुकर ब्राम्हण,
(60) मंडलपुरवासी ब्राम्हण,
(61) खड़ायते ब्राम्हण,
(62) बाजरखेड़ा वाल ब्राम्हण,
(63) भीतरखेड़ा वाल ब्राम्हण,
(64) लाढवनिये ब्राम्हण,
(65) झारोला ब्राम्हण,
(66) अंतरदेवी ब्राम्हण,
(67) गालव ब्राम्हण,
(68) गिरनारे ब्राम्हण
(69) गुग्गुले ब्राम्हण
(70) मेरठवाल ब्राम्हण
(71) जाम्बु ब्राम्हण
(72) वाइड़ा ब्राम्हण
(73) कड़ोल ब्राम्हण
(74) ओदुवे या दुवे
(75) वटमूल ब्राम्हण
(76) श्रृंगालभाट ब्राम्हण
(77) गौतम ब्राम्हण
(78) पाल ब्राम्हण
(79) सोताले ब्राम्हण
(80) सिरापतन मोताल ब्राम्हण
(81) महाराणा ब्राम्हण
(82) चितपाक ब्राम्हण
(83) कराश्ट ब्राम्हण
(84) त्रिहोत्री या अग्निहोत्री ब्राम्हण
(85) दशगोत्री ब्राम्हण
(86) द्वात्रिदश ब्राम्हण
(87) पन्तिय ग्राम ब्राम्हण
(88) मिथिनहार ब्राम्हण
(89) सौराष्ट्र।
ऐसे ब्राह्मण के अनेको प्रकार बताये गए है लेकिन मुख्य ब्राह्मण कुल इन्ही सप्तऋषिओ से ही बना है।
विष्णु पुराण के अनुसार ब्राह्मण की उत्पत्ति इस श्लोक से होती है।
श्लोक-
वशिष्ठकाश्यपो यात्रिर्जमदग्निस्सगौत। विश्वामित्रभारद्वजौ सप्त सप्तर्षयोभवन्।।
अर्थात् सातवें मन्वन्तर में सप्तऋषि इस प्रकार हैं:-
वशिष्ठ, कश्यप, अत्रि, जमदग्नि, गौतम, विश्वामित्र और भारद्वाज।
इस तरह से ब्राह्मणों के वंश का वर्णन मिलता है।
ये जानकारी अपने अपने बच्चों को जरूर बताये।आज की भावी पीढ़ी को सच्चे ब्राह्मण का अर्थ पता नहीं है इसलिए वो अपने धर्म मार्ग दे भटक गया है।
“”जय भू देव जय परशुराम “”

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