Wednesday 29 June 2016

पांडवो के जीवन

पांडवो के जीवन में अनगिनत दुःख आये लेकिन उन्होंने इन दुखो को अपना प्रारब्ध मान कर सहा।उन्होंने कभी इन बातो की शिकायत श्रीकृष्ण से नहीं की जो उनके परम् स्नेही थे निकट के संबंधी थे और उस पर पांडव ये भी जानते थे की कृष्ण परम् भगवान है।
पांडवो को कृष्ण के प्रति अगाध श्रद्धा थी।उन्होंने हर स्थिति में कृष्ण पर अपना विश्वास रखा और उनकी शरण में हमेशा अपने आपको सुखी समझा चाहे स्थितियां कितनी भी विपरीत रही हो।
जब युद्ध समाप्त हुआ और पांडवो को उनका राज्य मिल गया तब कृष्ण वापिस द्वारिका जाने लगे तो पांडवो की माता कुंती महारानी ने उनसे प्रार्थना की जो बड़ी अद्भुत है और एक शुद्ध भक्त ही ये प्रार्थना कर सकता है।
उन्होंने भगवान से कहा की हे गोविन्द हमारी जिंदगी में हमेशा दुःख ही दुःख आये ताकि आप हमेशा हमारे साथ रहो।आपने हमारे दुःख से समय में एक पल भी हमें नहीं छोड़ा और आज जब सुख आया है तो आप हमें छोड़ कर जा रहे हो।ऐसा सुख किस काम का जिसमे आप हमारे साथ नहीं रहो इससे तो दुःख ही अच्छा था जो आप हमारे साथ हर कदम पर थे।
कथा का तात्पर्य यही है की दुःखों से कभी घबराना नहीं चाहिए।जैसे एक काबिल व्यक्ति को ही मुश्किल कार्य दिए जाते है उसी तरह जो भगवान के प्रिय होते है उन्ही की परीक्षा भगवान लेते है।दुःख में हम समझते है की हमारा कोई नहीं है पर ये हमारी अज्ञानता है।भगवान हर पल हमारे साथ होते है पर अज्ञानता के कारण हम उन्हें महसूस नहीं कर पाते।
जहा कृष्ण है वहा अन्धकार नहीं है आइये इस भौतिक जगत की माया के अन्धकार को पीछे छोड़ते हुए कृष्ण की शरण की और चले जहा केवल परम् आनंद है।

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